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चीन के राष्ट्रवाद को उदय देने वाले कारक- historyindiaworld.blogspot.com

                  राष्ट्रवाद का उत्थान चीन में राष्ट्रवाद के तीन विभिन्न लेकिन परस्पर संबंधित तत्व रहे :  i) पहले, राष्ट्रवाद का अर्थ होता था। का विरोध और उससे संघर्ष करना।  ii) दूसरे, राष्ट्रवाद एक ऐसे मज़बूत, आधुनिक और केंद्र-केंद्रित राष्ट्र-राज्य की मांग करता था जो न केवल साम्राज्यवाद को पीछे धकेल दे, बल्कि देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में उसकी नई आकांक्षाओं को आगे भी बढ़ाए।  iii) तीसरे, राष्ट्रवाद का अर्थ होता था मांचू (चिंग) वंश को उखाड़ फेंकना। इन तीन तत्वों में से, साम्राज्यवाद का विरोध निश्चित रूप से सबसे महत्वपूर्ण था।   साम्राज्यवाद का प्रतिरोध  बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में, "प्रभुसत्ता के अधिकारों की बहाली" प्रत्येक प्रबुद्ध चीनी का आदर्श वाक्य बन गया। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक "राष्ट्रीय प्रभुसत्ता" और प्रभुसत्ता के अधिकार" जैसे पश्चिमी शब्द सरकरी दस्तावेजों में आ गए थे। कुछ ही  वर्षों में वे चीनी शब्द भंडार के अभिन्न अंग बन गए। अफीम युद्ध के समय से, चीन पर बाहरी आक्रमण होते रहे। प्रत्येक

औद्योगिक केंद्रण तथा जैबात्सु

औद्योगिक केंद्रण तथा जैबात्सु अंतर्यद्ध वर्षों के दौरान जापान में औद्योगिक एकाधिकार में काफी वृद्धि हुई। एकाधिकार से तात्पर्य उस स्थिति से है जबकि किसी विशेष उपभोग की वस्तु के उत्पादन में कुछ ही उत्पादनकर्ता शामिल हों। प्रतियोगिता के अभाव में कई बार उत्पादित वस्त के दाम बहुत अधिक होते हैं। इन वर्षों के दौरान जैबात्सू की भूमिका औद्योगिक केंद्रण की थी। जैबात्सू से अभिप्राय विशाल व्यापारिक घरानों से है, लेकिन इन व्यापारिक घरानों के कार्य क्षेत्र एवं स्वार्थ अलग-अलग थे। इन वर्षों में जापान में मित्सुई, मित्सुबिशी, सुमितोमो, तथा यासूदा जैसे चार बड़े जैवात्सू थे।  1920 के दशक की कुछ वित्तीय मुश्किलों के कारण सरकार ने कुछ निश्चित उपायों को लागु किया। इसका परिणाम यह हुआ कि बैंकों की संख्या में गिरावट आई। 1918 में बैंकों की संख्या 2285 थी वह 1930 में 1913 रह गई। 1928 में मित्सुई, मित्सुबिशी, दादू इची, सुमी तोमो तथा यासूदा जैसी "बड़ी पांच" बैंकों के पास सभी सामान्य बैंकों की 34 प्रतिशत पंजी जमा थी। इन पांच बड़े बैंकों में से चार पर जैबात्सू का नियंत्रण था। सुदृढ़ीकरण की प्रक

