गदर आंदोलन की मुख्य घटनायें-Takeknowledge


 गदर आंदोलन : मुख्य घटनायें
1914 में घटी तीन मुख्य घटनाओं ने गदर आंदोलन की आगे की दिशा निर्धारित की, लाला हरदयाल की गिरफ्तारी, जमानत और स्विट्ज़रलैंड भाग जाना, कामागाटा मारू जहाज़ की यात्रा और प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआतः

i) मार्च 1914 में हरदयाल को गिरफ्तार कर लिया गया। संभवतः इसका सबसे महत्वपर्ण कारण था ब्रिटिश सरकार का दबाव जो चाहती थी कि वे गदर आंदोलन के नेतृत्व से हट जायें लेकिन जो कारण बताया गया वह था, उनकी अराजकतावादी गतिविधियाँ। उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया और उनकी पार्टी ने फैसला किया कि वह जमानत से भाग कर स्विट्ज़रलैंड चले जायें।

ii) इस बीच, कनाडा के प्रवास कानूनों का उल्लंघन करने के लिए, जिनके अनसार "सीधे अपने जहाज़ पर आने वालों" के सिवा सभी अन्य के आने पर प्रतिबंध था, सिंगापुर में रह रहे एक हिन्दुस्तानी कांट्रेक्टर गुरदित्त सिंह ने कामागाटा मारू नामक जहाज किराये पर लिया और पूर्वी तथा दक्षिण पूर्वी एशिया के विभिन्न भागों में रहने वाले 376 भारतीय यात्रियों को लेकर बैंकवर के लिए रवाना हो गया। रास्ते में गदर पार्टी के कार्यकर्ता जहाज़ पर आते, भाषण देते तथा साहित्य बाँटते। उनके प्रवास की पूर्व सचना मिलने पर वैंकूवर के प्रैस ने "बढ़ते हुए पूर्व के आक्रमण" की चेतावनी दे दी और अपने कानूनों को और कड़ा करके कनाडा की सरकार इस चुनौती का सामना करने को तैयार हो गई! 
कनाडा पहँचने पर, जहाज़ को बंदरगाह में जाने नहीं दिया गया तथा पलिस ने उसकी घेराबंदी कर दी। वैंकूवर में "समुद्रतट समिति" जिसके नेता हुसैन रहीम, सोहन लाल पाठक और बलवन्तसिंह थे, के प्रयत्नों के बावजूद तथा अमरीका में बर्कातल्ला, भगवान सिंह, रामचंद्र और सोहन सिंह भकना के शक्तिशाली अभियान के बावजद, कामागाटा मारू को कनाडा की जल सीमा के बाहर निकाल दिया गया। उसके जापान पहँचने से पहले प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया तथा ब्रिटिश सरकार ने ऐलान कर दिया कि जहाज़ के कलकत्ता पहुँचने से पहले किसी यात्री को उतरने नहीं दिया जायेगा।

वापसी की यात्रा में जिस बन्दरगाह पर भी यह जहाज पहँचा वहाँ भारतीय प्रवासियों में रोष की लहर दौड़ गई और ब्रिटिश विरोधी भावना बढ़ने लगी। जब जहाज कलकत्ता के पास बज-बज नामक स्थान पर पहँचा तो पलिस के द्वेषपूर्ण रवैये के कारण संघर्ष हआ। इस संघर्ष में 18 यात्रियों की मृत्यु हो गई, 202 को गिरफ्तार कर लिया गया तथा बाकी भाग निकलने में सफल हो गये।

ii) तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण घटना जिसने सारी परिस्थिति में एक नाटकीय परिवर्तन

