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भोजन और उसके कार्य Food and its functions

भोजन और उसके कार्य भोजन क्या है और भोजन के क्या कार्य हैं? आइए, इसके बारे में पढ़ें। भोजन शब्द का संबंध शरीर को पौष्टिकता प्रदान करने वाले पदार्थों से है। भोजन में वे सभी ठोस, अर्द्ध-तरल और तरल पदार्थ शामिल हैं, जो शरीर को पौष्टिकता प्रदान करते हैं। आप जानते है कि भोजन आपके शरीर की एक मूलभूत आवश्यकता है। कभी आपने विचार किया है कि ऐसा क्यों है? भोजन में कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं जो हमारे शरीर के लिए महत्वपूर्ण कार्य करते हैं । भोजन से मिलने वाले इन रासायनिक पदार्थों को पोषक तत्व कहते हैं। यदि ये पोषक तत्व हमारे भोजन में उचित मात्रा में विद्यमान नहीं हों तो इसका परिणाम अस्वस्थता या कई बार मृत्यु तक हो सकती है। भोजन में पोषक तत्वों के अलावा, कुछ अन्य रासायनिक पदार्थ भी होते हैं जिनको अपोषक तत्व (non-nutrients) कहते हैं- जैसे कि भोजन को उसकी विशेष गंध देने वाले पदार्थ, भोजन में पाए जाने वाले प्राकृतिक रंग, आदि। इस प्रकार, भोजन पोषक तत्वों और अपोषक तत्वों का जटिल मिश्रण है। भोजन के कार्य  आप यह जानते हैं कि भोजन कई पोषक तत्वों का सम्मिश्रण होता है। आपको यह जानकार आश्चर्

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चीन के राष्ट्रवाद को उदय देने वाले कारक- historyindiaworld.blogspot.com

                  राष्ट्रवाद का उत्थान चीन में राष्ट्रवाद के तीन विभिन्न लेकिन परस्पर संबंधित तत्व रहे :  i) पहले, राष्ट्रवाद का अर्थ होता था। का विरोध और उससे संघर्ष करना।  ii) दूसरे, राष्ट्रवाद एक ऐसे मज़बूत, आधुनिक और केंद्र-केंद्रित राष्ट्र-राज्य की मांग करता था जो न केवल साम्राज्यवाद को पीछे धकेल दे, बल्कि देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में उसकी नई आकांक्षाओं को आगे भी बढ़ाए।  iii) तीसरे, राष्ट्रवाद का अर्थ होता था मांचू (चिंग) वंश को उखाड़ फेंकना। इन तीन तत्वों में से, साम्राज्यवाद का विरोध निश्चित रूप से सबसे महत्वपूर्ण था।   साम्राज्यवाद का प्रतिरोध  बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में, "प्रभुसत्ता के अधिकारों की बहाली" प्रत्येक प्रबुद्ध चीनी का आदर्श वाक्य बन गया। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक "राष्ट्रीय प्रभुसत्ता" और प्रभुसत्ता के अधिकार" जैसे पश्चिमी शब्द सरकरी दस्तावेजों में आ गए थे। कुछ ही  वर्षों में वे चीनी शब्द भंडार के अभिन्न अंग बन गए। अफीम युद्ध के समय से, चीन पर बाहरी आक्रमण होते रहे। प्रत्येक

