1857 के विद्रोह और मुख्य नेतृत्‍वकर्ता



27 मार्च 1857 को बैरकपुर में तैनात एक युवा सैनिक मंगल पांडे ने अकेले ही ब्रिटश अधिकारियों पर हमला करके बगावत कर दी! उसे फांसी ;पर लटका दिया गया और इस घटना पर ज्यादा धयान नहीं दिया गया! परन्तु इससे सिपाहियों में फैले असंतोष तथा क्रोध का पता चल गया! इस घटना के एक माह के अंदर 24 अप्रैल को मेरठ में तैनात देशी घुड़सवार सेना के नब्बे लोगों ने चर्बी लगे कारतूसों को इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया! उनमे से 85 को बर्खास्त कर दिया गया! तथा 9 मई को 10 साल के लिए जेल की सजा दी दे दी गई! इस पर शेष भारतीयों सिपाहियों में जोरदार प्रतिक्रिया हुई और अगले दिन 10 मई को मेरठ में तैनात पूरी भारतीय फौज ने वीडरोझ कर दिया! अपने साथियों को मुक्त कराकर तथा ब्रिटिश अधिकारियों को मर कर उन्होंने दिल्ली की और कुच करने का निर्णय लिया! इससे पता चलता है की उनके दिमाग में ब्रिटिश शासन का कोई न कोई विकल्प था!

दूसरी बात जिससे यह साफ़ पता चलता है की यह एक महज सिपाही विद्रोही ही नहीं था वह यह की लोगों ने जैसे सिपाहियों के अधिकारियों पर गोली चलाने की आवाज सुनी आस-पास के सैनिक बाजारों को लूटना शुरू कर दिया और अंग्रेजों के बंगलों पर आक्रमण कर उन्हें जला डाला! आस-पास के गाओं के गुर्जर शहर में घुस आए और बिद्रोह में शामिल हो गए! दूरसंचार के तार काट दिए गए तथा घुड़सवारों को जो सन्देश लेकर दिल्ली जाते थे रोक दिया गया जैसे ही मेरठ के सैनिक दिल्ली पहुंचे भारतीय सेना ने बगावत कर दी और विद्रोहियों में शामिल हो गए! उन्होंने वृद्ध बहादुर शाह जफ़र को भारत का सम्राट घोषित कर दिया! इस प्रकार 24 घंटे के अंदर के मामूली विद्रोह से शुरू होकर यह पुरे तौर पर राजनितिक बगावत में परिवर्तित हो गया!

अगले एक महीने में बंगाल की पूरी फौज ने बगावत कर दी! सारा उत्तर तथा उत्तर पश्चिम भारत शास्त्र लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा हो गया! अलीगढ मैनपुरी बुलंदशहर इटावा मथुरा आगरा लखनऊ इलाहाबाद बनारस शाहाबाद दानापुर तथा पूर्वी पंजाब जहाँ भी भारतीय सैनिक थे उन्होंने विद्रोह कर दिया! सेना के विद्रोह करे से पुलिस तथा स्थानीय प्रशासन भी तीतर-बितर हो गाय! इसके तुरंत बाद शहर तथा गाओं में विद्रोह शुरू हो गए! लेकिन कई स्थान ऐसे भी थे जहां के लोग सेना के विद्रोह से पहले ही बगावत कर चुके थे! जहां भी विद्रोह भड़का सरकारी खजाने को लूट लिया गया! गोला बारूद जब्त कर लिए गए! बैरकों और न्यायालयों को जला डाला गया और कारागार के दरवाजे खोल दिए गए! गाओं में क्रीड़ाकों तथा बेदखल किए गए जमींदारों ने महाजनों तथा नए जमींदारों पर उन्होंने उन्हें बेदखल किया था! हमला कर दिया! उन्होंने सरकारी दस्तावेजों तथा महाजनों के बही खातों को नष्ट कर दिया!इस तरह विद्रोहियों ने उपनिवेशवादी शासन के सभी चिन्हों को मिटाने का प्रयास किया!

जिन छेत्रों के लोगों ने बगावत में सक्रीय भाग नहीं लिया उन लोगों ने भी अपनी सहानुभूति विद्रोहियों को दी और उनकी सहायता की! ये कहा जाता था की विद्रोही सिपाहियों को अपने साथ भोजन नहीं धाना पड़ता था क्योंकि गाँव वाले उन्हें भोजन खिलाते थे! दूसरी तरफ ब्रिटिश फौजों के प्रति जनता का द्वेष भी स्पष्ट था! उन्होंने उन्हें किसी भी तरह की सहायता अथवा सुचना देने से इंकार किया और कई अवसर पर उन्होंने ब्रिटिश फौजों को गलत सुचना देकर गुमाररह भी किया!

मध्य भारत में भी जहाँ शासक ब्रिटिश शासन जे आरती वफादार थे फौजों ने विद्रोह कर दिया! हजारों की संख्या में इंदौर सैन्यदल इंदौर में विद्रोहि सिपाहियों के साथ हो गए! इसी प्रकार से 20000 से भी ज्यादा ग्वालियर की सैन्यदल तात्या टोपे तथा झांसी की रानी के साथ चले गए! सारे उत्तर और मध्य भारत में ब्रिटिश शक्ति सिर्फ आगरा तथा लखनऊ तक ही सिमित हो गए थे! अन्य जगह अंग्रेजी फौज तथा अंग्रेजी शासन ताश के पत्तों की तरह भिखर गए!

