बाबर के आक्रमण के पूर्व संध्या पर भारत मे राजनैतिक स्थिति कैसे थी -Takeknowledge

तुगलक शासन के पतन के बाद पन्द्रहवी शदी का पूर्वार्द्ध राजनैतिक अस्थिरता का दौर था! सैय्यद(1414-1451) तथा लोदी(1451-1526) शासक दोनो ही विनाशक शक्तियो का सामना करने  मे असफल रहे। कुलीन वर्ग अवसर प्राप्त होते ही विरोध एवं विद्रोह करते। उत्तर पश्चिम प्रांतों में व्याप्त राजनीतक अराजकता ने केन्द्र को कमजोर किया। अब हम भारत के विभिन्न भागों में घटित घटनाचक्र का विवरण करेंगे।

 मध्य भारत में तीन राज्य थे- गुजरात, मालवा एवं मेवाड़। किंतु मालवा के सुलतान महमूद खिलजी द्वितीय की शक्ति का पतन हो रहा था। गुजरात मुजफ्फर शाह के अधीन था!  जबकि मेवाड़ सिसोदिया शासक राणा सांगा के अधीन सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य था। मालवा के शासकों पर निरंतर लोदी मेवाड़ एवं गुजरात के शासको का दबाव था क्योंकि यह न केवल एक उपजाऊ क्षेत्र एवं हाथियों की आपूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत था आपितू इस क्षेत्र से होकर गुजरात के बंदरगाहों को महत्वपूर्ण मार्ग गुजरता था। अतः यह १ लोदी  शासकों के लिए एक महत्वपर्ण क्षेत्र था। इसके अतिरिक्त यह गुजरात एवं मेवाड़ के शासकों के लिए लोदी शासकों के विरुद्ध मध्यवर्ती राज्य का राज्य कार्य कर सकता था! मालवा का  सुल्तान एक असक्षम शासक था और उसके प्रधानमंत्री मेदिनी राय के लिए आंतरिक कलहों के कारण राज्य की एकता बनाये रखना मुश्किल था। अंततः मेवाड़ के शासक  राणा सांगा ने मालवा और गुजरात पर अपने प्रभाव को बढ़ाने में सफलता प्राप्त कर ली! 15वी सदी के अंत तक राणा सांगा द्वारा रणथम्भौर एवं चन्देरी पर अधिकार  प्राप्त करने के साथ ही संपूर्ण राजपूताना उसके अधीन आ गया। दक्षिण में विजयनगर एवं बहमनी दो शक्तिशाली राज्य थे।  पूर्व की ओर बंगाल पर नुसरत शाह का शासन था। इब्राहिम लोदी के शासन के अंतिम वर्षों में अफगान सरदारों नसीर खां लोहानी मारूफ फरमली आदि ने सुल्तान मौहम्मद शाह के नतृत्व में अलग जौनपुर राज्य की स्थापना करने में सफलता प्राप्त की। इन बड़े राज्यों के अतिरिक्त आगरा के आसपास बहुत से अफगान सरदारों के अधीन कुछ महत्वपर्ण छोटे-छोटे स्वायत्त क्षेत्र भी थे- मेवात में हसन खां, बयाना में निजाम खां, धौलपुर में मौहम्मद जैतुन, ग्वालियर में तातार खां सारंग खानी, रापरी में हुसैन खां लोहानी, इटावा में । कुतुब खां, कालपी में आलम खां, सम्भल में कासिम सम्भली आदि। बाबर के आक्रमण की । पूर्व संध्या पर राजनैतिक स्थिति का विश्लेषण करते हुए सामान्यतः यह कहा गया है। (रशबुक विलियम) कि उस समय राजपूत राज्यों का एक 'महासंघ' था जो हिन्दुस्तान पर नियंत्रण करने की तैयारी में था। यह भी कहा जाता है कि यदि बाबर का आक्रमण न हुआ। होता तो राजपूत अपने प्रख्यात नेता राणा सांगा के नेतृत्व में उत्तर भारत में राजनैतिक सत्ता पर अधिकार करने में सफल हो जाते। यह तर्क दिया जाता है कि क्षेत्रीय राज्यों के बीच राजनैतिक विभाजन की प्रकृति धार्मिक थी और राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत । महासंघ, जो कि धार्मिक भावना से प्रेरित था, हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करना चाहता था। यह मान्यता बाबरनामा में उद्धृत उस अंश पर आधारित है जहां बाबर कहता है कि हिन्दुस्तान पांच मुसलमान शासकों- लोदी (केंद्र में), गुजरात, मालवा, बहमनी तथा बंगाल और दो हिन्दु शासकों- मेवाड़ के राणा सांगा तथा विजयनगर द्वारा शासित है। इसके आतरिक्त खानवा की लड़ाई के बाद जारी किये गये फतहनामा के आधार पर कहा जाता है। कि राणा सागा के नेतृत्व में राजपत महासंघ धार्मिक भावना से प्रेरित था और उसको इस्लाम की सत्ता'' को उनाड़ फेकने की भावना से संगठित किया गया था। किंतु इस तरह के अनुमानों के विषय में इतिहासकारों ने प्रश्न उठाये हैं। बाबर ने ऐसा नहीं कहा कि ये राज्य एक दूसरे के विरुद्ध धार्मिक आधार पर शत्रुता रखते थे। बल्कि बाबर स्वंय स्वीकार करता है कि बहुत से राय एवं राणा इस्लाम (मस्लिम शासकों) के प्रति । वफादार थे। यदि हम महासंघ की बनावट को देखें तो हम पायेंगे कि हसन खां मेवाती। बाट खा लोदी आदि मसलमान शासक भी इस महासंघ के सदस्य थे और वे बाबर के विरुद्ध राणा सांगा के साथ थे। इसकी अपेक्षा वाकियात-ए-मश्ताकी (1560) में हसन खां मेवाती पर भारत में मगल सत्ता को उखाड़ने के लिए महासंघ बनाने का आरोप लगाया गया है। वास्तव में यह राणा सागा नही अपितु सुल्तान महमद था जिसने स्वयं को दिल्ली का राजा घोषित कर दिया था। यद्यपि राणा सांगा निश्चय ही शक्तिशाली था किंतु बाबर अफगान भय से ज्यादा चिंतित था। अतः धार्मिक सिद्धांत का कोई आधार नहीं है।

Comments

Popular posts from this blog

भोजन और उसके कार्य Food and its functions

मैसूर और हैदराबाद राज्य निर्माण की प्रक्रिया

चिश्ती सिलसिले की लोकप्रियता के मुख्य कारण 'Takeknowledge