लोदी साम्राज्य -Takeknowledge

   
15वीं शताब्दी का अंत होते-होते बहलोल लोदी ने दिल्ली में लोदी राजवंश की स्थापना सुदृढ़ रूप से कर दी थी। उसने उत्तर भारत के बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र सिकन्दर लोदी गद्दी पर बैठा ।

सिकन्दर लोदी


सोलहवीं शताब्दी में सल्तान सिकन्दर लोदी के नेतत्व में उत्तर भारत में लोदी साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंच गया। 1496 में जौनपुर के भूतपूर्व शासक हुसैन शरकी को दक्षिण बिहार से खदेड़ दिया गया और उनके राजपूत सरदार सहयोगियों को या तो समझौते के लिए मजबूर कर दिया गया या परास्त कर दिया। गया। उनकी जमीदारियों को या तो सल्तान के सीधे नियंत्रण में ले लिया गया या उनका दर्जा परतंत्र प्रदेश। का हो गया। इसी प्रकार से सुल्तान की सत्ता को चुनौती देने वाले अफगान और गैर-अफगान सरदारों को दिल्ली और उसके आस-पास के इलाके से हटा दिया गया।

सोलहवीं शताब्दी के प्रथम दशक में धौलपुर पर कब्जा होने के बाद राजपूताना और मालवा प्रदेशों में अफगान शासन के विस्तार का रास्ता प्रशस्त हो गया। नरवर और चंदेरी के किलों को जीत लिया गया । नागौर के ख़ानजादा ने 1510-11 में लोदी सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली । संक्षेप में, संपूर्ण उत्तर भारत, उत्तर-पश्चिम में पंजाब से लेकर पूरब में उत्तर-बिहार के सरन और चंपारन तक और चंदेरी से.लेकर दिल्ली के दक्षिण तक लोदी साम्राज्य की परिधि में आ गया था।

   इब्राहिम लोदी

अपने पिता के विपरीत, सुल्तान इब्राहिम लोदी (1517-26) को 1517 में गद्दी पर बैठते ही अफगान सरदारों की दुश्मनी का सामना करना पड़ा । उसने अपने पिता को शक्तिशाली सामंतों से घिरा पाया, जो अपनी शक्ति बढ़ाने के चक्कर में केन्द्रीय सत्ता को कमजोर बनाना चाहते थे। उसके पिता को अपने भाइयों और संबंधियों से लड़ना पड़ा था। इस लड़ाई में उन सरदारों ने उसके पिता का समर्थन किया, जो राजकुमारों को समृद्ध प्रांतों से हटाना चाहते थे। सुल्तान सिकन्दर की मौत के बाद सरदारों ने सुल्तान इब्राहिम लोदी और उसके छोटे भाई राजकुमार जलाल खाँ लोदी (कालपी का गवर्नर) के बीच साम्राज्य का बंटवारा करने का निर्णय लिया। सुल्तान इबाहिम को यह बंटवारा मानने के लिए मजबूर किया गया जिससे स्वाभाविक रूप से केन्द्र कमजोर हुआ । कुछ समय बाद, खान-खाना नुहानी जैसे बुजुर्ग सरदारों ने, जो नये शासक को नजराना पेश करने आये थे, बंटवारे के समर्थकों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह विभाजन साम्राज्य के लिए घातक है।

उन्होंने सुल्तान से विभाजन को निरस्त करने का आग्रह किया। उनके सुझाव पर सुल्तान इब्राहिम ने वरिष्ठ सरदारों को राजकुमार जलाल के पास भेजा। उनका उद्देश्य राजकुमार को अपने दावे को वापस करने के लिए और अपने बड़े भाई को सुल्तान के रूप में स्वीकार करने के लिए राजी करना था। ये प्रयत्न असफल रहे और उत्तराधिकार का संकट उत्पन्न हो गया।

इस मोड़ पर अपने भाई की अपेक्षा सुल्तान इब्राहिम अधिक शक्तिशाली प्रतीत हो रहा था। अतः पुराने सरदार उससे जुड़े रहे । हालांकि कड़ा के राज्याध्यक्ष आज़म हुमायूं सरवानी और उसके पुत्र फतह खाँ सरवानी जैसे कुछ अपवाद मिल जाते हैं । वे कुछ देर के लिए ही सही, पर जलाल खाँ से जुड़े रहे । जब सुल्तान ने व्यक्तिगत रूप से उनके विरुद्ध युद्ध किया तो दोनो ने जलाल खाॅ को छोड़कर सुल्तान से जा मिला!

सुल्तान ने आजम हुमायूं सरवानी को ग्वालियर के राजा विक्रमजीत के खिलाफ युद्ध करने के लिए भेजा। जलाल खाँ ने वहां शरण ले रखी थी। जलाल खाँ ग्वालियर से मालवा की ओर भागा, पर गोंडों ने उसे लिया और बंदी बनाकर सुल्तान के पास आगरा भेज दिया। हालांकि ग्वालियर से उसके भागने पर सल्ल को अपने पुराने सरदारों पर शक होने लगा। आजम हुमायूं को बुलाया गया और उसे कैदखाने में डाल दिया गया। ग्वालियर के राजा ने सरदारों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और सुल्तान की सेवा में शामिल होने के लिए तैयार हो गया। उसे इक्ता के रूप में शमसाबाद (फर्रुखाबाद ज़िला) का इलाका दिया गया। इसी समय प्रतिष्ठित वजीर मियांभुआ पर भी सल्तान का विश्वास उठ गया और उसे कैद कर लिया गया। पराले सरदारों को कैद किए जाने से पूर्वी क्षेत्र में विद्रोह की लहर फैल गयी।।

सुल्तान ने अपने विश्वासपात्रों को दरबार में महत्वपूर्ण पद दिए और कुछ को प्रांतों का प्रमुख बनाकर। भेजा। इसके परिणामस्वरूप पराने सामंतों को अपने भविष्य की चिंता होने लगी और वे प्रांतों में अपनी । शक्ति मजबूत करने लगे।

बिहार का शक्तिशाली गवर्नर दरिया खां नहानी पूर्वी क्षेत्र के असंतुष्ट सरदारों का रहनुमा बन गया। लगभग इसी समय बाबर ने भेरा की सरकार पर कब्जा जमा लिया और सतलज पार पंजाब का सर्वाधिक शक्तिशाली गवर्नर दौलत खां लोदी उसे मुक्त कराने में सफल नहीं हुआ।

दौलत खां को दरबार में पेश होने का हक्म मिला. पर उसने इससे इंकार कर दिया और लाहौर में सल्तान के। खिलाफ बगावत कर दी। उसने सुल्तान इब्राहिम के चाचा आलम खां लोदी (बहलोल लोदी का बेटा) को भी आमंत्रित किया और उसे सुल्तान अलाउद्दीन के नाम से नया सुल्तान घोषित किया । इन्होंने सुल्तान इब्राहिम के खिलाफ काबुल के शासक बाबर के साथ संधि की । इब्राहिम लोदी के खिलाफ राणा संग्राम सिंह और बाबर के बीच भी लगभग संधि हो गयी थी!

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