मैसूर और हैदराबाद राज्य निर्माण की प्रक्रिया

          Amazon books       MY YOUTUBE CHANNEL मैसूर मैसूर राज्य हैदराबाद के दक्षिण में था (देखिए मानचित्र)। 18वीं शताब्दी में, वोडयार से लेकर ल्तान तक, मैसूर के सभी शासकों को एक ओर तो मराठों के विस्तारवाद की चुनौती का मना करना पड़ा तो दूसरी ओर हैदराबाद और कर्नाटक के विस्तारवाद की चनौती से निपटना पटा और अंग्रेजो ने इस स्थिति का फायदा उठाया। 18वीं शताब्दी की जो जानी-मानी हस्तियाँ में से एक टीपू सुल्तान था जो अंग्रेजों की बढ़ती ताकत से टक्कर लेने वाला एक लोक नायक बन गया और अंग्रेज़ उसे सत्ता हथियाने की राह का कांटा मानते थे। मैसूर को विजय नगर साम्राज्य को वाइसरायों से बदल कर वोडयार वंश ने उसे एक स्वायत्तशासी राज्य बना दिया। अब मैसूर को दक्षिण भारत में एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित करने का तरदायित्व हैदरअली और उसके बेटे टीपू सुल्तान पर था। हैदर मामूली खानदान से था और उसके समय के उसके विरोधी अंग्रेज़ उसे अक्सर उपहारी (या, हड़प लेने वाला) कहते थेइस बात का असर बाद के इतिहासकारों में भी देखने को मिलता है। लेकिन वह उसी मायने में उपहारी था जिस मायने में मैसूर का वह प्रधान मंत्री या

भारत मे सिविल सर्विस civil services की विकास कैसे हुआ?

सिविल सर्विस सिविल सर्विस का मख्य कार्य कानन लाग करना और राजस्व की वसली करना था। अपने । सैनिक और धार्मिक कार्यों में रत सहायकों से नागरिक अधिकारियों को अलग करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली बार (सिविल सर्विस) शब्द का इस्तेमाल किया। पहले यह सेवा' केवल व्यापार तक ही सीमित थी, परंत धीरे-धीरे यह सिविल सर्विस में परिणत हो गई। शरू से ही इस सेवा में पदानक्रम की व्यवस्था थी-प्रशिक्षार्थी, लेखक, कारिंदा, कनिष्ठ व्यापारी और उसके ऊपर वरिष्ठ व्यापारी। वरिष्ठ व्यापारियों के बीच से गवर्नर जैसे उच्च पदों के लिए लोगों को चना जाता था। यह पदानक्रम 1839 तक चला। इन पदों पर नियुक्ति करने का विशेषाधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को प्राप्त था। इनके द्वारा नियक्त अधिकारी भ्रष्टाचार, घसखोरी और अवैध निजी व्यापार में व्यस्त रहते थे। कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के संरक्षण की नीति के कारण पनप रहे इस भ्रष्टाचार को कार्नवालिस ने रोकने की कोशिश की। उसने उनपर कछ प्रतिबंध लगाए (जैसे निजी व्यापार पर रोक लगा दी गई) परंत मआवजे के तौर पर उनका वेतन बढ़ा दिया। उदाहरण के तौर पर एक कलक्टर को प्रति महीन

1833 का चार्टर एक्ट अधिनियम क्युं विफल हुआ ?

औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप ब्रिटेन सुती कपड़ो तथा अन्य  कारकानों के सामग्रियों के उत्पादक के रूप  में उभरा था। भारत जैसा विशाल देश अनेकानेक तैयार मालों के उपभोग एवं कच्चा माल जुटाने में समर्थ भा। ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के उपभोग लक्ष्यों के अधीन थी। उसकी प्रतिबंध नीतियां  स्वधेशी उद्योगों के विनाश की ओर प्रवृत्त हुई । बिटेन की नई औद्योगिक नीति का आधारभूत दर्शन "मुक्त व्यापार" बन चुका था। प्रतिद्वंद्वीयो तथा एकाधिकार से व्यापार को मुक्त करने की व्यापक जनाकांक्षा सामने आई। 1833 में चार्टर के नवीकरण वातावरण सुधारों के लिए उत्साह से ओत-प्रोत था। सुपरिचित सुधार अधिनियम के समय कंपनी के लिए और सम्राट द्वारा प्रशासन संभालने के लिए व्यापाक आंदोलन हुए | एक संसदीय जाँच पड़ताल भी म चलाई गई। चीन के साथ चाय की व्यापारिक इजारेचारी खत्म कर दी गई। कंपनी की अब केवल राजनीतिक भुमिका रह गई।  भारत को अब केवल कम्पनी को ऋण चुकाने थे! इसके साझेदारो के लिए 10.5 प्रतिशत प्रति बर्ष अंशदेय सनिश्चित कर दिया गया। व्यापारियों तथा संप्रभुआ की एकता अंतत: समाप्त कर की गई। | कंमनी क

