मोर्टिमर व्हीलर और स्टुआर्ट पिगत जैसे पुरातत्विदों का मत था की हड़प्पा-सभयता के नगरों की संरचना और बनावट में असाधारण प्रकार की एकरूपता थी Hadapaa sabhyata ki nagar yojna नगर-योजना ancient history

                        नगरयोजना

 मोर्टिमर व्हीलर और स्टुआर्ट पिगत जैसे पुरातत्विदों का मत था की हड़प्पा-सभयता के नगरों की संरचना और बनावट में असाधारण प्रकार की एकरूपता थी| प्रत्येक नगर दो भागो में बता होता था! एक भाग में ऊँचा दुर्ग होता था जिसमे शाशक और राजघराने के लोग रहते थे! नगर के दूसरे में शाषित और गरीब लोग रहते थे! योजना का अभिनता का अर्थ यह भी है की यदि आप हड़प्पा की सड़को पर घूमने निकले तो आप पाएंगे की वहां की घर मंदिर खलिहान ार गालिया बिकुल वैसी हैं जैसी मोहनजोदड़ो की या हडप्प्पा-सभ्यता की अन्य किसी भी नगर की! संकल्पना की अभिन्नता का यह विचार उन विदेशी समुदायों से लिया गया था जिन्होंने अकस्मात् हमला करके सिंधु घाटी को जीत लिया और नए नगरों का निर्माण किया ! इन नगरों की योजना ऐसी की गयी थी जिसमे की वहां के मूल निवासियों को शाशकुअरग से अलग रखा जा सके! इस तरह शाशकों ने ऐसे किलों का निर्माण किया जिनमे वे आम जनता से अलग-थलग शान से रह सके! आजकल विद्वान अब इन विचारों को अष्विकार कर रहे है! की हड़प्पा सभ्यता के नगरों का निर्माण अकस्मात् हुआ और उनकी योजना में एकरूपता थी! हड़प्पा सभयता के शहर नदियों के बाढ़ वाले मैदानों रेगिस्तान के किनारों पर या समुद्री तात पर स्थित थे! इसका मतलब है की अलग-अलग छेत्रों में रहने वाले लोगों को तरह-तरह की प्रकृतियों का सामना करना पड़ा! 

जब उन्होंने स्वयं को वातावरण के अनुकूल ढालना सीखा तो उन्हें अपनी नगर-योजना और जीवन शैली में भी विविधता लाने पर विवश होना पड़ा! बहुत सी बड़ी और महत्वपूर्ण इमारतें निचले नगर में स्थित थी! जब कुछ महत्वपूर्ण बस्तियों की योजना पर फिर से विचार किया जाएगा!इन शहरो के पश्चिम में किला बना होता था! और बस्ती के पूर्वी सिरे पर निचे एक नगर बसा होता था! यह ऊँचे चबूतरे पर कच्ची ईटों से बनाया जाता था! जो संभवतः ऐसा प्रतीत होता है की ये प्रशाशनिक और धार्मिक केन्द्रो के रूप में काम करते थे!निचले शहर में रिहायशी छेत्र होते थे! मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में किलों और ईटो की दिवार होती थी! कालीबंगन में दुर्ग और निचले शहर दोनों के चारो और दिवार थी! निचले शहर में सड़के उत्तर से दक्छिन की ओर जाती थी और समकोण बनती थी! स्पष्टतः सड़के और घरों की पंक्तिबढ़ता से चलता है की नगर-योजना के बारे में वे लोग कितने सचेत थे! फिर भी उन दिनों नगर आयोजकों के पास साधन बहुत सिमित थे! यह पूर्वधारणा मोहनजोदड़ो और कालीबंगन से मिले प्रमाणों पर आधारित है जहां गालियां और सड़के अलाग-अलग ब्लॉकों में अलग-अलग तरह की है और मोहनजोदड़ो के एक भाग मोनार छेत्र में सड़कों तथा इमारतों की पंक्तिबढ़ता शेष छेत्रों से स बिलकुल भिन्न है! मोहनजोदड़ो का निर्माण एक सी सप्पत इकाइयों में नहीं किया गया था! वास्तव में इसका निर्माण अलग-अलग समय में हुआ! हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में भवनों और इमारतों के लिए पक्की ितो का इस्तेमाल किया गया ! कालीबंगन ं कच्ची ितों प्रयोग की गयी! सिंध में कोट-डीजी और आमरी जैसी बस्तियों में नगर की किलेबंदी नहीं थी! गुजरात में स्थित लोथल का नक्शा भी बिलकुल अलग-सा है! यह बस्ति आयताकार थी जिसके चारो तरफ इट की दिवार का घेरा था! इसका कोई आंतरिक विभाजन नहीं था अर्थात इसे दुर्ग और निचले शहर में विभाजित नहीं किया गया था! शहर के पूर्वी सिरे में इटों से निर्मित कुंड सा पाया गया जिसे इसकी खुदाई करने वालों ने बंदरगाह के रूप में पहचाना है! कच्छ में सुरकोतड़ा नामक बस्ती दो बराबर के हिस्सों में बति थी और यह के निर्माण में मूलतः कच्ची मिटटी की ितों के ढेलों का इस्तेमाल किया गया था! 

हड़प्पा सभयता के निवासी पाकी हुई और बिना ईटो का इस्तेमाल कर रहे थे! ितो का आकार एक जैसा होता था! इससे पता चलता है की हर मकान मालिक अपने मकान के लिए ईट ना बना कर कुछ बड़े पैमाने पर ईट बनाने काम होता था! इसी तरह मोहनजोदड़ो जैसी शहरो में सफाई की व्यवस्था उच्च कोटि की थी! घरो से बहने वाली पानी नालियों से हो कर बड़े नालों में चला जाता था जो सड़कों के किनारे एक सिद्ध में होते थे! इस बात से फिर यह संकेत मिलता है की उस जमाने मैं भी कोई ऐसी नागरिक प्रशाशन व्यवस्था रही होगी जो शहर के सभी लोगो के हिट में सफाई सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्णय लेती थी! 
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