औद्योगिक केंद्रण तथा जैबात्सु

औद्योगिक केंद्रण तथा जैबात्सु अंतर्यद्ध वर्षों के दौरान जापान में औद्योगिक एकाधिकार में काफी वृद्धि हुई। एकाधिकार से तात्पर्य उस स्थिति से है जबकि किसी विशेष उपभोग की वस्तु के उत्पादन में कुछ ही उत्पादनकर्ता शामिल हों। प्रतियोगिता के अभाव में कई बार उत्पादित वस्त के दाम बहुत अधिक होते हैं। इन वर्षों के दौरान जैबात्सू की भूमिका औद्योगिक केंद्रण की थी। जैबात्सू से अभिप्राय विशाल व्यापारिक घरानों से है, लेकिन इन व्यापारिक घरानों के कार्य क्षेत्र एवं स्वार्थ अलग-अलग थे। इन वर्षों में जापान में मित्सुई, मित्सुबिशी, सुमितोमो, तथा यासूदा जैसे चार बड़े जैवात्सू थे।  1920 के दशक की कुछ वित्तीय मुश्किलों के कारण सरकार ने कुछ निश्चित उपायों को लागु किया। इसका परिणाम यह हुआ कि बैंकों की संख्या में गिरावट आई। 1918 में बैंकों की संख्या 2285 थी वह 1930 में 1913 रह गई। 1928 में मित्सुई, मित्सुबिशी, दादू इची, सुमी तोमो तथा यासूदा जैसी "बड़ी पांच" बैंकों के पास सभी सामान्य बैंकों की 34 प्रतिशत पंजी जमा थी। इन पांच बड़े बैंकों में से चार पर जैबात्सू का नियंत्रण था। सुदृढ़ीकरण की प्रक

मैसूर और हैदराबाद राज्य निर्माण की प्रक्रिया

          Amazon books       MY YOUTUBE CHANNEL मैसूर मैसूर राज्य हैदराबाद के दक्षिण में था (देखिए मानचित्र)। 18वीं शताब्दी में, वोडयार से लेकर ल्तान तक, मैसूर के सभी शासकों को एक ओर तो मराठों के विस्तारवाद की चुनौती का मना करना पड़ा तो दूसरी ओर हैदराबाद और कर्नाटक के विस्तारवाद की चनौती से निपटना पटा और अंग्रेजो ने इस स्थिति का फायदा उठाया। 18वीं शताब्दी की जो जानी-मानी हस्तियाँ में से एक टीपू सुल्तान था जो अंग्रेजों की बढ़ती ताकत से टक्कर लेने वाला एक लोक नायक बन गया और अंग्रेज़ उसे सत्ता हथियाने की राह का कांटा मानते थे। मैसूर को विजय नगर साम्राज्य को वाइसरायों से बदल कर वोडयार वंश ने उसे एक स्वायत्तशासी राज्य बना दिया। अब मैसूर को दक्षिण भारत में एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित करने का तरदायित्व हैदरअली और उसके बेटे टीपू सुल्तान पर था। हैदर मामूली खानदान से था और उसके समय के उसके विरोधी अंग्रेज़ उसे अक्सर उपहारी (या, हड़प लेने वाला) कहते थेइस बात का असर बाद के इतिहासकारों में भी देखने को मिलता है। लेकिन वह उसी मायने में उपहारी था जिस मायने में मैसूर का वह प्रधान मंत्री या

भारत मे सिविल सर्विस civil services की विकास कैसे हुआ?

सिविल सर्विस सिविल सर्विस का मख्य कार्य कानन लाग करना और राजस्व की वसली करना था। अपने । सैनिक और धार्मिक कार्यों में रत सहायकों से नागरिक अधिकारियों को अलग करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार (सिविल सर्विस) शब्द का इस्तेमाल किया। पहले यह सेवा' केवल व्यापार तक ही सीमित थी, परंत धीरे-धीरे यह सिविल सर्विस में परिणत हो गई। शरू से ही इस सेवा में पदानक्रम की व्यवस्था थी-प्रशिक्षार्थी, लेखक, कारिंदा, कनिष्ठ व्यापारी और उसके ऊपर वरिष्ठ व्यापारी। वरिष्ठ व्यापारियों के बीच से गवर्नर जैसे उच्च पदों के लिए लोगों को चना जाता था। यह पदानक्रम 1839 तक चला। इन पदों पर नियुक्ति करने का विशेषाधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को प्राप्त था। इनके द्वारा नियक्त अधिकारी भ्रष्टाचार, घसखोरी और अवैध निजी व्यापार में व्यस्त रहते थे। कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के संरक्षण की नीति के कारण पनप रहे इस भ्रष्टाचार को कार्नवालिस ने रोकने की कोशिश की। उसने उनपर कछ प्रतिबंध लगाए (जैसे निजी व्यापार पर रोक लगा दी गई) परंत मआवजे के तौर पर उनका वेतन बढ़ा दिया। उदाहरण के तौर पर एक कलक्टर को प्रति महीन