भारत सरकार ने जारी किया भारत का नया मानचित्र Government of India released new map of India

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New map 1947 में जम्मू कश्मीर में 14 ज़िले होते थे- कठुआ, जम्मू, उधमपुर, रइसी, अनंतनाग, बारामुला, पूंछ, मीरपुर, मुज़फ़्फ़राबाद, लेह और लद्दाख, गिलगित, गिलगित वज़ारत, चिल्लाह एवं ट्रायबल टेरेरिटी. 2019 में सरकार ने जम्मू कश्मीर पुर्नगठन करते हुए 14 ज़िलों को 28 ज़िले में बदल दिया हैं. नए ज़िलों के नाम है- कुपवाड़ा, बांदीपुर, गेंदरबल, श्रीनगर, बडगाम, पुलवामा, सोपियां, कुलगाम, राजौरी, डोडा, किश्तवार, संबा, लेह और लद्दाख. हालांकि इस नए नक्शे को लेकर सोशल मीडिया पर काफी प्रतिक्रियाएं भी देखने को मिली हैं. फ़ेसबुक पर डांडू कीर्ति रेड्डी ने लिखा है, क्या पाकिस्तान और चीन ने आज़ाद कश्मीर, गिलगित बाल्टिस्तान और अक्साई चीन भारत को लौटा दिया है, ये कब हुआ. भारत सरकार ने शनिवार(2 दिसंबर 2019) को जम्मू कश्मीर और लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद नया नक्शा जारी कर दिया है. इस नक्शे को भारत के सर्वे जनरल ने तैयार किया है. गृह मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में दो ज़िले होंगे- करगिल और लेह. इसके बाद बाक़ी के 26 ज़िले जम्मू कश्मीर में होंगे.

Ediot image/Why is reason showing trump photo type ediot image search -Takeknowledge

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Google के सीईओ सुंदर पिचाई ने इस सप्ताह हाउस जूडिशरी कमेटी के समक्ष गवाही दी, जिसमें संभावित रूढ़िवादी पूर्वाग्रह सहित चिंताओं की एक विस्तृत श्रृंखला को संबोधित किया गया। सुनवाई का एक आकर्षण तब था जब कैलिफ़ोर्निया के प्रतिनिधि ज़ो लोफ़ग्रेन ने पिचाई से पूछा कि "बेवकूफ" शब्द के लिए Google छवि खोज में डोनाल्ड ट्रम्प क्यों दिखाई देते हैं, जिसका उपयोग Google के कथित पूर्वाग्रह के सबूत के रूप में किया गया था। एक खोज इंजन अनुकूलन रणनीतिकार के रूप में, मैं नीचे तोड़ दूंगा कि ट्रम्प उस खोज के तहत क्यों दिखाई देते हैं और यह पूर्वाग्रह के कारण क्यों नहीं है। ट्रम्प के खोज परिणाम के दौरान सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग उनके बारे में वहां लिख रहे हैं। यह थोड़ा बेतुका लग सकता है, लेकिन Google छवियों में खोज "बेवकूफ" के लिए शीर्ष पांच परिणामों के लिए यहां सुर्खियों में हैं: "इडियट" - विकिपीडिया से "डोनाल्ड ट्रम्प ने 'इडियट' के लिए गूगल इमेज सर्च रिजल्ट को टॉप किया है"news18 से "डोनाल्ड ट्रम्प गूगल इमेज के अनुसार एक बेवकूफ": द स्टार ऑनला

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बाबर के आक्रमण के पूर्व संध्या पर भारत मे राजनैतिक स्थिति कैसे थी -Takeknowledge

