16 महाजनपदो के विस्तारपूर्ण जानकारी हिंदी में चित्र के साथ !

    बौद्ध ग्रंथों में बुध के समय में सोलह महाजनपदों के मौजूद होने के उल्लेख मिलते हैं! बौद्ध ग्रंथों में जहाँ भी बुध के समय में सोलह महाजनपदों के मौजूद होने के उल्लेख मिलता है! इतिहासकारों में बुध के जीवन-काल की तिथियों के प्रति अभी भी मतभेद हैं! तथापि यह मन जाता है की बुद्ध छठी तथा पांचवी शताब्दी ईशा पुरवा की दोनों शताब्दियों के कुछ भाग में जीवित थे! इसलिए बौद्ध ग्रंथों में बुध के जीवन काल के उल्ल्लेखों को इस युग के समाज के प्रतिबिम्बन के उद्देश्य से देखा जाता है! यह सोलह महाजनपद उत्तरी-पश्चिमी पकिस्तान से लेकर पूर्वी बिहार तक तथा हिमालय के तराई छेत्रों से दक्छिन में गोदावरी नदी तक फैले हुए हैं! जो निम्न हैं-
1.काशी 
2.कौशल 
3.अंग 
4.मगध 
5.वज्जि 
6.मल्ल 
7.चेदि 
8.वत्स  
9.कुरु 
10.पांचाल 
11.मत्स्य 
12.सूरसेन 
13.अस्मक 
14.अवन्ति 
15.गांधार 
16.कम्बोज 
ज्यादा अच्छे से समझने के लिए चित्र  को डेखे 
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1) काशी- सोलह महाजनपदों में से काशी आरम्भ में सबसे शक्तिशाली महाजनपद प्रतीत होता है! आज ये  वाराणसी जिले में तथा उसके समीपवर्ती छेत्रों में स्थित  इस महाजनपद की राजधानी वाराणसी को जो गंगा तथा गोमती पर स्थित है भारत का सबसे मुख्या शहर बताया जाता है! यहाँ की भूमि अत्यधिक उपजाऊ थी! कशी सूती कपड़ों तथा घोड़ों के बाज़ार के लिए विख्यात था! बनारस के रूप में पहचाने गए राजघाट स्थान की खुदाई में छठी शादी ईशा पुरवा में शहरीकरण के कोई प्रभावपूर्ण प्रमान नहीं मिले हैं! फिर भी बौद्ध भिछुओं के गेरुए वस्त्र जिन्हे संस्कृत में काषाय कहा जाता था! कशी में बनाए जाते थे! इससे बुध के समय में काशी के राजाओं द्वारा एवं कौशल एवं अन्य राज्यों पर विजय प्राप्त करने के उल्लेख मिलते हैं! 
रुचिकर प्रसंग यह है की कहानी का प्राचीनतम वृत्तांत 'दशरथ जातक' दशरथ राम आदि को अयोध्या के बाजार कशी का राजा उल्लेखित करता है! जैन सम्प्रदाय के तेइसवें गुरु पाश्र्व के पिता को बनारस का राजा बताया जाता है! बुध ने अपना पहला उपदेह बनारस के निकट सारनाथ में दिया! इस प्रकार प्राचीन भारत के तीनो मुख्या धर्म अपना सम्बन्ध बनारस से जोड़ते हैं! लेकिन बुध के काल तक कौशल ने कशी महाजनपद पर कब्ज़ा कर लिया था और कशी मगध एवं कौशल के बिच युद्ध का कारन बना हुआ था!
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2) कौशल-  कौशल की राजधानी श्रावस्ती थी कौशल महाजनपद पश्चिम में गोदावरी तथा  पूर्व में सदानीरा नदी बहती थी इसे विदेह जनपद से अलग करती थी! इसके उत्तर में नेपाल की पहाड़ियां तथा दच्छिन में स्यन्दिका नदी बहती थी! साहित्यिक प्रमाण बताते है की कौशल का उदय  कई छोटी-छोटी इकाइयों एवं वंशो के सामंजस्य से हुआ! उदहारण के लिए हम जानते हैं की कपिलवस्तु के शाक्य कौशल के नियंत्रण में थे! कौशल के राजा विसुशां ने साक्यों को नष्ट कर दिया था जिसका अर्थ है की साक्य वंश कौशल का नाममात्र नियंत्रण में था! नवोदित  राजतन्त्र ने केंद्रीकृत नियंत्रण स्थापित करके साक्यों के स्वायत्ता नष्ट कर दी थी! छठी शादी ईशा पूर्व में मगध के शाशको में जिन राजाओं का उल्लेख है वे हिरण्यनाभ महाकोशल प्रसेनजित तथा सुद्धोदन है! इन राजाओं के बारे में अयोध्या साकेत कपिलवस्तु अथवा श्रावस्ती से शाशन करने का अनुमान है! सम्भवता छठी शादी इसा पूर्व के आरम्भ में कौशल का नियंत्रण कई छोटे-छोटे कबीलाई सरदारों क इ हाथ में था! जो छोटे-छोटे कस्बों में शासन करते थे! छठी शादी इसा पूर्व के अंतिम वर्षो में प्रसेनजित तथा विदधान जैसे राजाओं ने सभी अन्य कबीलाई सरदारों को अपने नियंत्रण में कर लिया! वे श्रावस्ती से शासन करते थे इस प्रकार तीन बड़े शहरों- अयोध्या साकेत तथा श्रावस्ती को अपने नियंत्रण में लेकर कौशल एक सम्पन्न राज्य हो गया कौशल ने कशी तथा उसके छेत्र पर भी कब्ज़ा कर लिया! कौशल के राजा ब्राह्मणवाद तथा बौद्ध मत दोनों को प्रोत्साहन देते थे! राजा साम्राज्य का सबसे बड़ा कट्टर सत्रु बन गया! 

