हड़प्पा-सभयता की कलाकृतियां नृत्य की मुद्रा में नग्न स्त्री, लाल-पत्थर और सेलखड़ी, मुहरें,



हड़प्पा सभ्यता की खुदाई के दौरान मिली कलाकृतियों से यह जानकारी मिलती है की समाज किस तरह अपने वातावरण अपने परिवेश और परिस्थितियों से जुड़ता है या जुड़ने की कोशिस करता है! कलाकृतियाँ हमें यह भी बताती है की समाज प्राकृतिक मानव और ईश्वर के प्रति क्या विचार रखता है पूर्व आधुनिक समाजों के अधययन में कला और शिल्प को अलग-अलग करना कठिन काम है! परन्तु उन सब का अध्ययन एक साथ किया जायेगा!

मोहनजोदड़ो की खुदाई में पाए गए हड़प्पा सभ्यत की सम्भवता सबसे प्रसीध कलाकृति है! नृत्य की मुद्रा में नग्न स्त्री की एक कांस्यमूर्ति! सर पीछे की ओर झुकाए आँखें झुकी हुई दाई भुजा कूल्हे पर टिकाए और भुजा निचे लटकी हुई दर्शाने वाली यह नृत्य की स्थिर मुद्रा में है! स्त्री प्रतिमा ने बहुत साड़ी चूड़ियां पहाँइ हुई है! औ उसके बालों को सुन्दर वेणी बानी हुई है! इस मूर्ति को हड़प्पा_कला का अद्वितीय नमूना मन जाता है! भैंसे और भेंड़ की छोटी-छोटी कांस्यकि दो पशुवो की मुद्राओं को सुन्दर ढंग से पेश किया गया है! खिलोनो के रूप में पाईगई कांस्य की दो गाड़िया भी बहुत आकर्षक एवं प्रशिद्ध हैं! हालांकि इनमे से एक हड़प्पा में और दूसरा 650km दूर चन्हूदड़ो में फिर भी दोनों की बनावट एक जैसी है!

मोहनजोदड़ो में पाए गई दाढ़ी वाले सर की प्रस्तर प्रतिमाभी बड़ी प्रशिद्ध कलाकृति है! चेहरे पर दाढ़ी है परन्तु मुछ नहीं है! अर्ध-मुद्रित आँखे शायद विचारमग्न मुद्रा को दर्शाती है! बै कंधे के दोनों और एक आवरण पड़ा है! जिस पर तिपतिया पैटर्न की सुन्दर नक़्क़शी की हुई है! कुछ विद्वानों का मन्ना है की यह पुजारी की अर्ध-प्रतिमा है!
हड़प्पा की खुदाई में पाई गई दो पुरुष की अर्ध मूर्तियाओ के बारे में यह भी कहा जा सकता है की वे बाद के युग की रहि होंगी! प्रतिमा के मांसल भागों को इस खूबसूरती और वास्तविकता से ताशा गया है! की अपनी कल-कृतियों के लिए प्रस्तर या कैसे का इस्तेमाल बहुत अधिक नहीं करते थे! इस तरह की कालकृतियाँ बहुत कम संख्या में पाई गई हैं!
हड़पा-सभ्यता की बस्तियों से पक्की मिटटी की लघु मूर्तियां बड़ी संख्या में पाई गई है! इनका प्रयोग खिलोनो या पूजा-उपासना के लिए किया जाता था! ये लघु मूर्तियां विभिन्न तरह के पक्छियों और कुबध्दार तथा कुबारहरहित सांडो की है! स्त्री और परुषों की छोटी-छोटी मूर्तियां भी बड़ी तादाद में मिली हैं! पक्की मिटटी की तरह-तरह की गाड़ियों-ढेलों के नमूने भी मूर्ति कला में अस्सद्धारण सजीवता को प्रदर्शित करते है! इन नमूनों को देखकर लगता है की आधुनिक काल में इस्तेमाल की गई बैलगाड़ियों का स्वरुप हड़प्पा-युग की बैलगाड़ियों का ही परिवर्तित रूप है!