तुगलक शासन के पतन के बाद पन्द्रहवी शदी का पूर्वार्द्ध राजनैतिक अस्थिरता का दौर था! सैय्यद(1414-1451) तथा लोदी(1451-1526) शासक दोनो ही विनाशक  शक्तियो का सामना करने  मे असफल रहे। कुलीन वर्ग अवसर प्राप्त होते ही विरोध एवं विद्रोह करते। उत्तर पश्चिम प्रांतों में व्याप्त राजनीतक अराजकता ने केन्द्र को कमजोर किया। अब हम भारत के विभिन्न भागों में घटित घटनाचक्र का विवरण करेंगे।  मध्य भारत में तीन राज्य थे- गुजरात, मालवा एवं मेवाड़। किंतु मालवा के सुलतान महमूद खिलजी द्वितीय की शक्ति का पतन हो रहा था। गुजरात मुजफ्फर शाह के अधीन था!  जबकि मेवाड़ सिसोदिया शासक राणा सांगा के अधीन सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य था। मालवा के शासकों पर निरंतर लोदी मेवाड़ एवं गुजरात के शासको का दबाव था क्योंकि यह न केवल एक उपजाऊ क्षेत्र एवं हाथियों की आपूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत था आपितू इस क्षेत्र से होकर गुजरात के बंदरगाहों को महत्वपूर्ण मार्ग गुजरता था। अतः यह १ लोदी  शासकों के लिए एक महत्वपर्ण क्षेत्र था। इसके अतिरिक्त यह गुजरात एवं मेवाड़ के शासकों के लिए लोदी शासकों के विरुद्ध मध्यवर्ती राज्य का राज्य कार्य कर स

लोदी साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कैसी थी -Takeknowledge

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    समकालीन लेखक सिकन्दर लोदी की इस बात के लिए प्रशंसा करते हैं कि उसने आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता बढाई और इनका दाम कम रखने में सफलता प्राप्त की। शेख रिजकुल्लाह मुश्ताकी (वाकयात-ए मश्ताकी) के अनुसार अनाज, कपड़े, घोड़े, भेड़ें, सोना और चांदी कम मूल्य पर और पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। समग्रता में पूरी अर्थव्यवस्था को समझने के लिए इसके आधारभूत तत्वों पर विस्तार से विचार-विमर्श करना होगा।     कृषीय ढांचा उस समय की राजनीतिक व्यवस्था कृषीय उत्पादन के अधिशेष में राज्य के हिस्से पर निर्भर करती थी।सुल्तान सिकन्दर लोदी ने एक  व्यवस्थित विकासोन्मख भू-राजस्व नीति बनायी। यह नीति उसने अपने राज्य का भोगालिक प्रकृति को मददेनजर रखते हुए अपनायी। चूँकि उसका राज्य चारो ओर से जमीन से ही घिरा था, खेती के विस्तार से प्राप्त अधिक उपज ही उसके वित्तीय संसाधन को बढ़ा सकती थी! बहुत सी अनजुती जमीन पड़ी हुई थी!और अगर खेतिहरों को इसे जोतने से प्राप्त होने वाले अपेक्षित मुनाफों का विश्वास दिलाया जाता तो वे इसे जोत सकते थे। कृषि के विस्तार के लिए कृषकों को प्रोत्साहित करने हेतु सुल्तान ने प्रशासनिक व्य

