चौथी सताब्दी ईशा पूर्व के मध्य तक सिंधु के कचहरी मैदान परिवर्तन का केंद्र बिंदु बन गए Sindhu chhetra ancient encyclopedia

                

                        सिंधु छेत्र


चौथी सताब्दी ईशा पूर्व के मध्य तक सिंधु के कचहरी मैदान परिवर्तन का केंद्र बिंदु बन गए! सिंधु नदी और घग्गर-हाकरा नदियों के किनारों पपर बहुत सी छोटी और बड़ी बस्तियां बस गयी! यह छेत्र हड़प्पा की सभ्यता का मुख्य छेत्र बन गया! इस चर्चा में हम यह बताने का प्रयास करेंगे की किस प्रकार इन घटनाओं से हड़प्पा की अनेक विशेषताओं का पता चला!

.आमरी-
 सिन्धु घाटी के निचले मैदानों के सामान सिंधु प्रान्त के विकास का पता चलता है! आमरी में मिले मकानों के अवशेषों से पता चलता की लोग पत्थर और मिटटी की ीेटों के मकानों में रहते थे! उन्होंने अनाज को रखने के लिए अनाज के कोठार(अन्नागार) भी बनाए थें!वे मिटटी के बर्तनो पर भारतीय कुबड़े बैलों जैसे जानवरों के चित्र बनाते थे! यह चित्र पूर्ण विकसित हड़प्पा काल में बहुत लोकप्रिय था! वे चाक पर बने मिटटी के बर्तनों का भी प्रयोग करते थे! थारो और लोहरस बूठि जैसे स्थानों से भी ऐसी ही वस्तुएं पाई गयी! यहां पर हड़प्पा की सभ्यता के शुरू होने से पहले ही उन्होंने अपनी बस्तियों की किलेबंदी कर ली था!

2.कोटदीजी-
मोहनजोदड़ो के सामने सिंधु नदी के बाएं किनारे पर कोटदीजी नामक है! आरंभिक हड़प्पा काल में यहाँ के निवासियों ने अपनी बस्ती के चारो ओर अति विशाल सुरछात्मक दिवार बना ली थी! उनकी सबसे बढ़िया खोज मिटटी के बर्तनो का प्रयोग करते थे जिन पर गहरे भूरे रंग की साधारण धारियों की सजावट होती थी! इस प्रकार के मिटटी के बर्तन राजस्थान और बलूचिस्तान में मेहरगढ़ जैसे दूर-दराज के स्थानों में बेस पूर्व हड़प्पा काल के निवासियों के बताए जाते हैं! कोटदीजी के मिटटी के बर्तनों की किस्में सिंधु नदी के आस-पास के सम्पूर्ण भू-भाग में पाई गयी हैं!जहाँ पर हड़प्पा के पूर्व-शहरी और शहरी अवश्था से सम्बंधित बस्तियों के बारे में जानकारी मिली है! मिटटी के बर्तनों का सामान रूप से सजावट की इस प्रवृत्ति से यह संकेत मिलता है की सिंधु नदी के मैदानी भागों में रहने वाले लोगों के बीच घनिष्ट सम्बन्ध थे! इससे हड़प्पा की सभयता में संस्कृतियों के मूल की प्रक्रिया का भी पूर्वाभास मिलता है! मिटटी के बर्तनों के अनेक चित्रकारी शहरी अवश्था तक शेष रहे! उसी समय के अन्य मिटटी के बार्न मुंडीगाक में बने पाए गए! इससे पता आरंभिक हड़प्पा के स्थानों में विस्तृत आपसी संबंधों का पता चलता है! पुरातत्वेत्ता में मोहनजोदड़ो में इस मैदान की आधुनिक स्टार के 39 फुट निचे तक खुदाई करके अधिभोग नीछेप का पता लगाया है! मोहनजोदड़ो में शुरू के स्टार तक खुदाई नहीं हो पाई है परन्तु पुरातत्वेत्ताओं का यह विश्वास है की अनेक रहन-सहन के ढंग से आरंभिक हड़प्पा की संस्कृति की जानकारी मिलती है जो सम्भतः कोटदीजी की संस्कृति से मेल कहती है!

