आज के पकिस्तान और उत्तर पश्चिम भारत के छेत्र 'हड़प्पा की सभ्यता' के प्रमुख छेत्र थे हड़प्पा सभयता की भौगोलिक विशेषताएँ indian history
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हड़प्पा सभयता की भौगोलिक विशेषताएँ
आज के पकिस्तान और उत्तर पश्चिम भारत के छेत्र 'हड़प्पा की सभ्यता' के प्रमुख छेत्र थे! इन छेत्रन में मौसम सूखा रहता है और वर्षा काम होती है! फिर भी इन चित्रों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर है! पंजाब और सिंधु के छेत्र में सिंधु नदी के कचहरी मैदानों की प्रधानता है! इसी प्रकार बलूचिस्तान के छेत्र की एक विशेषता है उसकी दुर्गम चट्टानी पहाड़ियां! उतर पूर्वी बकुचिस्तान में घाटियों की तलहटी से यह अनुमान लगाया जा सकता है की यहाँ खेती होती होगी! इस छेत्र में पशुचारी तथा खानाबदोश जातियां भी रहती आई है! ये पशुचारी खानाबदोश जातियां अपने पशुओं के लिए चारे की खोज में ऊँचे स्थान से निचले स्थान पर आती जाती रहती थी! वह सीमांत छेत्र जो सिंधु मैदान में जा मिलता है पूर्वी ईरान के पठार का ही विस्तारण है! इन पहाड़ी छेत्रो में खैबर होमल बोलन जैसी कई दर्रे बन गए थे! एक तरफ ब्लुचिस्तान के ऊपरी भागों के लोगो और सिंधु नदी के मैदानों में बेस लोगों और दूसरी तरफ ईरान में रहने वाले लोगों के बीच अन्तरसम्बन्ध इस भौहोलिक विशेषता से जुड़ा प्रतीत होरा है! हड़प्पाकी सभ्यता की जलवायु और पहाड़ नदियां आदि तथा ईरान और इराकी सीमांत प्रदेश की जलवायु और प्राकृतिक दृश्य में समानता होने के कारण! विद्वानों ने यह अनुमान लगाया की इन छेत्रों में कृषक समुदाय का अभ्युदय मोठे तौर पर एक ही काल में हुआ होगा! ईरान और इराक में खेतीबाड़ी का आरम्भ लगभग 8000 ईशा पूर्व में हुआ है!
हड़प्पा सभयता की भौगोलिक विशेषताएँ
आज के पकिस्तान और उत्तर पश्चिम भारत के छेत्र 'हड़प्पा की सभ्यता' के प्रमुख छेत्र थे! इन छेत्रन में मौसम सूखा रहता है और वर्षा काम होती है! फिर भी इन चित्रों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर है! पंजाब और सिंधु के छेत्र में सिंधु नदी के कचहरी मैदानों की प्रधानता है! इसी प्रकार बलूचिस्तान के छेत्र की एक विशेषता है उसकी दुर्गम चट्टानी पहाड़ियां! उतर पूर्वी बकुचिस्तान में घाटियों की तलहटी से यह अनुमान लगाया जा सकता है की यहाँ खेती होती होगी! इस छेत्र में पशुचारी तथा खानाबदोश जातियां भी रहती आई है! ये पशुचारी खानाबदोश जातियां अपने पशुओं के लिए चारे की खोज में ऊँचे स्थान से निचले स्थान पर आती जाती रहती थी! वह सीमांत छेत्र जो सिंधु मैदान में जा मिलता है पूर्वी ईरान के पठार का ही विस्तारण है! इन पहाड़ी छेत्रो में खैबर होमल बोलन जैसी कई दर्रे बन गए थे! एक तरफ ब्लुचिस्तान के ऊपरी भागों के लोगो और सिंधु नदी के मैदानों में बेस लोगों और दूसरी तरफ ईरान में रहने वाले लोगों के बीच अन्तरसम्बन्ध इस भौहोलिक विशेषता से जुड़ा प्रतीत होरा है! हड़प्पाकी सभ्यता की जलवायु और पहाड़ नदियां आदि तथा ईरान और इराकी सीमांत प्रदेश की जलवायु और प्राकृतिक दृश्य में समानता होने के कारण! विद्वानों ने यह अनुमान लगाया की इन छेत्रों में कृषक समुदाय का अभ्युदय मोठे तौर पर एक ही काल में हुआ होगा! ईरान और इराक में खेतीबाड़ी का आरम्भ लगभग 8000 ईशा पूर्व में हुआ है!
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