तूरान और ईरान की भौगोलिक सीमा -Takeknowledge

     अंदरूनी एशिया क्षेत्र जिसे तुरान भी कहते हैं. दो नदियों के बीच बसा हुआ था। अरब आक्रमणकारियों ने इस क्षेत्र को मवारून्नहर (अर्थात् दो नदियों-सीर एवं अमू-के बीच) कहा था। यह क्षेत्र सागर, सीर नदी और तर्कीस्तान से घिरा था. दक्षिण में ईरान, अमू नदी और अफगानिस्तान था तीनशान और हिंदकुश पर्वतों से लेकर काराकोरम रेगिस्तान था; पश्चिम में कैस्पियन सागर और खाई, पहाड, घाटी, रेगिस्तान तथा शुष्क और अर्द्धशुष्क भूमि । इस प्रकार इस क्षेत्र में विभि जीवन शैलियां देखने को मिलती थीं। यहां बंजारे और पशुपालक भी थे तथा स्थाई रूप से बसे हा भा। इस क्षेत्र में जमीन के अंदर जल प्रवाह था और जगह-जगह घिरे हुए समुद्र तटीय क्षेत्र दूर थ और अतलांतिक और प्रशांत सागर से अलग-थलग थे। कृषि के अलावा पशुपालन एक व्यवसाय था। यह स्थान घोडों के लिए प्रसिद्ध था। यहां से काफी मात्रा में भारत को घोड़ों का निर्यात जाता था। समरकंदी कागज और फल (ताजे भी और सूखे भी) निर्यात किए जाते थे। एलबुर्ज पर्वतों के पूर्वी घाट ईरानी पठार को तुर्कीस्तान (ईरान) से अलग करते थे।

जहां तक भौगोलिक विस्तार का सवाल है, ईरान और फारस में एशिया माइनर और कॉकेसस की पहाडी शृंखलाओं से लेकर पंजाब की समतल धरती भी शामिल थी, जिसे ईरानी पठार के नाम से जाना जाता मध्य पठार के रेतीले लवणीय रेगिस्तान को पहाड़ी शृंखला ने घेर रखा था। अतः यह एक प्रकार का बंद समुद्रतट बन गया था। ईरान के चार प्रमुख हिस्से थेः खुजिस्तान और लघु बाहरी समतल भूमि को मिलाकर बनी जागरोस व्यवस्था, ईरान की उत्तरी उच्च भूमि (जैसे अलबुर्ज और तालिश व्यवस्था) और कैस्पियन समतल भूमि: पूर्वी और दक्षिण पूर्वी उच्च भूमि रिम और अंदर का इलाका । जहां तक आर्थिक जीवन का प्रश्न है सभी प्रकार की जीवन शैलियां एक साथ मौजूद थीं। ऊपरी भाग में पशुपालन, निचले इलाकों में कृषि व्यवस्था तथा पश्चिम में कुर्दिश गडेरिये बंजारों का जीवन बिताते थे। जागरोस के उत्तरी-पश्चिमी भाग प्राचीन पूर्वी-पश्चिमी व्यापार मार्गों से जुड़े हुए थे और यहां से ईरानी ऊन, चमड़े, कालीन और रेशम का निर्यात होता था।



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