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उत्तरी राजस्थान की कालीबन्गन स्थान पर आरम्भिक हड़प्पा काल की प्रमाण मिले हैं Kalibangan ancient encyclopedia

कालीबंगन उत्तरी राजस्थान की कालीबन्गन स्थान पर आरम्भिक हड़प्पा काल की प्रमाण मिले हैं! यहां पर लोग कच्ची ईटो के मकानों में रहते थे! इन कच्ची ितों का मानक आकार होता था! वे बस्ती के चारो तरफ दीवारी भी बनाते थे! उन लोगों द्वारा प्रयुक्त मिटटी के बर्तनो के आकार और डिजाइन से अलग था! फिर भी मिटटी के कुछ बर्तन कोटदीजी में पाए गए मिटटी के बर्तनो से मिलते थे! बलि स्तम्भ जैसे मिटटी के बर्तनो के कुछ नमूनों का प्रयोग शहरी चरण के दौरान जारी रहा! इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण खोज थी जुते हुए खेत का तल! इससे सिद्ध होता है की उस समय भी किसान हल के बारे में पहले से ही जानते थे! पुराने हालात में किसान केवल बीज चित्रकार बो सकते थे! या खेतों के खुदाई के लिए फावड़े कुंडली का प्रयोग करते थे! हल से कोई भी व्यक्ति बहुत काम मेहनत से अधिक गहरी खुदाई कर सकता है! इसलिए इसे खेती का उन्नत औजार समझा जाता है जिसमे खाद्य उत्पादन को बढ़ने की शक्ति है!  घग्गर नदी जो भारत में सुखी तलहटी में आरंभिक हड़प्पा की अनेक बस्तियां पाई गयी हैं! ये बस्तियां उन जलमार्गों के पास पासी गयी हियँ जो अब विलुप्त हो गए है! सोथी बाड़ा और सीसवाल

पस्चिमी पंजाब में हड़प्पा प्रसिद्ध है! एक खुदाई के दौरान शहरीकरण की अवस्था से पहले की बस्तियों की खोज की गयी Panjab aur Bahawalpur ancient encyclopedia

                   पंजाब और बहावलपुर पस्चिमी पंजाब में हड़प्पा प्रसिद्ध है! एक खुदाई के दौरान शहरीकरण की अवस्था से पहले की बस्तियों की खोज की गयी! दुर्भांग्यावश अभी तक उनकी खुदाई नहीं हुई है! यहां पाए गैमित्ति के बर्तनों के सामान हैं! विद्वानों का विचार है की ये बस्तिया हड़प्पा में आरंभिक हड़प्पा काल की रही होंगी! बहावलपुर छेत्र में हाकरा नदी की सुखी तलहटी में आरंभिक हड़प्पा काल के लगभग 40 स्थानों का पता लगाया गया है! कोटदीजी में पाए गए मिटटी के बर्तनो से यहां पर भी आरंभिक हड़प्पा सभ्यता का पता चलता है! इन स्थानों का बस्ती के रूप में स्वरुप के तुलनात्मक विश्लेषण से यह ज्ञात होता है के आरंभिक हड़प्पा काल में कई प्रकार के मकान बन गए थे! जबकि कई स्थानों में तो साधारण गांव ही थे और उनमे से कुछा स्थानों में विशिष्ट औधोगिक कार्य हो रहे थे! इसलिए हम देखते है की अधिकतर स्थानों का औसत आकार लगभग पांच से छ: एकड़ और गमनवाला 27.3 हेक्टेयर छेत्र में फैला है! इसका अर्थ यह हुआ की गमनवाला कालीबंगन के हड़प्पा उपनगर से बड़ा था! इन उपनगरों में कृषि के अतिरिक्त अवश्य ही प्रशाशनिक और औधोगिक होते होंगे!           