3)अंग- अंग में दछिन बिहार के भागलपुर तथा मुंगेर जिले शामिल थे! इसकी राजधानी चंपा थी! संभव है की इसका विस्तार उत्तर की ओर कोसी नदी तक हुआ हो जोर इसमें पुरनिए जिले के कुछ भाग भी जुड़ गए हों! यह मगध के पूर्व तथा राजमहल पहाड़ियों के पश्चिम में स्थित था! अंग की राजधानी चंपा थी! यह गंगा ताहता चंपा नदी के संगम पर स्थित थी! चंपा छे महान नगरों में से एक था! यह अपने व्यापार एवं वाणिज्य के लिए विख्यात था तथा व्यापारी यहां से ससुर पूर्व गंगा पार करके जाते थे! छठीं शादी इसा पूर्व के मध्य में अंग को मगध ने हड़प लिया! भागलपुर के निकट चमपा में खुदाई के दौरान उत्तरी काले पॉलिश किए मृत्भांड भारी मात्रा में मिले हैं! 

4) मगध- मगध बिहार में पटना तथा गया के निकटवर्ती छेत्रों में स्थित था! इसके उत्तर तथा पश्चिम में क्रमश सोन तथा गंगा नदी थी! पूर्व में यह छोटा नागपुर के पठार तक फैला हुआ था! इसके पूर्व की और चंपा नदी बहती थी! जो इसे अलग करती थी! इसकि राजधानी ग्रिव्रज अथवा राजगृह कहलाती थी! जो इसे अंग से अलग करती थी! राजगृह पांच पहाड़ियों से घिरा ामेघ शहर था! राजगृह की दीवारे भारत के इतिहास में किलेबंदी का प्राचीनतम उदहारण है! पांचवी शदी इसे पूर्व के आस-पास राजधानी पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दी गई! इन पर आरंभिक मगध राजाओं की शक्ति की छाप है! ब्राह्मणीय ग्रंथों में मगध की जनता को मिश्रित तथा हिन् श्रेणी का बताया गया है! इसका करण संभावता यह है की पूर्व ऐतिहासिक युग में यहाँ के निवासी वारं व्यवस्था तथा ब्राह्मणीय अनुष्ठान के अनुयायी नहीं थे! इसके विपरीत इस छेत्र में बौद्ध मत का काफी महत्व था! मगध के राजा बिम्बिसार तथा आजादशत्रु उनके मित्र तथा शिष्य थे! ट्राई चावल की खेती के लिए उपयुक्त उपजाऊ खेतिहर जमीं दच्छिनी बिहार में कच्चे लोहे के भण्डारो पर तथा अपेछ्कृत खुली सामाजिक व्यवस्था के पृष्ठभूमि मगध उत्तरकालीन इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण राज्य के रूप में प्रकट होता है! गंगा गंडक तथा सोन नदी के व्यापार मार्गो पर इसके नियंत्रण के कारण इसे काफी राजस्व प्राप्त हो जाता था! कहा जाता है की मगध के राजा बिम्बिसार ने 80000 गाओं के गामिनियों की एक सभा बुलाई थी! हो सकता की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई हो लेकिन इससे यह पता लगता है की बिम्बिसार के प्रशासन में