संथाल विद्रोह 1855 ई॰
संथाल विद्रोह 1855-1857 में हुए वीरभूम बांकुरा सिंघभूम हजारीबाग भागलपुर और मुंगेर के आदिवासी विद्रोह प्रमुख हैं! इन विद्रोहों के भड़कने में औपनिवेहक शासन के स्वरुप की अहम भूमिका है! उत्तरी और पूर्वी भारत से कुछ ऐसे जमींदार और सूदखोरों की चर्चा मिलती है जो आदिवासियों को पूरी तरह अपने चंगुल में दबा कर रखते थे! ये सूदखोर 50% से 500% की दर पर पैसा उधार दिया करते थे! इसके लिए साहूकार दो तरीके अपनाते थे! एक तरफ 'बड़ा बाण' उनसे सामान लेने के लिए और दूसरी तरफ 'छोटा बाण' उनको सामान देने के लिए! वे संथालों की जमीं भी हड़प लेते थे!
जमींदारों के बिचौलिए भी निर्दयता से आदिवासियों का शोषण करते थे! यहां तक की हमें बंधुआ मजदूरी और रेल लाइनों पर काम कर रही महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाने का भी उदाहरण मिलता है!
जब विद्रोह शुरू हुआ तो यह प्रमुखतः महाजन और व्यपारियों के खिलाफ था न के अंग्रेजों के! आदिवासियों ने एलान किया की उनके नए भगवान् ने उन्हें आदेश दिया था की वे हर एक भैंस वाले हल के लिए दो आना हर एक गाय वाले के लिए आधा आना की दर से सरकार को कर दे! उन्होंने सूद की दर भी तय कर दी जो काम थी! महाजनों पर हुए गुप्त आक्रमण के लिए संथालों को सजा दी जाती थी जबकि उनके शोषकों पर कोई अंकुश नहीं था! इससे पुनः विद्रोह फ़ैला और गलत तरीके से पैसा बटोरने वाले महाजनों के यहां चोरी डकैती सेंधमारी आदि की घटनाएं बढ़ने लगी!
ऐसी स्थिति में सिद्दो और कानू ने यह घोषणा करके की उनके भगवान्(ठाकुर) ने उन्हें अपने शोषकों की आज्ञा का उलंघन करने का आदेश दिया है! बारूद में आग का काम किया! 30 june 1855 को दस हजार संथाल भागहिदी में जमा हुए जहां सिद्दो और कानू ने 'भगवान् के वचन' का एलान किया की संथाल अपने शोषकों के चंगुल से बहार आएं! संथालों ने इस विद्रोह को 'बुराई' पर 'अच्छाई' के विजय का नाम दिया! उनकी यह मानता थी की उनका भगवान् उनके साथ लड़ेगा जिससे इस विद्रोह को एक नैतिक औचित्य भी प्राप्त हुआ!
किस तरह इस विद्रोह ने टूल पकड़ा और कैसे समकालीन परिस्थितियों में इसका स्वरुप विकसित हुआ यह जानकारी दिलचस्प है! मुख्य रूप से यह विद्रोह महाजनों और अधिकारियों के भी खिलाफ था परन्तु बाद में पुलिस गोर काश्तकार रेलवे अभ्यंत और अधिकारीयों के भी खिलाफ हो गया! संथालों ने स्पष्ट किया की वे औपनिवेशिक शासन के भी खिलाफ हैं!
विद्रोह 6 महीने तक चला! पूर्व सुचना देकर आदिवाइयों ने बहुत सारे गाओं पर हमला कर दिया! विद्रोहियों द्वारा जमींदारों और सरकार पर बहुत दबाव डाला गया! कई इलाकों में जमींदारों ने विद्रोह को दबाने में शासन की मदद की!
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