विद्रोह की सबसे ध्यान देने वाली बात हिन्दू-मुस्लिम एकता थी! मेरठ व दिल्ली के हिन्दू सिपाहियों ने एकमत होकर बहादुर शाह को सम्राट घोषित किया! सभी हिन्दू और मुस्लिम सिपाहियों ने सम्राट का अधिपत्य स्वीकार किया और विद्रोह के बाद 'दिल्ली चलो' का आह्वान किया! हिन्दू और मुस्लिम ने साथ मिलकर लड़ाई लड़ी और साथ ही मरे! जहां भी सिपाही पहुंचे हिन्दू भावनाओं के प्रति आदर करते हुए गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता था!  विद्रोह की आंधी दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, बरेली, झांसी और आगरा में केंद्रित थी! प्रारम्भिक तौर पर इन स्थानों के नेता पूरी तरह सवतंत्र थे! इसके बावजूद आंदोलन के समय इन सभी ने बहादुर शाह का अधिपत्य स्वीकार किया!

अब आइए हम बात करते है की इस आंदोलन में कौन-कौन से मुख्य नेतृत्वकर्ता थे:-
1)बख्त खां-
 दिल्ली में बहादुर शाह नेता थे! लेकिन वास्तविक अधिकार सिपाहियों के पास था! बख्त खा जिसने सिपाहियों के विद्रोह का बरेली में नेतृत्व किया था! 3 जुलाई 1857 को दिल्ली पहुंचे! उस तिथि से उसने वास्तविक अधिकार का संचालन प्रारम्भ किया!उसने सूपाहियों के न्यायालय की स्थापना की जिसमे दोनों हिन्दू और मुस्लिम विसरोहि शामिल थे! परन्तु उससे पहले ही से सिपहियों ने सम्राट के आदेशों के प्रति ध्यान नहीं दिया! बहादुर शाह ने सेना के अधिकारियों की उनके न्यायालय में बेढंगे वस्त्र में आने पर शासन के प्रति उनके अनादर के प्रदर्शन के तरीकों की भत्सर्ना की!

2)नाना साहेब और तात्या टोपे

कानपूर में नाना साहेब द्वारा विद्रोह का नेतृत्व किया गया जो की पेसजवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे! विद्रोही सिपाहियों ने भी नाना साहेब को सहयोग दिया और उनके नेतृत्व में सैनिक और नागरिक दोनों ने मिलकर युद्ध किया! उन्होंने अंग्रेजों को कानपुर से बहार निकाल दिया गया और नाना साहेब को पेहवा घोषित किया जिन्होंने की बहादुरशाह को भारत का सम्राट स्वीकारा! पर ज्यादातर लड़ाइयां तात्या टोपे के नेतृत्व में लड़ी गई और वह एक महान देशभक्त और ब्रिटिश विरोधी नेता के रूप में चर्चित रहें!

3)अवध की बेगम
लखनऊ में अवध की बेगम ने नेतृत्व प्रदान किया और उनके लड़के बिरजिस कदर को अवध का नवाब घोषित किया! लेकिन यहां भी सबसे प्रसिद्द नेता हुए फैज़ाबाद के मौलवी अहमदुल्लाह जिन्होंने विद्रोहियों को संगठित किया तथा अंरेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी!

4)रानी लक्ष्मीबाई
झाँसी की रानी लछमीबाई भी बहुत लोकप्रिय नेता थी! उनका यह विश्वास था की हिन्दू कानून का उलंघन कर उनके शासन अधिकारों को छीना गया है! लेकिन वे आरंभिक अवस्था में हिचक रही थी परन्तु एक बार विद्रोह में शामिल होने के बाद उन्होंने बहादुरी से युद्ध किया!

5)कुंवर सिंह
लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रिय और विशिष्ट नेता आरा के कुंवर सिंह थें! उनके नेतृत्व में सैनिक और नागरिक विद्रोह पूरी तरह मिल गए थे! और अंग्रेज उनसे सबसे ज्यादा भयभीत रहते थे! युद्ध दल के करीब 5000 जवानों के साथ जिनमे की दानापुर के 600 सिपाही और रामगढ़ के विद्रोही भी शामिल थे! कुंवर सिंह मिर्जापुर बांदा और कानपुर के छेत्रों में सहीद हुए! वे रेवा राज्य तक पहुंचे और यह सोचा की जितनी जल्दी रेवा विद्रोहियों के हाथ आ जाएगी ब्रिटिश बाध्य होकर दच्छिन की और जाएगी! लेकिन किसी कारणवश कुंवर सिंह दच्छिन दिशा की तरफ नहीं बढे! वे बांदा लौट आए और वहाँ से आगरा वापस पहुंचे जहां की जिन्होंने ब्रिटिश दाल को परास्त किया! वे गंभीर रूप से घायल हो गए और अपने पैतृक  घर जगदीशपुर में 27 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गई!

अज्ञात शाहिद
अपनी वीरता और देश भक्ति के लिए याद किए जाने वाले इन नेताओं के अतिरिक्त अनेकज्ञात नेता सिपाहियन कृषको और छटे-छटे जमींदारों के बिच थे जो की वीरता और शौर्य में किसी से कम नही थे! उन्होंने भी ब्रिटिश को भारत से बहार निकालने के लिए अभूतपूर्व शौर्य के साथ युद्ध किया! कृषकों और सिपाहियों ने अपने धर्म और जाती के मतभेदों को भूलकर और अपने संकीर्ण स्वार्थों से ऊपर उठकर देश की खसतीर अपने जानों की कुर्बानी दी! 

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