अशोक के धम्म नीति और प्रमुख शिलालेख एवं उनमे वर्णित विषय हिंदी में /ashok ke dhamm niti or pramukh shilaalekh awam unme warnit wishay in hindi



 अशोक मौर्य  (273ई•पु•- 2736ई•पु•)

अशोक एक अत्यधिक क्रूर शासक था और उसने कई युद्ध में विजय हुआ परन्तु कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार को देख कर अशोक का ह्रदय परिवर्तन हो गया और  उसी समय वचन लेता है की में आज के बाद कोई युद्ध नहीं लडूंगा और बौद्ध धर्म को अपनी शेष जीवन का आधार मान कर अहिंसा के रस्ते चल दिया! और इस प्रकार अशोक ने अभिलेखों के माध्यम से अपना सन्देश पूर्ण साम्राज्य पर देने लगा!


धम्म के सिद्धांत इस प्रकार से प्रतिपादित किए गए थे की वे सभी समुदायों और धार्मिक सम्रदाय के व्येक्तियों को स्वीकार्य  हो! धम्म निति में अहिंसा पर भी बल दिया गया है! अहिंसा को व्यावहारिक स्वरुप युद्ध एवं विजय अभियान का परित्याग  करके दिया जाना था! अहिंसा का पालन पशुओं की हत्या पर नियंत्रण करके भी किया जाता था! अहिंसा का अर्थ पूर्ण अहिंसा नहीं था! अशोक यह समझता था की अपनी राजनैतिक शक्ति के प्रदर्शन के बिना जंगली आदिम जातियों पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता था! धम्म  निति में कुछ कल्याणकारी कार्य जैसे - वृच्छारोपण कुए खोदना आदि की भी चर्चा की गई है! अशोक ने धर्मानुष्ठान तथा बलि चढाने को अर्थहीन कहकर उस पर प्रहार किया! धम्म महामात्रा के नाम से कुछ अधिकारी भी धम्म निति के विभिन्न पच्छों को लागू करने तथा उनका प्रचार करने के लिए नियुक्त किए गए! अशोक ने समाज के विभिन्न वर्गों के बिच अपना सन्देश पहुंचाने के लिए इन धम्म महामात्राओं पर भारी दायित्व डाला! किन्तु धीरे-धीरे यह धम्म महामात्र समूह धम्म के पुरोहितों के रूप में परिवर्तित हो गए! इन्हे अत्याधिक अधिकार प्राप्त थे! फलतः सिघ्र ही यह समुह राजनितिक में हस्तछेप करने लगा! तथा  अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई. में पाडरेटी पेन्टहेलर ने की थी! इनकी संख्या 14 है! अशोक के अभिलेख पाषणे में सबसे पहली सफलता 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप को हुई!धम्म निति में शिलालेखों को एक-एक कर स्पष्टरूप से निचे देखेगें जो निम्न हैं- 


शिलालेख 1-  पहले शिलालेख में पशु हत्या तथा उत्सव समारोहों(सामाजिक) पर प्रतिबद्ध लगाया गया था!


शिलालेख 2 -  इसमें समाज कल्याण से सम्बंधित कुछ कार्य बताए गए हैं जो की धम्म के कार्यों में निहित हैं! इसमें मनुष्यों एवं पशुओं के लिए चकित्सा मार्ग निर्माण कुआ खड़ने तथा वृछारोपण का उल्लेख मिलता है!


शिलालेख 3 -  इसके द्वारा ब्राह्मणो तथा श्रावणो के प्रति उदारता को एक विशेष गन बताया गया है! साथ ही माता-पिता का सम्मान काना सोच-समझकर धन को खर्च कर और बचाना भी अच्छे गन कहे गए हैं! 


शिलालेख 4-  इसमें धम्म निति से सम्बंधित अत्यंत महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए गए हैं! इसमें कहा गया है की धम्म की निति के द्वारा अनैतिकता तथा ब्राह्मणों एवं श्रमणो के प्रति िरादर की प्रवृति हिंसा मित्रों और रिश्तेदारों के साथ आशाबनिय व्यवहार तथा इसी प्रकार के अन्य-गलत कार्यों पर नियंत्रण लगा है! पशु हत्या भी काफी हद तक रोकी जा सकीय है!

 
शिलालेख 5 -  पांचवे शिलालेख में पहली बार शोक के शासन के दसवें वर्ष में धम्म महामात्रों की नियुक्ति के बारे में चर्च की गई है! यह विशिष्ट अधिकारी राजा द्वारा सभी सम्प्रदायों धर्मों के हितों की रच्छा तथा धम्म निति को समाज के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए नियुक्त किए गए थे! धम्म निति के क्रियान्वयन का दायित्व इन्हीं पर था! 


शिलालेख  6-  इसमें धम्म महामात्रों के लिए आदेश लिखे गए हैं! इनमे कहा गया है की वे राजा के समछ किसी भी समय सूचनाएं ला सकते हैं चाहे राजा किसी महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त क्यों न हों! इस शीओलालेख के दूसरे भाग में सजग एवं सक्रीय प्रशासन तथा सुचारु व्यापार का उल्लेख मिलता है! 


शिलालेख 7-  इसमें सभी सम्प्रदायों के बिच साहिष्णुता का आह्वान है! इस शिलालेख से संकेत मिलता है के सम्प्रदायों के बिच काफी तनाव विशमां था और संभवतः एक-दूसरे के प्रति विरोध खुलकर प्रकट होता था! यह आह्वान एकता बनाए रखने की विस्तृत निति का ही एक अंश है!


शिलालेख 8 -  इसमें कहा गया है की सम्राट द्वारा धम्म यात्राएं आयोजित होंगी! सम्र्राट की आखेटन गतिविधियों अब त्याग दी गई! धम्म यात्राओं ने सम्राट को अपने साम्राज्य के विभिन्न भागों में जनता के विभिन्न वर्गों के संपर्क करने का अवसर प्रदान किया!

शिलालेख  9-  इस शिलालेख में जन्म बिमारी विवाह आदि के उपरान्त तथा यात्रा के पूर्व होने वाले समारोहों की निंदा की गई है! पत्नियों तथा माताओं द्वारा समारोह मनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया! इसके स्थान पर अशोक धम्म पर बल देता है और समारोहों की व्यर्थता की बात कहता है! 


शिलालेख 10-   इसमें ख्याति एवं गौरव की निंदा तथा धम्म निति की श्रेष्ठता पर विचार प्रकट किए गए है!

शिलालेख 11-  इसमें भी धम्म निति की व्याख्या की गई है! इसमें बड़ों का आदर पशु हत्याए न करने तथा मित्रो के प्रति उदारता पर बल दिया गया है! 

शिलालेख 12-  इस शिलालेख में पुनः सम्प्रादयों के बिच सहिष्णुता का निवेदन किया गया है! इससे स्पष्ट होता है की राजा विभिन्न सम्प्रदायों के बिच टकरावों से चिंतित था और सौहार्द बनाये रखने के लिए निवेदन करता है!  


शिलालेख 13-  इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक की ह्रदय-परिवर्तन की बातें कही गयी है! इसी में पडोसी राजाओं का वर्णन है!

शिलालेख 14-  अशोक  ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया!

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