गाओं संगठन की इकाई के रूप में उभर आए थे! गामिनी उसके नातेदार नहीं बल्कि गाओं के मुख्या तथा प्रतिनिधि थे! इस प्रकार उसकी शक्ति उसके सम्बन्धियों की कृपा पर आधारित नहीं थी! आजदशत्रु ने सिंहासन पर कब्ज़ा करके उसे यातना दे कर मार डाला! वज्जि तथा वैशाली पर मगध के नियंत्रण का विस्तार होने के साथ एक साम्राज्य के रूप में मगध के सम्पन्नता बढ़ती गई! इसकी परिणति चौथी शदी इसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के रूप में हुई! 


5) वज्जि- वज्जि के वैशाली जिले आस-पास वज्जि जिसका अर्थ है पशु-पालक समुदाय है! वज्जि की राजधानी वैशाली थी यह महाजनपद उत्तर में नेपाल की पहाड़ियों तक फैला हुआ था गंडक नदी इसे कौशल से अलग करती थी! पूर्व उल्लेखित महाजनपदों के विपरीत वज्जियों का राजनिएटिक संगठन भिन्न था! समकालीन ग्रंथो में उन्हें गणसंघ कहा जाता था! जिसकी व्याख्या गणतंत्र या कूलतंत्रीय राज्य के रूप में की गई थी! इस युग के गणसंघ किसी एक सर्वशक्तिमान राजा द्वारा शासन का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे बल्कि यह शासन छत्रिय सरदारों दवरा संयुक्त रूप से होता था! यह शांसक वर्ग जिसके सदस्य राजा कहे जाते थे अब गैर-छत्रिय समूहों से पृथक हो गए! 

वज्जि आठ कबीलों के संगठन का प्रतिक थे जिनमे विदेह लिच्छवि ज्ञातृक मुख्य है! विदेही की राजधानी मिथिला थी! इसे नेपाल का आधुनिक जनकपुर मन जाता है! यधपि रामायण में इसे राजा जनक के साथ जोड़ा गया है बौद्ध श्रोतों में इसे कबीलाई परम्परा से जोड़ा गया है! 

प्राचीन भारतीय गणसंघो में सर्वाधिक वीख्यात लिच्छवियों की राजधानी वैशाली थी! वैशाली के एक विशाल एवं संपन्न शहर होने का अनुमान है! एक अन्य कबले के रूप में ज्ञातृक वैशाली के उपनगरों की बस्तियों में रहते थे! एक अन्य कबीले में जैन गुरु महावीर का जन्म हुआ! संगठन के अन्य समुदाय उग्र भोग कौरव तथा एछवाक थे! वैशाली सम्भवता पुरे संगठन का केंद्र था! वे अपने मामले आपसी सभाओं में तय करते थे! एक जातक कथा के अनुसार वज्जियों पर अनेक वंशों के सरदार शासन करते थे! छठी शादी इसा पूर्व में यह महाजनपद एक महत्वपूर्ण शक्ति बना हुआ था! लेकिन इनके पास ना तो सेना थी और ना ही इनके पास कृषि राजस्व प्राप्त करने के कोई व्यवस्था थी! अपने मंत्री वरसकार की सहायता से उसने वंश के सरदारों में बैर का बीज बोया और उसके बाद लिच्छवियों पर आक्रमण कर दिया! 