चौथी सताब्दी ईशा पूर्व के मध्य तक सिंधु के कचहरी मैदान परिवर्तन का केंद्र बिंदु बन गए Sindhu chhetra ancient encyclopedia

                                          सिंधु छेत्र चौथी सताब्दी ईशा पूर्व के मध्य तक सिंधु के कचहरी मैदान परिवर्तन का केंद्र बिंदु बन गए! सिंधु नदी और घग्गर-हाकरा नदियों के किनारों पपर बहुत सी छोटी और बड़ी बस्तियां बस गयी! यह छेत्र हड़प्पा की सभ्यता का मुख्य छेत्र बन गया! इस चर्चा में हम यह बताने का प्रयास करेंगे की किस प्रकार इन घटनाओं से हड़प्पा की अनेक विशेषताओं का पता चला! १ . आमरी -  सिन्धु घाटी के निचले मैदानों के सामान सिंधु प्रान्त के विकास का पता चलता है! आमरी में मिले मकानों के अवशेषों से पता चलता की लोग पत्थर और मिटटी की ीेटों के मकानों में रहते थे! उन्होंने अनाज को रखने के लिए अनाज के कोठार(अन्नागार) भी बनाए थें!वे मिटटी के बर्तनो पर भारतीय कुबड़े बैलों जैसे जानवरों के चित्र बनाते थे! यह चित्र पूर्ण विकसित हड़प्पा काल में बहुत लोकप्रिय था! वे चाक पर बने मिटटी के बर्तनों का भी प्रयोग करते थे! थारो और लोहरस बूठि जैसे स्थानों से भी ऐसी ही वस्तुएं पाई गयी! यहां पर हड़प्पा की सभ्यता के शुरू होने से पहले ही उन्होंने अपनी बस्तियों की किलेबंदी कर ली था! 2 . कोटदीजी - मोहनज

बलूचिस्तान मध्य और दच्छिनी बलूचिस्तान में अंजीर तोगाऊ निंदावादी और बालाकोट जैसी बस्तियां हमें आरंभिक हड़प्पा सभयता के समाजो की जानकारी देती है Madhya aur dachchhini Rajasthan indian history

                                                               historyindiaworld.blogspot.com                                            मध्य और दच्छिनी बलूचिस्तान मध्य और दच्छिनी बलूचिस्तान में अंजीर तोगाऊ निंदावादी और बालाकोट जैसी बस्तियां हमें आरंभिक हड़प्पा सभयता के समाजो की जानकारी देती है! घाटी की व्यवस्था के अनुसार गांव और उपनगर विकसित हुए! बालाकोट में विशाल इमारतों के अवशेष पाए गए हैं! इस छेत्र की कई बस्तियों से फारस की कड़ी से संपर्क का पता चलता है! बालाकोट में जो लोग सबसे पहले बेस उसी प्रकार के मिटटी के बर्तनों का प्रयोग करते थें! जिस प्रकार के मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग बलूचिस्तान के समकालीन गाओं के लोग करते थे किन्तु कुछ समस्य पश्चात उन्होंने सिंधु नदी के कचहरी मैदान में प्रयुक्त किए जाने वाले मिटटी के बर्तनो के सामान ही मिटटी के बर्तनों का प्रयोग करना भी आरम्भ कर दिया था! हमारे लिए महत्वपूर्ण बार यह है की सम्पूर्ण बलूचिस्तान प्रान्त के लोग एक ही प्रकार के मिटटी के बर्तनों का प्रयोग करते थें! इस प्रकार उन पर एक ओर पारस की कड़ी के नगरों का तथा दूसरी ओर सिंधु घाटी के नगरो

मध्य और दच्छिनी बलूचिस्तान में अंजीर तोगाऊ निंदावादी और बालाकोट जैसी बस्तियां हमें आरंभिक हड़प्पा सभयता के समाजो की जानकारी देती है