3.मेहरगढ़-
इससे पहले भी हम मेहरगढ़ स्थल के बारे में बता चुके है! हड़प्पा के शहरीकरण के परवर्ती काल में मेहरगढ़ अस्थल के लोगों ने एक सम्पन्न उपनगर बसाया था! वे पत्थरों की कई प्रकार की मालाए बनाते थे! वे कीमती पत्थर लाजवर्द मणि का प्रयोग करते थे जो केवल मध्य एशिया के बदख्शाँ छेत्र में पाया जाता है! बहुत सी मोहरों और ठप्पों का भी पता चला है!
आपसी लेंन-देंन में प्राधिकाइयों के चिन्ह रूप में इन मोहरों का प्रयोग होता था!मेहरगढ़ की मोहरों का प्रयोग सम्भवताः व्यापारियों द्वारा दूर-दराज के छेत्रों को भेजे जाने वाले माल की गुणवत्ता की गारंटी देने के लिए किया जाता था! मिटटी के बर्तनो के डिजाइन मिटटी की बनी मूर्तियां ताम्बे और पत्त्थर की वस्तुओं से पता चलता है की इन लोगों का ईरान के निकटवर्ती नगरों के साथ घनिष्ट सम्बन्ध था ! मेहरगढ़ के लोगों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले अधिकतर मिटटी के बर्तन डैम्प सादात और क्वेटा घाटी की बस्तियों में प्रयुक्त किए जाने वाले बर्त्तनों से मिलते हैं! वे जॉब घाटीमे पाई गयी मूर्तियों से बहुत कुछ मिलता जुलती हैं! इन समानताओं से उस छेत्र में रहने वाले समुदायों के बिच निकट आपसी संबंधों का पता चलता है!

4.रहमान ढेरी
यदि हम सिंधु नदी के उत्तर की ओर चलें तो हमें कुछ और बस्तियां मिलेंगी जिनसे हमें यह पता चलता है की आरंभिक हड़प्पा काल में लोग डिस प्रकार रहते थे! रहमान ढेरी नामक स्थान पर आरंभिक सिंधु उपनगर की खुदाई की गयी है! यह उपनगर आयताकार था! और इसमें घर सड़कें गलियां नियोजित ढंग से बनेर हुए थे! इस उपनगर की सुरच्छा के लिए एक विशाल दिवार थी यहां भी फिरोजी और नीलम के मनके मिले है! इससे उनके मध्य एशिया के साथ संबंधों का पता चलता है! बर्तनो के टुकड़ों पर पाए गए असंख्य भित्ति चित्र हडपपालिपि के पूर्वसूचक हो सकते हैं! इस छेत्र में मिटटी के बर्तनों की स्वतंत्रता परम्परा धीरे-धीरे बदल गई ताम्बे और कैसे से बनी मोहरें और औजार भी मिले हैं!

5.तरकाई किला
बन्नू छत्रे के उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त में तारकई की किलेबंदी का प्रमाण भी मिला है! पुरातत्विदों ने खाद्द्यान्नों के बहुत सरे नमूने खोज निकले हैं जिनमे गेहूं और जो मुंग-मसूर की डालें और देसी मटर के नमूने शामिल हैं! फसल काटने के औजारों का भी पता चला है! उसी छेत्र में लिवन नामक स्थान पर पत्थर के औजार ानने के एक बहुत बड़े कारखाने जका पता चला है! हड़प्पा के निवासी और उनके पूर्वज लोहे और ताम्बे के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं थी! अतः अधिकतर लोग पत्थर से बने औजारों का प्रयोग में औजार बांये जाते थे! इसलिए कुछ स्थानों पर जहाँ अच्छी श्रेणी का पत्त्थर उपलब्ध था बड़ी संख्या में औजार बनाए जाते थे और उसके बाद उन औजारों को दूर-दूर के नगरों और गाओं में भेजा जाता था! लिवान में लोग पत्थर के कुल्हाड़ी हथौड़े चक्कियां आदि बनाते थे! इस काम के लिए वे निकटवर्ती छेत्रों से भी उपयुक्त चट्टानी पत्थर मंगाते थे! नीलम और मिटटी की जबानी मूर्त्याओं के पाए जाने से मध्य एशिया के साथ संबंधों का पता चलता है! सरायखोला नामक स्थान पर जो पश्चिम पंजाब के उत्तरी किनारे पर स्थित है एक अन्य आरंभिक हड़प्पा बस्ती का पता चला है! यहां पर भी लोग कोट डीजी जैसे मिटटी के बर्तनों का प्रयोग करते थे!
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