लोदी वंश की प्रशासन व्यवस्था कैसी थी -Takeknowledge

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    एक सुदृढ़ प्रशासनिक व्याख्या की स्थापना का श्रेय सुल्तान सिकन्दर लोदी को जाता है । मुक्तियों और वालियों (राज्याध्यक्षों) के हिसाब-किताब को जांचने के लिए उसने लेखा-परीक्षण की प्रथा आरंभ की। सबस पहले 1506 में जौनपुर के गवर्नर मबारक खां लोदी (तुजी खैल) के हिसाब-किताब की जांच हुई। थी। उसके हिसाब-किताब में गड़बड़ी पायी गयी और उसे बर्खास्त कर दिया गया। इसी प्रकार भ्रष्टाचार के आरोप में दिल्ली के प्रशासक गैर-अफगान पदाधिकारी ख्वाजा असगर को कैदखाने में डाल दिया गया। साम्राज्य की स्थिति से अपने को पूर्ण अवगत रखने के लिए सुल्तान ने गुप्तचर व्यवस्था को पुनर्संगठित किया। परिणामस्वरूप सल्तान की अप्रसन्नता के भय से सरदार आपस में डरते थे। आम जनता की भलाई के लिए राजधानी और प्रांतों में कल्याणकारी केंद्र खोले गये थे, जहां अनाथ और विकलांग लोगों की सहायता की जाती थी। ये कल्याणकारी केंद्र जरूरतमंदों को वित्तीय सहायता दिया करते थे। पूरे साम्राज्य में विद्वानों और कवियों को संरक्षण दिया जाता था और शिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी। उसने सरकारी कार्यालयों में फारसी के अलावा किसी अन

लोदी साम्राज्य -Takeknowledge

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    15वीं शताब्दी का अंत होते-होते बहलोल लोदी ने दिल्ली में लोदी राजवंश की स्थापना सुदृढ़ रूप से कर दी थी। उसने उत्तर भारत के बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र सिकन्दर लोदी गद्दी पर बैठा । सिकन्दर लोदी सोलहवीं शताब्दी में सल्तान सिकन्दर लोदी के नेतत्व में उत्तर भारत में लोदी साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंच गया। 1496 में जौनपुर के भूतपूर्व शासक हुसैन शरकी को दक्षिण बिहार से खदेड़ दिया गया और उनके राजपूत सरदार सहयोगियों को या तो समझौते के लिए मजबूर कर दिया गया या परास्त कर दिया। गया। उनकी जमीदारियों को या तो सल्तान के सीधे नियंत्रण में ले लिया गया या उनका दर्जा परतंत्र प्रदेश। का हो गया। इसी प्रकार से सुल्तान की सत्ता को चुनौती देने वाले अफगान और गैर-अफगान सरदारों को दिल्ली और उसके आस-पास के इलाके से हटा दिया गया। सोलहवीं शताब्दी के प्रथम दशक में धौलपुर पर कब्जा होने के बाद राजपूताना और मालवा प्रदेशों में अफगान शासन के विस्तार का रास्ता प्रशस्त हो गया। नरवर और चंदेरी के किलों को जीत लिया गया । नागौर के ख़ानजादा ने 1510-11 में ल

मुगल सत्ता की स्थापना -Takeknowledge

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         बाबर ने अब तक उत्तरी-पश्चिमी सीमांत क्षेत्रों पर कुछ सफलताएं हासिल की थी। इसके बाद उसने भारत में अपने सहयोगियों के साथ नियोजित ढंग से आक्रमण करने की योजना बनाई। 1526 में पानीपत में बाबर और उसके सहयोगियों तथा सुल्तान इब्राहिम के बीच युद्ध हुआ। बाबर ने उत्तर भारत में पहली बार बन्दूकों व तोपों का उपयोग किया और उसे आसानी से विजय मिल गयी। युद्ध में इब्राहिम लोदी मारा गया और आगरा से दिल्ली तक का रास्ता बाबर के लिए साफ हो गया। बाबर ने जब अपने ही बल पर लोदी शासन को ध्वस्त कर दिया तो उसके भारतीय साथी निराश हो गये। असंतुष्ट अफगान और गैर-अफगान सरदारों ने राजकुमार महमूद लोदी को अपना सुल्तान मान लिया और मुगलों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करते रहने का निश्चय किया। बाबर और हुमायूं के शासन के पन्द्रह वर्षों की अवधि को लोदी साम्राज्य के पतन और शेरशाह सूर के साम्राज्य की स्थापना के बीच के काल को मुगल शासन के राज्यातंराल के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। बाबर (मृत्यु 1530) और हुमायूं ने भारत में लोदी सुल्तानों द्वारा स्थापित राज्य व्यवस्था को ही लागू रखा। जैसे जमींदारों के प्रति