सूफी सम्प्रदायों या सिलसिलों की स्थापना (12वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध और तेरहवीं शताब्दी)

'i) भारतीय सामाजिक और धार्मिक जीवन को सूफ़ी मत ने प्रभावित किया। पर भारत में इसके प्रभावी होने के कई दशक पूर्व मुस्लिम देशों में सूफ़ी आंदोलन एक संगठित रूप ले चुका था और कई मार्ग (तरीका) या सूफ़ी सम्प्रदाय कायम हो चुके थे। बारहवीं शताब्दी से ये सम्प्रदाय आकार ग्रहण करने लगे थे। अधिकांश केन्द्रों का विकास एक गुरू विशेष के नेतृत्व में हुआ। आध्यात्मिक गुरू-शिष्य परम्परा की शुरुआत भी हुई। इनका अलग तरीका था, इनकी प्रथाएं और अनुष्ठान अलग-अलग थे। इस प्रकार विभिन्न सूफ़ी सम्प्रदाय (सिलसिला) कायम हुए। इसमें एक के बाद दूसरा गुरू आध्यात्मिक उत्तराधिकारी (खलीफा) अथवा सिलसिले का प्रधान बनता था और सम्प्रदाय की आध्यात्मिक शिक्षा का पालन करते हुए अपने को उससे जोड़कर रखता था। 

ii) सिलसिले के आध्यात्मिक प्रधान और उसके शिष्यों के संबंध ने अब एक आनुष्ठानिक स्वरूप ग्रहण कर लिया। अब शिष्य को सिलसिले में शामिल होने के लिए कई प्रकार के अनुष्ठानों से गुजरना पड़ता था और निष्ठा की शपथ लेनी पड़ती थी। खानकाह में शिष्यों के दैनिक जीवन को नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक सिलसिले के अपने अलग-अलग संस्थागत नियम थे। आध्यात्मिक गुरू (मुर्शिद) को अब । ईश्वर का प्रतिनिधि (वली) के रूप में देखा जाने लगा। मुरीद (शिष्य) को अपने मुर्शिद के समक्ष पूर्ण समर्पण करना होता था। इसके बदले में मुर्शिद अपने मुरीद को तरीका, इसका गुप्त विर्द (समर्पण के लिए एक शब्द), नियम और प्रतीकों की दीक्षा देता था।

iii) कई सिलसिलों के संस्थापकों ने इस्लामी कानून और इस्लाम के अनुष्ठानों को अपना लिया। कई सिलसिलों के संस्थापक पेशेवर काज़ी थे, इससे भी सिलसिला संस्थापक और कट्टरपंथी इस्लाम के संबंध का पता चलता है। पर उन्होंने कट्टरपंथी इस्लामी अनुष्ठानों को एक रहस्यात्मक आवरण दे दिया और नये प्रयोग किए। उन्होंने कई धार्मिक प्रथाएँ लागू की, जो कट्टरपंथी इस्लामी दृष्टिकोण से मेल नहीं खाती थीं। हालांकि सिलसिला के संस्थापकों ने इस्लामी कानून के पालन पर विशेष जोर दिया, पर कई सिलसिलों में गैर परम्परावादी मान्यताएँ और प्रथाएँ स्थापित हुईं। 

iv) ईरान, मध्य एशिया और बगदाद में सक्रिय लोकप्रिय सिलसिलों के नाम नीचे दिये जा रहे हैं। इन्होंने इस्लामी दुनिया में सूफ़ी मत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी। (मृ. 1234) द्वारा स्थापित सुहरावर्दी, शेख अब्दुल कादिर जिलानी (मृ. 1166) द्वारा स्थापित कादिरी, मुइनुद्दीन चिश्ती (मृ. 1236) द्वारा स्थापित चिश्ती और बहाउद्दीन नक्शबंदी (मृ. 1398) द्वारा स्थापित नक्शबंदी (पहले इसे खाजगान के नाम से जाना जाता था) प्रमुख सिलसिले थे। इन सिलसिलों में दीक्षित सूफ़ी अपने-अपने देश या देशों (जैसे भारत) में उनकी शाखाएँ स्थापित करने लगे। शनैः शनैः ये शाखाएँ अलग और स्वतंत्र सूफ़ी मत के रूप में विकसित हुईं और इनकी विशेषताएँ और प्रवृत्तियाँ भी अलग हो गयीं।

v) इस्लामी देशों (ईरान, खुरासान और ट्रांसऑक्सियाना) और भारत आदि देशों में सूफ़ी मत इन तीन चरणों से गुजरने के क्रम में ईसाई मत, नवप्लेटोवाद, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के सम्पर्क में आया और इन धर्मों की कई प्रवृत्तियों और दर्शनों को आत्मसात किया। पर इस आंदोलन का ढाँचा इस्लाम से ही प्रेरित रहा।


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