1857 की क्रांति की विफलता का कारण
अंग्रेजों ने 20 सितम्बर 1857 को दिल्ली पर कब्ज़ा किया! इससे पहले विद्रोहियों को कानपुर आगरा लखनऊ और कुछ अन्य जगहों पर मात खानी पड़ी! पर इन सब पराजयों से विद्रोहियों के जोश में कमी नहीं आई! लेकिन दिल्ली के पतन होते ही उन्हें गहरा आघात लगा! इससे अब स्पष्ट हो गया की अंग्रेजों का ध्यान सबसे अधिक दिल्ली पर क्यों केंद्रित था! और इसके लिए उन्हें काफी जान और माल की हानि उठानी पड़ी! बहादुर शाहको दिल्ली में कैद कर लिया गया और उसके राजकुमारों को पकड़कर क़त्ल कर दिया गया!
एक के बाद एक सभी विद्रोही नेताओं की हार होती गई! नाना साहेब कानपुर में पराजित हुए और उसके बाद 1857 के शुरू में नेपाल भाग गए! उनके बारे में उसके बाद कुछ पता नहीं चला! तात्या टोपे मध्य भारत के जंगलों में भाग गए! वहीँ से गुरिल्ला युद्ध जारी रखा! अप्रेल 1857 में उनके एक जमींदार मित्र ने धोखे से उन्हें सुप्तावस्था में गिरफ्तार करवा दिया! उन पर शीघ्र मुकदमा चलाकर 15 अप्रेल 1858 को उन्हें फांसी दे दी गई! झाँसी की रानी 17 जून 1858 को लड़ाई के मैदान में मारी गई! 1859 तक कुंवर सिंह बख्त खाँ बरेली के खान बहादुर खान मौलवी अहमदुल्ला सभी मर चूका थे जबकि अवध की बेगम नेपाल भाग गयी थी! 1859 के अंत तक अंग्रेजों का भारत के ऊपर फिर से पूरी तरह और दृढ़ता से इस शक्तिशाली विद्रोह के पतन के कई कारण थे! इनमे से हम कुछ के बारे में आपको बताएगें!
एकरूपता विचारधारा एवं कार्यक्रम का अभाव-
1857 के विद्रोह से ब्रिटिश सरकार और प्रशासन प्रणाली को कुछ सांय के लिए उखाड़ फेंका लेकिन विद्रोहीन यह नहीं जानते थे की इसकी जगह क्या विकल्प होना चाहिए! उनके दिमाग में कोई भी दूरदर्शी योजना नहीं थी इस कारन उन्हें पुरानी सामंत व्यवस्था की ओर देस्खना पड़ा! यह व्यवस्था इतनी जार्जेट हो चुकी थी ओर उसमे इतनी शक्ति भी नहीं रह गई थी! जिसमे की अंग्रेजों का सामना कर पाए! इन शासकों की असफलता के कारन ही अंग्रेज पुरे भारत को अधीन करने में सफल हो सके थे! इन लोगों पर भरोसा करने के कारन विद्रोहीयों को भारतीयों में एक नै चेतना जगाने में बछड़ा उपस्थित हुये!केवल राष्ट्रीय एकता ब्रिटिश शासन का सछम विकल्प बना सकती थी!
