भारत मे कुरान लिखने की सुलेखन कला -Takeknowledge

  

  इस्लामी संसार में सुलेखन की कला को एक पवित्र कला माना जाता था जिसका प्रयोग कागजों एवं पत्थरों पर सजावट के लिए किया जाता था। हस्तशिल्पियों में सुलेखक को पाण्डुलिपियों को सजाने वाले एवं चित्रकार से ऊपर रखा गया। लेकिन कुरान का सुलेखन पूस्तक कला का एक महत्वपूर्ण रूप बन गया जहां कुरान की प्रतिलिपियां भव्य और व्यापक पैमाने पर बनाई गईं।

कुरान की प्रथम प्रतिलिपि 1399 ई. की है। यह ग्वालियर में सुलेखित की गई थी। इसमें ईरानी तथा भारतीय साधनों से ग्रहण किए गए नाना प्रकार के अलंकारिक प्रतिमान हैं। (इस पांडुलिपि के दो पृष्ठ चित्र 18 में दिखाए गए हैं) इस हस्तलिपि के अग्र पृष्ठ का ज्यामितीय चित्र सल्तनत शैली का प्रतीत होता है जिससे स्पष्ट होता है कि चौदहवीं शताब्दी में दिल्ली की चित्रशालाओं की निम्नलिखित विशेषताएं थीं: 
• यह ईरानी परम्परा से संबंधित है। 
• शीर्षकों और पट्टिकाओं के अभिलेखों में प्रयुक्त कुरान की लिखावट ज्यादातर कूफी शैली की है। 
• अग्र पृष्ठ के ज्यामितीय चित्रों का चित्रण इस शैली की विशेषता थी।

पन्द्रहवीं शताब्दी में सैय्यद और लोदी वंश में पुस्तक कला की दशा खिन्न अवस्था में थी क्योंकि यह बड़े पैमाने पर कलापूर्ण प्रयासों को संरक्षण देने में असमर्थ रहे। ऐसा प्रतीत होता है कि इन प्रयासों को प्रान्तीय। शासकों द्वारा अपनाया गया।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

भोजन और उसके कार्य Food and its functions

मैसूर और हैदराबाद राज्य निर्माण की प्रक्रिया

चिश्ती सिलसिले की लोकप्रियता के मुख्य कारण 'Takeknowledge