नील विद्रोह


नील विद्रोह

1857 के विद्रोह के बाद जन-आंदोलन समाप्त नहीं हुए! हम देखते हैं की इसके बाद भी बहुत सारे आंदोलन हुए! जिनमे 1859 की नील की क्रान्ति भी प्रमुख है!

1770 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नील की खेती शुरू की गई! अंग्रेज काश्तकारों द्वारा जबरदस्ती तथा क़ानूनी तिकड़मों द्वारा किसानों को घाटे पर भी नील उगाने के लिए बाध्य किया जाता था! चूँकि कृषक स्वयं खाने तक के लिए अनाज नहीं उगा पाते थे अतः इससे उनमे बहुत असंतोष पैदा हुआ! 1859 तक हजारों कृषकों ने नील की खेती करने से इंकार कर दिया! उन्होंने अपने संगठन बनाए तथा बागान-मालिकों पर उनके सैनिकों का प्रतिरोध करने लगे! समकालीन अखबार जैसे 'द बंगाली' में विस्तार से इसकी रपट प्रकाशित की गई और बताया गया की विद्रोह सफल रहा! दीनबंधु मित्र ने बंगला में 'नीलदर्पण' लिखा और नील कृषकों की दुर्दशा को उजागर किया!

नील विद्रोह के कारण सरकार जांच समिति गठित करने को बाध्य हो गई(१८६०) विद्रोह की वजह से बंगाल में बगीचा प्रथा को काफी नुक्सान पहुंचा और खेतिहरों को बाध्य होकर बिहार जाना पड़ा!

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