भारतीयों में एकता का अभाव-
भारतीयों में कोई व्यापक एकता नहीं बन पाई थी! यद्धपि बंगाल के सिपाहियों ने विद्रोह में भाग लिया था किन्तु सिख दच्छिन भारतीय सिपाही अंग्रेजों की ओर से इससरोहियों का दमन कर रहे थे! इसके अतिरिक्त पूर्व एवं दच्छिन भारत के अधिकतर छेत्रों में कोई विद्रोह नहीं हुए! सिखों ने भी विद्रोहियों का साथ नहीं दिया! इन वर्गों के विद्रोह में भाग नहीं लेने के निजी कारण थे! मुग़ल शासन के पुनरुत्थान की संभावना से सिखों में भय उत्पन्न हो गया था! ये मुग़लों के द्वारा बहुत सताए गए थे! इसी प्रकार राजस्थान के राजपूत राजाओं और हैदराबाद के निजाम मराठा शक्ति के पन्रुत्थान से आशंकित थे मराठों ने इनके राज्यों में जा कर लूटपाट मचाई थी! इसके अलावा कृषकों के कुछ वर्गों ने जो ब्रिटिश शासन से लाभान्वित थे अंग्रेजों के विद्रोह के खिलाफ सहयोग दिया बंगाल महाप्रांत के जमींदार ब्रिटिश शासन के ही उपज थे और उनका सहयोग स्वाभाविक ही था! यही बात कलकत्ता बम्बई एवं मद्रास के बड़े व्यपारियों के साथ भी लागू होती है जो की विद्रोहियों के साथ होने की बजाय अंग्रेजों के सहायक बने!
शिछित भारतीयों के सहयोग का अभाव -
आधुनिक शिछित भारतीयों ने भी विद्रोह को सहयोग नहीं दिया क्योंकि उनके विचार का रूप पिछड़ा हुआ था! यह शिछित मध्य वर्ग ब्रिटिश शिछित व्यवस्था की उपज थे और उनके ऐसी धारण बन गयी थी देश को आधुनकीकरण की ओर अग्रसर करने में अंग्रेज ही नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं!
नेताओं में फुट-
सबसे मुख्य समस्या विद्रोहियों के वर्ग में एकता के अभाव की थी! उनके नेता एक दूसरे के प्रति संदेहस्पद एवं ईर्ष्यालु थे और अक्सर छोटे झगड़ों में उलझते रहते थे! उदाहरण के लिए अवध की बेगम मौलवी अहमदुल्ला के साथ और मुग़ल शासक सेना प्रमुख के साथ झगड़ते रहते थे! नाना साहेब के राजनितिक सलाहकार अजीमुल्लाह ने उन्हें दिली न जाने की सलाह दी क्योंकि वे सम्राट बहादुरशाह के सामने छोटे पद जायेगें इसलिए नेताओं के स्वार्थपन एवं संकीर्ण दृष्टिकोण ने विद्रोह को दुर्लभ बना दिया और इसके एकीकरण में रुकावट डाली
ब्रिटिश सैनिकों की श्रेष्ठता-
विद्रोह की विफलता का अन्य मुख्य कारन अंग्रेजों के पास उत्कृष्ट शास्त्रों का होना! दुनियभर में अपनी शक्ति की ऊंचाई पर तथा ज्यादातर भारतीय शासकों एवं प्रधानों के द्वारा ब्रिटिश साम्राजयवाद विसरोहियों के लिए सैन्य रूप से कहीं ज्यादा मजबूत था! जबकि विद्रोहियों में अनुशासन एवं केंद्रीय नियंत्रण का अभाव था अंग्रेजी सेना को लगातार अनुशासित जवानों युद्ध सामग्रियों और पैसों का श्रोत ब्रिटेन से मुहैया होता था! सिर्फ साहस से ही शक्तिशाली एवं निर्धारित शत्रु को जिन्होंने अपनी युद्ध निति चतुराई के साथ नियोजित की थी! नहीं जीता जा सकता था! अनुशासनहीनता के कारन ही मुठभेड़ में विसरोहियों को अंग्रेजों की अपेछा अधिक जान माल की हानि उठानी पड़ी! अंग्रेजी सेना की श्रेष्ठता देखकर भारतीय सिपाहियों में से अधिकतर अपने गांव वापस लौट गए!
इन्ही सब कारणों से 1857 की क्रांति विफल हो गई! परन्तु भारतियों में इस विफलता के बाद भी स्वतंत्रता की उम्मीद थी की हमें एक दिन आजादी जरूर मिलेगी और आखिरकार एक लम्बी लड़ाई के बाद भारतियों ने 15 अगस्त 1947 को आजादी प्राप्त कर ली!
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