भारत का नाम भारत कैसे पड़ा? Bharat ka naam bharat kaise pada

 जिस देश को हम भारत कहते हैं, उसका नाम कब और किस आधार पर रखा गया, इसके विषय में स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। इसको लेकर कई मत हैं!

पौराणिक परंपरा के अनुसार इस देश का नामकरण राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर हुआ।शकुंतला को विश्वामित्र की पुत्री बताया जाता है, परंतु विश्वामित्र स्वयं अपने को भरत की संतान या भरतवंशीय बताते हैं और भरतों के शौर्य पर गर्व भी करते हैं। विश्वामित्र के आश्रयदाता रह चुके सुदास को भी भरतवंशीय बताया गया है, जबकि उनकी एक अन्य पहचान त्रित्सु या त्रित के वंशधर की भी है। वशिष्ठ ऋषि कहते हैं कि जब तक उन्होंने भरतों का पुरोहित पद नहीं ग्रहण किया था, तब तक भरतों के बीच बहुत फूट थी। वे परस्पर बिखरे हुए थे और उनका मनोबल गिरा हुआ था। गायों के झुंड में से किसी एक को एक डंडा मारते ही जैसे गायें इधर-उधर भागने लगती हैं, उसी तरह ये भाग खड़े होते थे। वशिष्ठ के पुरोहित बनने के बाद वे सबसे शक्तिशाली हो गए। इसमें अपनी प्रशंसा करने के लिए वशिष्ठ ने भरतों के विषय में कुछ अतिशयोक्ति से भी काम लिया हो सकता है, परंतु इतना तो सच ही है कि इससे पहले भरतों का वैसा प्रभाव नहीं था, जो वशिष्ठ के नेतृत्व में प्राप्त हुआ।

एक ही जन अपने को त्रित का वंशधर अथवा त्रित्सु कहे और साथ ही भरत भी कहे, यह कुछ विचित्र लगता है। भरत का एक अर्थ आग भी होता है। अर्जुन का भी अर्थ आग होता है। इसीलिए अर्जुन के लिए कृष्ण भारत ' शब्द का भी प्रयोग करते हैं। यह माना जा सकता है कि यज्ञ-याग करने वाले क्षेत्र के लोग अपने को भरत कहते रहे हों और इनके प्रभाव क्षेत्र के लिए बहुत पहले से 'भारत' शब्द प्रचलित रहा हो। ऋग्वेद में एक युद्ध का वर्णन है, जिसमें दस राजाओं का सामना सुदास नाम के एक राजा को अकेले करना पड़ा था। इसी के कारण इसे दाशराज्ञ युद्ध कहा जाता है। इसमें सुदास को दैवी चमत्कार से अपने विरोधियों को हराने में सफलता मिली थी। इसमें सम्मिलित जनों या राजाओं में से शिव, पक्थ, भलान और विषाणी पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी अफगानिस्तान के कबीले बताए जाते हैं। तुर्वश, यदु, दुघु और भृगु का संबंध काठियावाड़ और गुजरात के तटीय क्षेत्रों से है। इनमें मत्स्यों का भी उल्लेख है। ये राजस्थान के थे। अंतिम हैं पुरु, जो सरस्वती के निचले हिस्से से संबंध रखते थे। यदि इतने विशाल क्षेत्र के प्रतिद्वंद्वियों को सुदास ने पराजित किया था, तो भरतों का प्रभाव एक तरह से उस पूरे क्षेत्र में फैला होगा। इसमें एक तरह से हड़प्पा सभ्यता का समग्र विस्तार सिमट जाता है। ऋग्वेदिक सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता एक ही सभ्यता के दो नाम हैं (हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य)। इसके बाद भी हम बहुत आश्वस्त होकर यह दावा नहीं कर सकते कि इस पूरे क्षेत्र के लिए, उस समय, भारतवर्ष या भारत शब्द का प्रयोग होता था या नहीं। ऋग्वेद में पुरुओं पर सुदास की विजय और साम्राज्य के विस्तार का उल्लेख एक दूसरे स्थल पर भी आया है।


इसे ही यजुर्वेद और शतपथ ब्राह्मण में दोहराया गया है। उक्त ऋचा में भरतों के अग्नि की प्रशंसा में कहा गया है कि 'भरतों के इस अग्नि की ख्याति बहुत अधिक है। भरतों के यज्ञ के अग्निदेव सूर्य की तरह चमकते हैं। इन्होंने ही युद्ध में पुरु को परास्त किया था।'

भरत का एक अर्थ सबका भरण करने वाला है, जिसे व्यवहारी या वितरण करने वाला, वणिक, कहा जा सकता है। दूसरा अर्थ यज्ञ में आहुति आदि अर्पित करने वाला यजमान है, क्योंकि वह यज्ञ करता है तो वर्षा होती है और वर्षा से ही खेती संभव हो पाती है, जिससे पूरे संसार का पालन होता है। भरत शब्द का संग्रामभूमि और भारत का युद्ध के आशय में भी प्रयोग मिलता है। महाभारत का अर्थ है महायुद्ध अर्थात् महायुद्ध की कथा।अतः यह भी संभव है कि कोई गण अपने को अधिक बहादुर और अपने क्षेत्र को योद्धाओं का क्षेत्र कहता रहा हो। ऐतिहासिक काल में यौधेय और सौवीर दो गण ऐसे ही थे। इनको देखते हुए यह संभावना भी विचारणीय है।

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