हड़प्पा-सभ्यता के लोग गोमेद फिरोजा लाल-पत्थर और सेलखड़ी जैसे बहुमूल्य एवं अर्ध-कीमती पत्थरों से बने अति सुन्दर मनको का प्रयोग करते थे! इन मनको को बनाए जाने की प्रक्रिया चन्हूदड़ो के एक कारखाने के पाए जाने से स्पष्ट हो जाती है! इस प्रक्रिया में पत्थर को ारी से काट कर पहले तो आयताकार छड़ में बदल दिया जाता था फिर उसके बेलनाकार टुकड़े करके पोलिश से चमकाया जाता था अंत में चार्ट बरमे या कैसे के नलिकाकार बरमे से उनमे छेड़ किया जाता था! सोने और चंडी के मनके भी पाए गए है मनके बनाने के लिए सबसे अधिक सेलखड़ी का प्रयोग किया जाता था! तिपतिया पैटर्न के बेलनाकार मनको का असंबन्ध विशेष रूप स इ हड़प्पा-सभ्यत से जोड़ा गया है! लाल पत्थर के मनके भी बहुत संख्या में पाए गए है! मोहनजोदड़ो में गहनों का ढेर भी पाया गया है! जिसमे सोने के मनके फीते और अन्य आभूषण साहिल है! चंडी की थालियां भी पाई गई है!
हड़प्पा की बस्तियों से 2000 से अधिक मुहरें पाई गई है! इन्हे प्राचीन शिल्पकारिता के छेत्र में सिंधु घाटी का योगदान मन जाता है! ये आम तौर पर चौकोर होती थी और सेलखड़ी की बानी होती थी लेकिन कुछ गोल मुहरें भी पाई गई है! मुहरों पर अर्ध-चित्रलिपि में संकेत चिन्हों से सम्बन्ध अनेक तरह के जानवरों के आकार बने होते थे! कुछ मुहरों पर केवल लिपि उत्कीर्ण है जबकि कुछ अन्य पर मानव और अर्ध-मानव आकृतियां बानी हुई है! कुछ मुहरों पर ज्यामितीय से सम्बन्धित विभिन्न नमूने बने हुए है! पशु आकृतियों में भरतिया हांथी गावल ब्राह्मणी सांड गेंदा और बाघ प्रमुख है! अनेक तरह के संयुक्त पशु भी दर्शाए गए है! इस तरह की एक आकृति में मनुष्य के चेहरे पर हांथी की सूंड और दांत बने हुए है सर पर सांड के सींग है अग्रभाग मेष का है और पीछे का भाग बाग़ का! अनेक मुहरों में यह आकृति पाई गई है! इस तरह की मुहरों को धार्मिक प्रयोजन के लिए किया जाता होगा! पशुवो से घिरे और योग की मुद्रा में बैठे सिंगयुक्त देवता को दर्शाने वाली मुहरे भगवान् पशुपति से सम्बंधित मन गया है!


हड़प्पा-सभ्यता की कलाकृतियां हमें दो प्रकार से निराश करती है :-
1.पाई गई कलाकृतियों की संख्या बहुत सिमित है
2.उनमे अभिव्यक्ति की उतनी विविधता नहीं है जितनी मिश्र और मेसोटामिया की समकालीन सभ्यताओं की कलाकृतियों में पाई गई है!

हड़प्पा-सभ्यता की प्रस्तर मूर्तिकला मिश्रा के लोगों की मूर्तिकला की तुलना में सिमित और अविकसित थी! पक्की मिट्टी की कलाकृतियां भी स्टार में उतनी अच्छी नहीं थी जितनी की वे जो मेसोपोटामिया में बनाई जाती थी! संभव है की हडप्प-सभ्यत के लोगों ने अपनी कला की अभिव्यक्ति के लिए कपड़ो पर आकृतियां बनाई हों और रनचित्रों का प्रयोग किया हो जो काम टिकाऊ होने के कारन समय के साथ नष्ट हो गए म हों!

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