महमूद गजनवी द्वारा भारत पर किए गए आक्रमण?



महमूद गजनवी


10वी से 11वी शदी ई के मध्य बहुत-सी युद्ध जातियों का उद्भव हुआ! ये योद्धा जातियां सैनिक शासक जातियां थी और अंततः इन सभी जातियों क ा एक जाती राजपूत में विलय हो गया! राजपूत शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के राजपुत्र से हुई! जिन चार राजपूत जातियों को इस समय विशेष दर्जा प्राप्त था वे प्रतिहार चालुक्य चौहान और सोलंकी थें!

1) महमूद गजनवी- राजनितिक एवं सैनिक शब्दावली में महमूद गजनवी के आक्रमण वास्तव में दिल्ली सल्तनत के पूर्वगामी थी! सनं 1000इ. में जिस समय शाहिया रहा जयपाल को महमूद गजनवी द्वारा पराजित किया गया था तभी से भारत पर होने वाले उसके आक्रमण प्रति वाश होने लगे! यह सिलसिला उसकी मृत्यु(१०३०) तक चलता रहा! मुल्तान पर अधिकार करने के बाद महमूद ने पंजाब को भी अपने अधीन आकर लिया! बाद में महमूद ने गंगा-यमुना दोआब पर आक्रमण किए! भारत में महमूद के आक्रमण करने का मुख्य उद्देश्य भारत की विशाल सम्पदा थी जिसका बहुत बड़ा अंश नकदी जेवरात और सोने के रूप में मंदिरों में जमा था! इसी कारणवश सनं 1010-1026ई तक महमूद के आक्रमणों का लछ्य थांनेश्वर मथुरा कन्नौज और अंततः सोमनाथ जैसे मंदिर-नगर थे! इन आक्रमणोंका अंततः परिणाम यह हुआ की भारतीय विरोध मृतप्राय हो गया जिससे भविष्य में भारत में तुर्को की विजय का मार्ग प्रशस्त हो गया! इससे भी महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ की इन अभियानों ने बाह्य खतरों का संगठित रूप से विरोध प्रस्तुत करे की भारतीय राजनितिक की कमजोरी को स्पष्ट कर दिया!

महमूद की मृत्यु के थोड़े समय बाद ही उसके साम्राज्य का भी वही हाल हुआ जो अन्य सदाम्राज्यों का होता है! सत्ता के उदित होते नवीन केंद्र जो दुःसाहड़ी तुर्की दैनिक के इर्द गिर्द बने ने सत्ता के पुराने केंद्रों का स्थान ग्रहण कर लिया! गजनवी साम्राज्य के खुरासान तथा ट्रांस-ऑक्सीनियन पर पहले सैलजुको द्वारा और बाद में ख्वारिकम शाह द्वारा अधिकार कर लिया गया! उनके अपने जन्म स्थान अफगानिस्तान पर उनकी सत्ता को शंसबनी वाश के गौर राज्य ने समाप्त कृ दिया! लेकिन इस उथल-पुथल के बावजूद भी गजनी वाश का शासन पंजाब और सिंध में सन्न 1175ई. तक कायम रहा! 

उत्तर-पश्चिम भारत में गजनी शासकों के अधीन फैले छेत्र को सुनिश्चित करना कठिन है! उत्तर की ओर इसके अधीन सियालकोट एवं सम्भतः पेशावर था! दच्छिनी सीमाओं को चौहान राजपूतों ने काफी सिमित कर दया! जिन्होंने पंजाब के कुछ भागों पर पुनः अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था! 

मोहम्मद गौरी के प्रारंभिक आक्रमणों का मुख्य सैनिक उद्देह्य पंजाब एवं सिंध पर अधिकार करना था! पहले के अन्य आक्रमणकारियों से भिन्न मोहम्मद गौरी ने ज्यादा प्रचलित खैबर दर्रे के स्थान पर गोमल दर्रे द्वारा सिंध के मैदानी छेत्रों पर आक्रमण करने का निर्णय किया! संन 1179इ. तक पेशावर कच्छ और मुल्तान पर अधिकार कर लिया गया! इसके पश्चात लाहौर पर आक्रमण कियागया! मोहम्मद गौरी ने अब भारत में और आगे की ओर अपने विजय अभियान किया! थोड़े समय में ही ये सैनिक कार्यवाहियां प्रत्यछ टूर पर गंगा के मैदानों में स्थित राजपूत राज्यों के वीर्यद्ध होने लगी! इन आक्रमणों का सबसे अधिक दबाव चौहान शासकों पर पड़ा जिनके अधीन अजमेर से दिल्ली तक का भू-भाग था जो भारत का प्रवेश द्वार था! गौरी ने 1191इ में भटिंडा पर अधिकार आकर लिया! दुर्ग रच्छ्कों ने शीघ्र ही आत्मसमर्पण कार दिया! लेकिन चौहान सेना ने पृथ्वीराज के नेतृव में गौरी की सेना पर तीर्व गति से आक्रमण किया और उसको अपमानजनक पराजय दी! लेकिन अगले वर्ष गौरी विशाल सेना के साथ आया! सन्न 1192 इ की प्रसिद्ध तारायण की लड़ाई में गौरी ने चौहानों पर निर्णायक विजय हासिल की! सैन्य महत्व के सभी महत्वपूर्ण स्थानों-हांसी कुहराम सरसुती जैसे- पर तुरंत अधिकार कर घेराबंदी कर ली गई! मोहम्मद गौरी दिल्ली के समीप ईन्र्दप्रस्त में कुतुबुद्दीन ऐबक के नेतृत्व में अपनी सेना को छोड़कर अपनी योजना को मध्य एशिया में कार्यान्वित करने के लिए वापस लौट गया! ऐबक को राज्य को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली बनाने के वितरित अधिकार प्रदान किए गए! 

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