गरम दल और उसके नेता व कार्य

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभाजन से बने गरम दल :-
Historyindiaworld.blogspot.com
Historyindiaworld.blogspot.com

भारतीय राष्ट्रीय मंच पर बींसवीं शादी के प्रथम दशक में उग्रवाद का उदय अचानक नहीं हो गया था! वास्तव में अप्रत्यछ रूप से सन 1857 के विद्रोह से ही धरे-धीरे इस विचारधारा का विकास होने लगा था!

गरम दल का सैद्धांतिक आधार 
गरम दल के अनुसार सन 1857 के विद्रोह के राष्ट्रीय उद्देश्य स्वधर्म तथा स्वराज की शापना थे! उदारवादियों(गरम दल) ने जो बुद्धिवाद और पाश्चात्य आदर्शो को अपनाया था उसके कारन वे भारत में जनसाधारण से बहुत दूर चले गए थे! इसलिए अपने उच्च आदर्शों के बावजूद वे जनसाधारण पर अपना प्रभाव जमाने में असफल रहे! यह जरुरी था की कोई वर्ग जनता और राजनैतिक नेतृत्व के बिच की खाई को भरता! सभी पाश्चात्य वस्तुओं की प्रशंसा और उसकी नक़ल करने की प्रवित्ति के स्थान पर उनीसवीं शादी के नवें दशक में के ऐसा आंदोलन चला जिसमे लोगों को अपनी प्राचीन सभ्यता की ओर लौटने के लिए कहा गया! इस प्रकार की भावना दबे टूर पर तो पहले भी थी और सन 1857 में यह अचानक उभर कृ सामने आया! लेकिन पाश्चात्य शिछा प्राप्त समुदाय आमतौर पर भारतीय जीवन की मुख्य धारा से अलग रहा और इस प्रवृत्ति से भी अछूता रहा! छोटे से शिछित समुदाय और आम जनता में जो खाई थी उसको पाटने का ऐतिहासिक कार्य स्वामी रामकृष्ण परमहंस और उनके अंग्रेजी शिछा प्राप्त शिष्य स्वामी विवेकानंद तथा वैदिक साहित्य में निष्णात स्वामी दयानन्द और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने किया! श्रीमती एनीबेसेन्ट की समन्वयवादी थियोसोफिकल सोसाइटी ने भी इस छेत्र में अपना योगदान दिया! इन समाज सुधार आन्दोलनों ने राजनैतिक उग्रवाद को प्रोत्साहन दिया! अपनी संस्कृति धर्म और राजतंत्र के प्रति लोगों में स्वाभाविक लगाव था! राजनैतिक उग्रवादी जिन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत से प्रेरणा ग्रहण की थी! पराम् राष्ट्रवादी थे और यह चाहते थे की भारत सब देशों से सामान स्टार पर और आत्मसम्मान के साथ मिले! उनमे आत्मसम्मान कूट-कूट कर भरा था और वे अपना सर ऊँचा रखना चाहते थे! वे नरम दल को अंग्रेजों का चापलूस वे मुसाहिब मानते थे इसलिए उन्होंने विरोध किया! उग्रवादियों की दृष्टि में उद्धार केवल राजनिति तक सिमित नहीं था बल्कि इसका अर्थ कहीं अधिक व्यापक और गूढ़ था! उनके लिए इसका अर्थ जीवन के समस्त व्यापारों में नवस्फूर्ति व नवशक्ति का संचार करना था वे समझते थे की शासक वर्ग में शक्ति परिछन अवश्यम्भावी है! उनका कहना था की उनके सपनों के नए भारत के निर्माण में अंग्रेजों का कोई योगदान नहीं होगा!

गरम दल का विस्तार
गरम दल देश के तीन भागों में अधिक सक्रीय था! महाराष्ट्र दल के नेता थे तिलक बंगाल दल के नेता थे विपिनचन्द्र और अरविन्द तथा पंजाब दल का नेतृत्व लाला लाजपतराय कर रहे थे! बंगाल के उग्रवादी बंकिमचंद्र की विचारधारा से बहुत प्रभावित थे! बंकिम एडमंडबरक की भाँती उदार पुराणपंथी थे! वे भूतकाल से सम्बन्ध विच्छेद नहीं करना चाहते थे क्योकि उनकी दृष्टि में इससे समस्याए सुलझने के बजाए और भी ज्यादा उलझ जाती! वे सुधारों को ऊपर से थोपने के विरोधी थे! उनका विचार था की सुधारों से पूर्व नैतिक और धार्मिक पुरुत्थान आवश्यक है और यह पुनरुत्थान केवल धर्म के मूल सिद्धांतों के आधार पर ही संभव है! बंकिम ने उदारवादियों की भर्त्सनापूर्ण आलोचना करके उदारवादियों को इस विषय में दिशा प्रदान की!