6) मल्ल- प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित मल्ल एक अन्य छत्रिय वाश थे! इस वाश की विभिन्न शाखाए थी जिनमे से दो का मूल स्थान पावा तथा कुशीनगर था! कुशीनगर उतर प्रदेश के गोरखपुर जिले में कसिए छेत्र को माना गया है ! पावा के छेत्र के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं! मल्ल का छेत्र साक्य छहत्तर के दच्छिन पूर्व तथा पूर्व की ओर स्थित तह१ अनुमान है की मल्लो पर पांच हजार कबीलाई सरदारों का शासन रहा होगा! बुध की मृत्यु कुशीनगर के निकट हुई और मल्लों ने ही उनका अंतिम संस्कार किया! 

7) चेदि- चेदि छेत्र आधुनिक बुंदेलखंड के पूर्वी भागों के आस-पास था!संभव है की इसका विस्तार मालवा पठार तक हो गया हो! कृष्ण का प्रसिद्ध शत्रु शिशुपाल चेदियों का शासक था! महाभारत के अनुसार चेदि चम्बल के पार मत्स्य बनारस के काशियों तथा सोन नदी की घाटी में कृपों के निकट संपर्क में थे!इसकी राजधानी सोथीवाती(शुक्तिमती) सम्भवता उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित थी! इस छेत्र के अन्य मुख्य नगर सहजाति एवं त्रिपुरी थे! 

8) वत्स- वत्स जिसकी राजधानी कौशाम्बी थी छठी इसा पूर्व का सबसे शक्तिशाली केंद्र था! इलाहाबाद के निकट यमुना के तट पर बसा कौशाम्बी आधुनिक कोसम के रूप में जाना जाता है! इसका अर्थ यह है के वाटस आधुनिक इलाहबाद के आस-पास बेस होंगे! पुराणों के अनुसार पांडवों के वंशज निच्छू ने हस्तिनापुर की बाढ़ में वह जाने के बाद अपनी राजधानी कौशांबी में बना ली! नाटककार भास् ने अपने नाटकों के द्वारा वत्सो के एक राजा उद्यान को अमर बना दिया! यह नाटक उदयन तथा अवन्ति की राजकुमारी वासवदत्ता के बिच प्रेम सम्बन्ध की कहानी पर आधारित है! इनमे मगध वाटस और अवन्ति जैसे शक्तिशाली राज्यों के बिच टकराव का भी उल्लेख मिलता है! ऐसा प्रतीत होता है! की इन संघर्षों में वाटस की पराजय हुई क्योंकि बाद के ग्रंथों में वाटस को अधिक महत्व नहीं दिया गया! 


9) कुरु- ऐसा विश्वास है की कुरु के राजा युधिष्ठिर के परिवार से सम्बन्ध रखते थे! वे दिल्ली-मेरठ के आस-पास स्थित थे! अर्थशास्त्र तथा अन्य ग्रंथों में उन्हें राजशब्दोपजीविनः अर्थार्त राजा की पदवी रखने वालों की संगिया दी गयी! इससे कबीलाई वंशो की विस्तृत संरचना की ओर संकेत मिलता है! छेत्र में इनके सम्पूर्ण एकाधिकारी की अनुपस्तिथि के प्रमाण इसी छेत्र में कई राजनैतिक केन्द्रो के उल्लेख से भी मिलते है! हस्तिनापुर इंद्रप्रस्त इषुकार में से प्रत्येक कुरुओं की राजधानी के रूप में उल्लेखित किए गए हैं! इनमे से प्रत्येक का शासक था!
हम कुरुओं जे विषय ने महाकाय महाभारत जे द्वारा परिचित है! यह पांडवों तथा कौरवों के बिच उत्तराधिकार के युद्ध की गाथा है! प्रेम युद्ध षडयंत्र घृणा तथा मानवीय अस्तित्व के बृहत् दार्शनिक मुद्दा पर अपने उत्कृष्ट विवरणों के कारण यह महाकाव्य पीढ़ियों से भारतीय जान-साधारण को रोमांचित करता रहा है! इतिहासकार इस महाकाव्य को घारणाओ के वास्तविक विवरण के बजाय एक साहित्यिक महाकाव्य के रूप में देखते हैं! बड़ी पैमाने पर युद्ध महाजनपदों के उड़ाई के बाद ही आरम्भ हुए! इससे पूर्व के चरण में यह केवल मवेशी हाँक ले जाने तक सिमित था! महाभारत में यूनानियों का भी उल्लेख है जोकि भारत के सम्पर्क में पांचवी शताब्दी इसा पूर्व के बाद आए! अतः यूनानियों के साथ युद्ध की संभावना केवल प्रथम शताब्दी इसा पूर्व में ही हो सकति थी! 

