जिस देश को हम भारत कहते हैं, उसका नाम कब और किस आधार पर रखा गया, इसके विषय में स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। इसको लेकर कई मत हैं! पौराणिक परंपरा के अनुसार इस देश का नामकरण राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर हुआ।शकुंतला को विश्वामित्र की पुत्री बताया जाता है, परंतु विश्वामित्र स्वयं अपने को भरत की संतान या भरतवंशीय बताते हैं और भरतों के शौर्य पर गर्व भी करते हैं। विश्वामित्र के आश्रयदाता रह चुके सुदास को भी भरतवंशीय बताया गया है, जबकि उनकी एक अन्य पहचान त्रित्सु या त्रित के वंशधर की भी है। वशिष्ठ ऋषि कहते हैं कि जब तक उन्होंने भरतों का पुरोहित पद नहीं ग्रहण किया था, तब तक भरतों के बीच बहुत फूट थी। वे परस्पर बिखरे हुए थे और उनका मनोबल गिरा हुआ था। गायों के झुंड में से किसी एक को एक डंडा मारते ही जैसे गायें इधर-उधर भागने लगती हैं, उसी तरह ये भाग खड़े होते थे। वशिष्ठ के पुरोहित बनने के बाद वे सबसे शक्तिशाली हो गए। इसमें अपनी प्रशंसा करने के लिए वशिष्ठ ने भरतों के विषय में कुछ अतिशयोक्ति से भी काम लिया हो सकता है, परंतु इतना तो सच ही है कि इससे पहले भरतों का वैसा प्रभाव