हिन्द का नाम हिंद और हिंद से india कैसे पड़ा/How did Hind and india get its name?
मनुष्य जब पेड़ों और झाडियों से फल, साग और जमीन से कंद जुटाकर या मछली पकड़ कर तथा शिकार करके अपना जीवन निर्वाह करता था, उस समय भी उसके छोटे समूहों ने अपने-अपने क्षेत्र बांट रखे थे। वे जिस रूप में अपना परिचय देते थे अथवा दूसरे उन्हें जिस रूप में पुकारते थे, संभवतः वही उनके क्षेत्र का नाम पड़ जाता था। हमारे देश के कुछ क्षेत्रों के नाम आज भी इसी पर आधारित हैं। अवधी बोलने वाले क्षेत्र के एक हिस्से को बैसवाड़ा कहा जाता है। यहां बैस क्षत्रियों का प्रभाव था और उनके कारण इसका यह नाम पड़ गया।
जिसे हम 'हिंद' कहते हैं, उसे यह नाम ईरानियों ने दिया था। वे सिंध को असल में हेंद' कहते थे और उससे आगे के क्षेत्र में रहने वालों को उन्होंने हिंदू नाम दिया। माना जाता है कि ईरानियों को परास्त करने वाले यूनानियों ने उनसे सुन कर ही इसे 'हिंद' कहना शुरू किया होगा! परंतु उनकी भाषा में 'ह' का उच्चारण नही है इसलिए उनका हिंद इंद' रह गया, जिससे अंग्रेजों का इंडिया यूरोपियनों का इंद/इंड बना!
कुछ मामलों में यह भी संभव है कि जिस प्राकृतिक परिवेश में वे रहते रहे हों, उससे उनकी और उस क्षेत्र की पहचान जुड़ गई हो!
बिरहोर का अर्थ है जंगल का पुरुष। जिन क्षेत्रों में इनका निवास था, उनका नाम बिरहर बिड़हर-बिरहोरों का क्षेत्र है। हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश तक कुछ स्थानों के नाम पर बिरहर बिड़हर है!
इस विषय मे कोई स्पष्ट जानकारी नही है परंतु पुरानी कृतियों मे इस बात के हवाले अवश्य मिलते है कि असूरो ने पूर्व ओर से बैल के चमड़े से नाप कर धरती को आपस बांटना आरंभ किया तो देवों ने कहा कि हम कहाॅ रहेगें! हमारे लिए कुछ भी तो छोड़ो! परंतु यह ऐसे किसी बंटवारे के बहुत बाद में श्रुत परंपरा के आधार पर गढ़ी हुई कहानी है। कारण, आदिम सीमा नाप कर नहीं, भौगोलिक लक्षणों के आधार पर नियत की गई होगी। फिर भी इसमें यह सत्य बचा रह गया है कि वन्य अवस्था में ही मानव समुदायों ने धरती के एक विशेष खंड पर अपना अधिकार जमा लिया था। क्षेत्रीय बंटवारा राष्ट्र अथवा देश की सबसे पुरानी और निसर्गजात समझ है। इसका संबंध जीवन रक्षा और संतान वृद्धि से है। आदिम अवस्थाओं में दूसरे समुदायों के सारे झगड़े जीविका के इसी प्रश्न को लेकर होते थे। अपने 'देश' के लिए प्राण न्योछावर करने या दूसरों के प्राण लेने का संकल्प भी इसी से जुड़ा है। इसी समझ के चलते मनुष्य ने धरती को अपनी मांया पालिका मानना आरंभ किया। गर्म क्षेत्रों में जल और जलस्रोतों के विषय में भी इसी री के कारण आत्मीय संबंध बने। अपने देश के ब प्राचीनतम ग्रंथों में हम धरती को मां और आकाश त को पिता के रूप में कल्पित पाते हैं। इसके साथ व ही नदियों को मां या सबसे बड़ी मां (अंबा,अंबितमा, मातृतमा) और देवी, सबसे बड़ी देवी (देवी, देवितमा) के रूप में भी संबोधित पाते हैं। यह अपनी धरती व उसकी नदियों से आत्मीय लगाव को प्रकट करता है।
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