संभवतः महाभारत की कहानी सो छत्रिय वंशों के आपसी युद्ध की कहानी है जोकि माता की गायन परम्परा का एक हिस्सा बन गई! आरंभिक ऐतिहासिक युग की शुरुआत के साथ महाजनपदों में आपस में सामाजिक आर्थिक राजनैतिक संपर्क बढ़ा! इससे राजे-रजवाड़ यह सोचकर गर्व का अनुभव कर सकते थे की उनके पूर्वज महाभारत युद्ध में लड़े थे! इस प्रकार यह महाकाव्य ब्राह्मणीय धार्मिक व्यवस्था के विस्तार का साधन बन गया! इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है की महाभारत के प्राक्कथन में कहा गया है! की 24000 छंद वाला एक पूर्व मूल पाठ अभी भी सामयिक है जबकि वर्तमान महाकाव्य में ेके लाख छंद है! 


10) पांचाल-  पांचाल महाजनपद रुहेलखंड तथा मध्य दोआब के कुछ भागों (मोठे तौर पर बरेली पीलीभीती बदायुनी बुलंदशहर अलीगढ आदि) पर स्थित था! प्राचीन ग्रंथों में पांचालों के दो वंशों उत्तर पांचाल तथा दक्छिणी पांचाल जिन्हें भागीरथी नदी पृथक करती थी का उल्लेख मिलता है! उत्तरी पांचालों की राजधानी उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में अहिच्छत्र में स्थित थी! दच्छिनी पांचालों की राजधानी काम्पिल्य थी! संभवतः वे कुरुओं से निकट संपर्क रखते थे! यधपि एक या दो पांचाल शाहकों का उल्लेख मिलता है लेकिन हमारे पास उनके विषय में बहुत कम जानकारी है! वे भी संघ कहे जाते थे! छ्ठी शदी तक वे लुप्त हो चुके थे! 


11)मत्स्य-  मत्स्य राजस्थान के जयपुर-भरतपुर-अलवर छेत्र में स्थित थे! उनकी राजधानी विराट नगर थी जोकि पांडुओं के छिपने के स्थान के रूप में विख्यात है! यह छेत्र पशु-पालन के लिए उपयुक्त था! इसलिए महाभारत कथा में जान कौरवों ने विराट पर आक्रमण किया तो वे मवेशियों को हाँक कर ले गए! स्वाभाविक है की स्थायी कृषि पर आधारित शसक्तियों से मत्स्य मुकाबला न क्र सके! मगध साम्राज्य ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया! अशोक के कुछ सार्वाधिक विख्यात ादेह-पात्र प्राचन विराट बैराट(जयपुर) में पाए गए है!


12)सुरसेन-  सुरसेनो की राजधानी यमुना तात पर मःतुरा में थी! महाभारत और पुराण में मथुरा के शासक वंश को यदु कहा गया है! यादव वह कई छोटे-छोटे वंशो जैसे अंधक वृष्णि महाभोज आदि में बटा हुआ था! इनकी राज व्यवस्था भी संघ व्यवस्थ थी! महाकवयीय नायक कृष्ण इन्ही शासक परिवारों से सम्बंधित है! मथुरा दो विख्यात प्राचीन भारतीय व्यापार मार्ग उत्तर पथ तथा दच्छिन पथ के बिच में स्थित था! इसका कारण यह था की मथुरा स्थायी कृषि वाले गांगेय मैदानों और विकिरण जनसँख्या वाले चारागाहों जो मालवा पठार तक पहुँचते थे! के अंतरवर्ती छेत्रों के बिच स्थित था! इसलिए मथुरा एक महत्वपूर्ण नगर एबीएन गया! लेकिन खंडित राजनैतिक संरचना तथा प्राकृतिक विभिन्नताओं के कारण इस छेत्र के शासक इसे शक्तिशाली राज्य न बना सके!