                          मध्य और दच्छिनी बलूचिस्तान मध्य और दच्छिनी बलूचिस्तान में अंजीर तोगाऊ निंदावादी और बालाकोट जैसी बस्तियां हमें आरंभिक हड़प्पा सभयता के समाजो की जानकारी देती है! घाटी की व्यवस्था के अनुसार गांव और उपनगर विकसित हुए! बालाकोट में विशाल इमारतों के अवशेष पाए गए हैं! इस छेत्र की कई बस्तियों से फारस की कड़ी से संपर्क का पता चलता है! बालाकोट में जो लोग सबसे पहले बेस उसी प्रकार के मिटटी के बर्तनों का प्रयोग करते थें! जिस प्रकार के मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग बलूचिस्तान के समकालीन गाओं के लोग करते थे किन्तु कुछ समस्य पश्चात उन्होंने सिंधु नदी के कचहरी मैदान में प्रयुक्त किए जाने वाले मिटटी के बर्तनो के सामान ही मिटटी के बर्तनों का प्रयोग करना भी आरम्भ कर दिया था! हमारे लिए महत्वपूर्ण बार यह है की सम्पूर्ण बलूचिस्तान प्रान्त के लोग एक ही प्रकार के मिटटी के बर्तनों का प्रयोग करते थें! इस प्रकार उन पर एक ओर पारस की कड़ी के नगरों का तथा दूसरी ओर सिंधु घाटी के नगरों का प्रभावों का पता चलता है! वे अपने मिटटी के बर्तनों पर कुबड़े बैल और पीपल के चिन्हों का प्रयोग करते थे जो विकसित

मुदिगक के दच्छिन पूर्व की ओर क्वेटा घाटी है! डैम्प सादात नमक स्थान में बड़े-बड़े ईटों के घर पाए गए है indian history

                                                                         historyindiaworld.blogspot.com                                                        क्वेटाघाटी                              मुदिगक के दच्छिन पूर्व की ओर क्वेटा घाटी है! डैम्प सादात नमक स्थान में बड़े-बड़े ईटों के घर पाए गए है जिनका सम्बन्ध तीसरी सताब्दी इसा पूर्व के आरम्भ से है! कई प्रकार के चित्रकारी किए हुए मिटटी की मोहरों और ताम्बे की वसुओं का भी प्रयोग करते थे! इन खोजो से उस समय के समुदायों की सम्पन्नता का संकेत मिलता है जिन्होंने अपनी खाद्य समस्या सुलझा ली थी और दूर के छेत्रों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए थे! इसी प्रकार आस-पास के छेत्रों से भी विशिष्ट कला और मिटटी के बर्तनो की परम्पर के बारे में जानकारी मिली है! राणा हुंडई नामक स्थान में लोग बारीकी से बने हुए तथा चीत्कारी किए मिटटी के बर्तनों तथा क्वेटा घाटी में पाए गए मिटटी के बर्तनों में सुस्पष्ट समानताए पाई गयी! एक अन्य स्थान परिजनों घड़ी जिसकी खुदाई की गयी है ने भी एक विशिष्ट प्रकार की स्त्रियों की छोटी-छोटी मूर्तियां पाई गयी हैं!            

दच्छिनी अफगानिस्तान में मुंडीगाक नामक स्थान है! ऐसा प्रतीत होता है हड़प्पा काल प्रमुख शहर indian history

                                                      हड़प्पा काल प्रमुख शहर दच्छिनी अफगानिस्तान में मुंडीगाक नामक स्थान है! ऐसा प्रतीत होता है की यह स्थान व्यापारिक मार्ग पर रहा होगा सिंधु सभ्यता के आरंभिक काल में इस स्थान के निवासी शिल्पकृतियों का प्रयोग करते थे जिनसे एक और ईरान के कुछ नगरों और दूसरी ओर बलूचिस्तान के कुछ नगरों के साथ संबंधों का पता चलता है!खानाबदोश लोगों के कुछ समूहों द्वारा पड़ाव डालने की धीमी शुरुआत से यह स्थान एक घनी आबादी वाला नगर हो गया! इस बात के प्रमाण हैं की यहाँ ऊँची दिवार होती थी! जिसमे धुप सुखाई गयी ईटें के वर्गाकार भवन जिसमे खम्भों की कतारें थी महल के रूप में पहचाना गया है! दूसरा विशाल भवन मंदिर जैसी प्रतीत होती है! इसी स्थान पर मिटटी के बर्तनो की अनेक किस्में भी मिली है! वेलोग प्राकृतिक सहावत के रूप में चिड़ियों लामनबे सिंघ्ह वाले जंडली बकरे बैल और पीपल के पेड़ों को चित्रित करते थे! पक्की मिटटी की बनी हुई स्त्रियों की छोटी-छोटी मूर्तियां भी मिली हैं जो बलूचिस्तान की बस्तियों में पाई गयी मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं! वे कांसे की मूठदार कुल्हाड़ियों और बसल