सिंधु के मैदान की तुलना में गंगा का मैदान जलवायु की दृष्टि से अधिक आद्र है गांगेय उत्तरी भारत के बारे मे विस्तार से जानिए


गांगेय उत्तरी भारत-


सिंधु के मैदान की तुलना में गंगा का मैदान जलवायु की दृष्टि से अधिक आद्र है! वार्षिक वर्षा जो सिंधु-गंगा विभाजक पर 50 सेंटीमीटर होती है वह बंगाल तक पहुँचते-पहुँचते बढ़ कर 200 सेंटीमीटर हो जाती है! गंगा के मैदानी छेत्र को तीन उप-छेत्रों में बनता जा सकता है:-
१.ऊपरी छेत्र
2.मध्य छेत्र
३.निचला छेत्र

पश्चिमि और मध्य उत्तर प्रदेश के ऊपरी मैदानी छेत्र में अधिकांश दोआब का इलाका शामिल है! यह संघर्ष और सांस्कृतिक संशलेषण का छेत्र रहा है! हड़प्पा संस्कृति के इस छेत्र तक फैले होने के बहुतायत में साछ्या उपलब्ध हुवे है! यह छेत्र 'चित्रित घुसार या भूरे भांड संस्कृति' का केंद्र भी था और उत्तर वैदिक काल में हलचल भरी गतिविधियों का केंद्र इलाहाबाद (प्राचीन प्रयाग) भी दोआब की सीमा पर गंगा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित है! गाणगे मैदान का मध्य छेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक फैला हुवा है! यह वही छेत्र है जहाँ प्राचीन कौशल कशी और मगध स्थित थे! यह छेत्र इसा पूर्व छठी शताब्दी से नगर जीवन मौद्रिक अर्थव्यवस्था तथा व्यापार का केंद्र रहा है! इसी प्रदेश ने मौर्य साम्राज्य के विस्तार को आधार प्रदान किया और यह भू-प्रदेश राजनीतिक दृष्टि से गुप्त काल पांचवी शताब्दी ईस्वी तक महत्वपूर्ण बना रहा!

गंगा के मैदान का ऊपरी और मध्य छेत्र भौगोलिक रूप से उत्तर में हिमाया पर्वत श्रेणियों और दक्छिन में मध्य भारत की पर्वत श्रृंखलाओं से सीमाबद्ध होता है! गंगा के मैदान का निचला छेत्र बंगाल प्रान्त के साथ फैला हुवा है! बंगाल का विस्तृत मैदान गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लायी गयी जलोढ़ यानि कछारी मिटटी से निर्मित हुवा है! मैदान केनीचले छेत्रो में भारी वर्षा होने से यहाँ घने जंगल और दाल-दाल है! इनके कारण बंगाल में प्रारंभिक बस्तियों की बसावट में काफी बढ़ाये आयी! इस जलोढ़ भूमि की उर्वरता का उपयोग तभी किया जा सका जब लौह तकनीक पर नियंत्रण और उसका प्रयोग अच्छी मात्रा में शुरू हो गया! इस छेत्र में मध्य छेत्रिय मैदान की नगरीय संस्क्रीती का प्रवेश अपेच्छाक्रित देर से हुवा! यहाँ के पर्यावरण को देखते हुए तालाब और पोखर प्राचीन समय से ही बंगाल के जीवन में विशिष्ट बने रहे है!

अन्य बृहद बसावट वाले छेत्रो की तुलना में गंगा का मैदान अनेक धनि बस्तियों वाला छेत्र रहा है! जनसँख्या घनत्वा भी यहाँ अपेछाकृत अधिक रहा है! इसा पुरवा पहली शताब्दी से ही यह छेत्र भारतीय सभ्यता का मुख्य केंद्र रहा है! अति प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक इस प्रदेश की यह स्थिति बानी है! बंगाल के मैदान से लगी हुवी ब्रहम्पुत्र द्वारा निर्मित दूर तक फैली हुई असम बंगाल के निकट है! लेकिन ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से यह प्रदेश ओडिसा की देर से विकास प्रक्रिया में आने वाला प्रदेश है!



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