13)अस्मक- अस्मक महाराष्ट्र में आधुनिक पैठान के निकट गोदावरी के तट पर फैले हुआ थे! पैठान को अश्मकों की राजधानी प्राचीन प्रतिष्ठान मन जाता है! दच्छिन पथ प्रतिष्ठान को उत्तरी शहरों से जोड़ता था! आसमाको के राजाओं के अस्पष्ट उल्लेख अवश्य मिलते है! किन्तु अभी तक हमारे पास इस छेत्र की जानकारी काफी सिमित है!


14) अवन्ति- अवन्ति छठी शादी इसा पूर्व के सबसे शक्तिशाली महाजनपदों में से एक था! इस राज्य का मुख्य छेत्र मोठे तौर पर मध्य प्रदेश के उज्जैन से लेकर नर्मदा नदी तक फैला हुआ था! इस राज्य में एक अन्य महत्वपूर्ण नगर महिस्मती था! जिसे अक्सर इसकी राजधानी के रूप में माना जाता है! अवन्ति छेत्र में कई छोटे बड़े कस्बों का उल्लेख मिलता है! पुराणों में अवन्ति की आधारशिला रखने का श्रेय यदुओं के हैद्य वाश को दया गया है! कृषि के लिए उपजाऊ भूमि पर स्थित होने तथा दच्छिनी ओर होने वाले व्यापारकपर नियंत्रण होने के फलस्वरूप यदुओं ने यहां एक केंद्रीकृत राज्य के स्थापना कर ली! छठी शदी ईसा में एक शक्तिशाली राजा प्रघोत अवन्ति का शासक था! संभवतः उसने वाटस पर विजय प्राप्त की थी! यही नहीं आजादशत्रु भी उससे भय खाता था! 


15) गांधार-  गांधार भारत के उत्तर पश्चिम में काबुल और रावलपिंडी के मध्य का छेत्र था! संभव है की इसमें कश्मीर का भी कुछ भाग रहा होगा! यद्धपि युग में यह एक महत्वपूर्ण छेत्र था किन्तु ब्राह्मणीय और बौद्ध परम्परा के उत्तरकालीन चरणों में इसके महत्व में कमी आयी! इसकी राजधानी ताछ्शिला एक महत्वपूर्ण शहर था! जहां सभी जनपदों के लोग शिछा तथा व्यापार के उद्देश्य से जाते थे! छथि शादी ईसा पूर्व में गांधार पर पुक्कसती नामक राजा शासन कर रहा था! वह बिम्बिसार का मित्र था! छठी शादी ईसा पूर्व के उत्तरार्ध में गांधार पर फारस ने विजय प्राप्त कर ली! आधुनिक तछशिला की खुदाई से पता चलता है की इस स्थान पर 1000 ईसा पूर्व में ही लोग बस चुके थे और बाद के दिनों में नगरों का उड़ाई हुआ! छठी शादी ईसा पूर्व तक आते-जाते गांगेय के शहरों के समरूप यहाँ भी एक शहर का उड़ाई हुआ! 



16) कम्बोज-  कम्बोज गांधार के निकट संभवतः आज के पूछ छेत्र में स्थित था! सातवीं शदी इसे पूर्व में ही कम्बोज को ब्रह्मणीय ग्रंथों में असभ्य लोगों के संज्ञा दी गई थी! अर्थशास्त्र में इन्हे वरतषास्त्रपजवन संघ अर्थात कृषकों चरवाहों व्यापारियों तथा योद्धाओं का संगठन कहा गया है! 
नीचे सभी महाजनपदों के बारे में संछिप्त में दिए है :-


Comments

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  2. प्रशंशनीय ब्लॉगर के temlateजो आपने अलग से लगाया है बहुत अच्छा है और साइट बिलकुल आसानी से तेजी से चलती है।

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