उग्रवादियों का राधत्रवाद भवुकता से परिपूर्ण था! राष्ट्रवाद की इस प्रेरणादायक धारणा में सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक आदर्शों सभी का समावेश था! यही सन्देश लेकर विवेकानंद पश्चिम गए थे और उनकी सफलता ने भारतीयों में दृढ आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का संचार किया था! अरविंद ने तो देशभक्ति को ऊँचा उठाकर मातृ वंदना के समकछ रख दिया था! एक पात्र में उन्होंने कहा था 'मैं अपने देश को अपनी मॉ मानता हूँ! मैं उसकी आराधना करता हूँ! की मैं उसकी स्तुति करता हूँ!'

अरविन्द दयानन्द सरस्वती की शिच्छाओं से बहित प्रभावित हुए थे! दयानद की विचारधारा पर पाश्चात्य प्रभाव नहीं के बराबर था! अरविन्द ने दयानद को देश का सबसे बड़ा सुधारक मन क्योंकि उन्होंने देश को एक सुनिश्चित मार्ग सुझाया था! इस प्रकार बंकिमचंद्र दयानन्द और विवेकानंद आदि ने वह दार्शनिक आधार प्रदान किया जिस पर उग्रवादियों ने अपना राजनैतिक कार्यक्रम तैयार किया था!

गरम दल की कार्यवाई
तिलक ने इस बात का विरोध किया की एक विदेशी सरकार जनता के निजी और व्यक्तिगत जीवन में हस्तछेप करे! सन 1891 के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने वाले विधेयक को लेकर उनका सुधारकों से झगड़ा हो गया! उन्होंने सन 1893 में गणपति महोत्सव प्रारम्भ किया! सन 1893-1894 में अरविन्द ने 'इंद्रप्रकाश' पात्र में 'नीव लैम्प्स फॉर ओल्ड' का प्रकाशन किया!

तिलक ने सन 1895 में पूना में कांग्रेस के पंडाल में 'नेशनल सोशल कॉन्फ्रेंस' को अपना अधिवेशन नहीं करने दिया और इस प्रकार उसे चुनौती दी! नेशनल सोशल कॉन्फ़्रेंके' उदारवादियों के प्रभाव में था! इसी वर्ष(१८९५) पौंआ सार्वजनिक सभा पर भी उदारवदियों के स्थान पर उग्रवादियों का प्रभुत्व हो गया! शिवाजी उत्सव का आयोजन पहली बार 15 अप्रेल 1896 को हुआ! 4 नवम्बर 1896 को दहहीं सभा की स्थापना से महाराष्ट्र में नरम दल और गरम दल का पूरी तरह अलगाव हो गया! लेकिन पुरे भारत में अभी इन दोनों दलों में मतभेद अलगाव की स्थिति तक नहीं पहुंचे थे! उदहारण के लिए बंगाल के उग्रवादियों के नेता विपिनचन्द्र पाल अब भी उदारवादियों के खेमे में था! सन 1897 में उन्होंने लिखा था 'मैं ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठावान हूँ क्योंकि मैं समझता हूँ की ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठां और अपने देश व अपने देशवासियों के प्रति निष्ठां एक ही बात है और मैं यह भी मानता हूँ के भगवान् ने हमारे उद्धार के लिए इस सर्कार को हम पर शासन करने के लिए भेजा है! 1902 में जाकर ही उनके विचारों में परिवर्तन आया और उन्होंने लिखा 'कांग्रेस भारत में और लंदन में उसकी ब्रिटिश कमिटी दोनों ही भिच्छा मांगने वाली संस्थाए है!'

Comments

Popular posts from this blog

भोजन और उसके कार्य Food and its functions

मैसूर और हैदराबाद राज्य निर्माण की प्रक्रिया

चिश्ती सिलसिले की लोकप्रियता के मुख्य कारण 'Takeknowledge