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मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार एक्ट -Takeknowledge

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                  मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार 1916 तक भारत और बिटेनलगभग सारे महत्वपर्ण राजनैतिक दल यह साचन लग थ कि सरकार की संरचना में काज परिवर्तन आवश्यक है। इस समय तक भारतीयो की आकांक्षाएं भी बढ़ चुकी थीं। विश्व युद्ध के दौरान भारत में राजनैतिक दबाव के कारण तथा भारतीय सहयोग को जीतने की इच्छा के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार ने भारत में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार की शुरुआत की। मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार की ओर ले जाने वाली परिस्थितियाँ   मोर्ले और मिन्टो शायद ही यह कल्पना कर सकते थे कि जिन संवैधानिक सधारों को, उन्होंने विभिन्न स्तरों पर साढ़े तीन साल के श्रमसाध्य विचार विमर्श के उपरान्त साकार रूप दिया था. वे सात वर्ष के उपरान्त ही किसी को भी संतष्ट करने में असफल सिद्ध होंगे। सन् 1916 तक भारत के सभी राजनैतिक दलों ने, यहाँ तक कि ब्रिटेन के भी सभी राजनैतिक दलों ने यह महसूस कर लिया कि भारत सरकार की संरचना में कुछ परिवर्तन आवश्यक है। यह मख्यतः, अगस्त 1914 में विश्व युद्ध छिड़ने से उत्पन्न परिस्थितियों का परिणाम था। युद्ध से भारत की सुरक्षा पर तत्काल कोई संकट नहीं आया था। चूँकि भा

मोर्ले-मिन्टो सुधार -Takeknowledge

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                    मोर्ले-मिन्टो सुधार 1909 के मोर्ले-मिन्टो सधार का पारित होना 1892 के इंडियन काउंसिल्स ऐक्ट (Indian Act) के उपरांत की राजनैतिक हलचल तथा तीव्र गतिविधियों के दौर की पृष्ठभूमि में देखी जानी चाहिये।    संवैधानिक परिवर्तनों की आवश्यकता  कांग्रेस के बाहर (सन् 1892 के बाद के पंद्रह सालों में) कांग्रेस के लक्ष्यों और प्रणाली के प्रति असंतोष की भावना पनप रही थी। सन् 1885 में हाईस्कूल (मैट्रिक) में उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 1286 थी जो सन् 1906 में बढ़कर 8211 हो गई। यद्यपि आज के मापदण्ड से यह संख्या हास्यास्पद सीमा तक कम मालम पड़ती है परंत मात्रा की दृष्टि में इसमें सात गनी वृद्धि हई थी। यही प्रवृति समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के प्रकाशन और बिक्री के संबंध में देखी गयी। इससे यह संकेत मिलता है कि उन भारतीयों की संख्या में, जो कि नागरिक के रूप में अपने अधिकारों के प्रति सजग हो सकते थे और सरकार के कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक हो सकते थे, साथ ही साथ लोगों की संख्या में, जो कि विदेशी शासन की हानियों को समझने लगे थे, बहत अधिक वद्धि हई थी। इन्हीं वर्षों मे

1892 का इंडियन काउंसिल्स ऐक्ट - Takeknowledge

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        1892 का इंडियन काउंसिल्स ऐक्ट अब हम उन कारणों पर विचार करेंगे जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को 1892 के इंडियन काउंसिल ऐक्ट पारित करने के लिए प्रेरित किया। इसके अतिरिक्त इस ऐक्ट की मुख्य विशेषताओं, कमियों तथा उपलब्धियों की भी विवेचना की जाएगी।   संवैधानिक परिवर्तनों की आवश्यकता   सरकार के दष्टिकोण से सन 1861 के ऐक्ट ने संतोषजनक ढंग से कार्य किया था। परन्तु परवतीकाल में भारत में राष्ट्रीय चेतना का अदभत विकास हआ। शीघ्र ही इस भावनां का विकास हआ कि देशवासियों के बहत से हित. आकांक्षाएँ और तकदीर एक समान है। खण्ड एक का इकाई 3 में आप इस भावना के उत्थान और विकास के कारणों का अध्ययन कर चके हैं। आप यह भी जानते हैं कि अपने पहले ही अधिवेशन में कांग्रेस ने केंद्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषदों में चने हए सदस्यों के सम्मिलन और उनके कार्यक्षेत्र में वृद्धि की माँग की थी। आगामी वर्षों में इन माँगों को दोहराया जाता रहा। जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हई तब लॉर्ड डफरिन भारत के गवर्नर जनरल थे। उनके कार्यकाल में (1884-1888) भारत सरकार ने गह सरकार से केंद्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषदों के

गांधी जी की विचारधारा -Takeknowledge

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                गांधी जी की विचारधारा अब हम गांधी जी की विचारधारा के मख्य पहलओं पर विचार करेंगे परंतु उन पर व्याख्या करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि ऐसे कई प्रभाव थे जिन्होंने गांधी जी की विचारधारा को उभारने और उसे एक निश्चित दिशा देने में योगदान दिया। अपनी आत्मकथा में गांधी जी ने यह स्वीकार किया है कि उनके अभिभावकों के दृष्टिकोण आर उनके रहने के स्थान पर मौजद सामाजिक और धार्मिक वातावरण ने उनको व्यापक रूप से प्रभावित किया था। उनकी प्रारंभिक विचारधारा को "वैष्णव मत" और जैन धर्म की परपराओ ने विशेष तौर से प्रभावित किया था। गांधी जी "भगवद गीता" से भी प्रभावित थे। इसके अतिरिक्त ईसा के 'पहाड पर उपदेश" Sermon on the Mount), टालस्टाय, थोरो आर स्किन के लेखों ने भी उनके चिंतन को प्रभावित किया था। लेकिन इसके साथ-साथ उनकी विचारधारा के विकास और दिशा निर्धारण में सर्वाधिक योगदान जीवन में उनके अपने व्यक्तिगत अनुभवों का था।   सत्याग्रह गांधी जी की विचारधारा का सबसे मख्य पहल सत्याग्रह का था। जैसा कि पहले ही जिक्र कया जा चका है कि यह तरीका गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीक

रौलट ऐक्ट सत्याग्रह -Takeknowledge

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                    रौलट   सत्याग्रह 1917-18 में गांधी जी ने राष्ट्रव्यापी मद्दों पर कुछ विशेष ध्यान नहीं दिया था। उन्होंने ऐनीबीसेंट की नज़र बंदी का विरोध किया था और अली बंधुओं (मुहम्मद अली और शौकत अली), की जेल से रिहाई की भी मांग की थी। अली बंधु 'खिलाफत' को लेकर गिरफ्तार किये गये थे। उस समय के अन्य राजनीतिक नेताओं की भाँति गांधी जी ने सुधार प्रस्तावों में कोई विशेष रुचि नहीं ली थी लेकिन जिस समय अंग्रेजी सरकार ने रौलट ऐक्ट को पारित करने का निर्णय लिया तो गांधी जी ने राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने का निर्णय लिया।     रौलट   ऐक्ट 1917 में भारतीय सरकार ने जस्टिस सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था जिसका उद्देश्य क्रांतिकारियों के कार्यों की जाँच-पड़ताल करते हुए उनके दमन के लिये कानून प्रस्तावित करना था। स्थिति का जायजा लेने के उपरांत रौलेक्ट कमेटी ने कानून में कई प्रकार के परिवर्तन किये जाने का सुझाव रखा। इन सझावों को ध्यान में रखते हए सरकार ने राष्ट्रीय काउंसिल के सम्मुख दो विधेयक 6 फरवरी, 1919 के दिन प्रस्तुत किये! सरकार का यह दावा था क

चंपारन सत्याग्रह - Takeknowledge

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                                         चंपारन सत्याग्रह भारतीय राजनीति में प्रादुर्भाव-  भारतीय राजनीति में गांधी जी का सक्रिय प्रादुर्भाव 1917-18 के काल में हुआ जो कि तीन स्थानीय समस्याओं से संबंधित था। ये समस्याएँ थीं: चंपारन और खेड़ा में किसानों का संघर्ष और अहमदाबाद में मजदूरों का संघर्ष। यहाँ पर गांधी ने सत्याग्रह की तकनीक का इस्तेमाल किया और अंततः इन्हीं स्थानीय संघर्षों के माध्यम से वे संपर्ण भारत के नेता के रूप में उभर कर आये।   चंपारन उत्तरी बिहार के तिरहत मंडल में चंपारन एक ऐसा स्थान था जहाँ पर कि एक लंबे समय से कृषकों में असंतोष फैला हआ था। यरोपीय बागान मालिकों ने इस क्षेत्र में 19वीं शताब्दी के प्रारंभ से नील के बागान और फैक्टरियाँ स्थापित की थीं। 1916-17 में चंपारन का अधिकांश क्षेत्र केवल तीन भ-स्वामियों के आधीन था। ये भ-स्वामी-बेतिया, राम नगर और मधुबन जागीरों के मालिक थे। इनमें बेतिया की जागीर सबसे बड़ी थी और उसमें लगभग 1500 गाँव आते थे। भ-स्वामी स्वयं जागीर की देखभाल न कर उसे ठेके पर दे देते थे और ठेकेदारों में सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग यूरोपीय बागान मालिकों का

होमरूल लीग- Takeknowledge

                          होमरूल लीग प्रथम विश्व महायुद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों की एक अन्य कम नाटकीय लेकिन अधिक प्रभावशाली प्रतिक्रिया हई-लोकमान्य तिलक एवं ऐनी बिसेंट की होम रूल लीग।   लीगों के बनने में सहायक घटनायें मांडाले, बर्मा में छह वर्ष की लंबी कैद काटने के बाद जब तिलक वापस हिन्दुस्तान लौटे तो सबसे पहले उन्होंने अपना ध्यान स्वयं तथा अन्य उग्रवादियों के कांग्रेस में वापस जाने की ओर दिया जिसमें से उन्हें 1907 में सरत में निकाल दिया गया था। 1907 में भी वे विभाजन से खुश नहीं थे। अब तो वह एकता के और भी हामी बन गये। इसके अतिरिक्त, किसी भी प्रकार की राजनैतिक गतिविधियों के लिए कांग्रेस की महर आवश्यक थी क्योंकि लोगों के दिमाग में कांग्रेस राष्ट्रीय आंदोलन का विशिष्ट चिह्न बन गई थी। साथ ही, विभाजन ने अंग्रेज़ों को ही लाभ पहँचाया था जिन्होंने पहले तो गरम दल को दमन करके अलग कर दिया। और फिर नरम दल की भी उपेक्षा ऐसे संशोधन लाकर कर दी जो अपेक्षाओं से बहुत ही कम थे। 1908 के बाद से राजनैतिक गतिविधियों के पूर्ण अभाव से नरम दलीय पर मिसेज़ ऐनी बिसेंट का भी काफी दबाव था क्योंकि वे हिन्दुस्तान