ला दिया वह थी तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत। यही वह अवसर था जिसके इंतज़ार में गदरवादी तैयार बैठे थे ताकि अंग्रेजों की कठिनाइयों का पूरा लाभ उठाया जा सके। यह अवसर उनकी आशाओं से पहले ही आ गया। अभी उनकी तैयारी भी पूरी नहीं हुई थी। फिर भी पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ताओं की विशेष सभा हुई और यह फैसला किया गया कि काम का समय आ गया था। यह विचार किया गया कि दल की सबसे बड़ी कमजोरी हथियारों की कमी थी जिसे हिन्दस्तानी सिपाहियों को विद्रोह के लिए उकसा कर पूरा किया जा सकता था। गदर पार्टी ने एक पत्र ऐलाने-जंग (युद्ध की घोषणा) जारी कर दिया जिसे विदेशों में रहने वाले भारतीयों में बाँटा गया। गदर के कार्यकर्ताओं ने लोगों में प्रोत्साहन जगाने के लिए यात्राएँ भी आरंभ कर दी कि वे हिन्दुस्तान लौट कर संगठित विद्रोह की तैयारी करें। परिणाम बहत ही उत्साहवर्धक था और भारी संख्या में लोगों ने स्वयं को और अपनी सारी सम्पत्ति को राष्ट्र के नाम समर्पित करने की पेशकश की। इससे उत्साहित होकर गदर पार्टी ने हिन्दुस्तान चलने का आह्वान किया तथा 1914 के पर्वार्ध से क्रांतिकारियों के जत्थे विभिन्न रास्तों से होकर हिन्दुस्तान पहुँचने लगे।

 आंदोलन का आखिरी दौर
हिन्दुस्तान में प्रवेशाधिकार घसपैठ के विरुद्ध एक नये अध्यादेश से युक्त होकर हिन्दुस्तानी सरकार ताक लगाये बैठी थी। लौटने वाले प्रवासियों की परी तरह जाँच-पड़ताल की गई और लौटने वाले लगभग 8000 में से 5000 को "सरक्षित" मान कर बिना रोक-टोक के आने दिया गया। शेष में से कछ को गाँवों में नजरबंद कर दिया गया और काफी लोगों को हिरासत में ले लिया गया। फिर भी कछ कटर कार्यकर्ता पंजाब पहुँचने में सफल हो गया।

पंजाब में सरक्षित पहँचने वालों में करतार सिंह सरापा नाम का एक नौजवान तथा बुद्धिमान विद्यार्थी भी था जिसने गदर पार्टी की सदस्यता अमरीका में प्राप्त की थी और जो गदर। अखबार के निकालने में प्रमख योगदान देता था। उसने तरंत लौटने वाले प्रवासियों से सम्पर्क स्थापित करने, उन्हें संगठित करने का काम शरू कर दिया। वह सभाएँ करने लगा तथा । योजना बनाने के काम में जट गया। गदर कार्यकर्ता गाँवों के दौरे करके, पार्टी के पर्चे बाँट कर, मेलों में लोगों को संबोधित करके और अन्य कई प्रयत्नों द्वारा लोगों को विद्रोह के लिये प्रेरित करने लगे। लेकिन 1914 का पंजाब उनकी आशाओं से भिन्न था और लोग गदर द्वारा। काल्पनिक विद्रोह के लिए तैयार नहीं थे। कार्यकर्ताओं को सरकार के वफ़ादार तत्वों के विरोध का भी सामना करना पड़ा जिसमें खालसा दीवान का प्रमुख भी शामिल था जिसने उन्हें तनखैया या पतित सिखों और अपराधी का दर्जा देकर सरकार द्वारा उन्हें दबाने के। प्रयत्नों में पूरा सहयोग दिया।

आम जनता में लोकप्रियता के अभाव से निराश होकर गदर क्रांतिकारियों ने दसरा प्रयास सिपाहियों में अपना संदेश फैला कर उन्हें विद्रोह के लिये तैयार करने का किया। नवम्बर 1914के विद्रोह का प्रयत्न संगठन तथा केंद्रीय नेतृत्व के अभाव के कारण असफल हो गया। फरवरी 1915 में रास बिहारी बोस से सम्पर्क और उन्हें नेतृत्व तथा संगठन सौंप देने के बाद एक अधिक संगठित प्रयत्न किया गया लेकिन यह भी असफल रहा क्योंकि सरकार संगठन में घस-पैठ करके इससे पहले ही कार्रवाई कर ली थी। बोस बच निकलने में सफल हो गये। लेकिन अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और गदर आंदोलन को प्रभावशाली ढंग से दबा दिया गया।

 दमन-
इसके बाद दमन का जो दौर चला वह बहुत ही भयानक था ! 42 लोगों को फाँसी की सजा सनाई गई और अन्य को लंबी अवधि का कारावास दिया गया। इसके फलस्वरूप पंजाब में राष्ट्रवादी नेतृत्व की एक पूरी पीढ़ी की राजनैतिक हत्या कर दी गई। बर्लिन में रह रहे हिन्दस्तानी क्रांतिकारियों द्वारा जर्मन सहायता प्राप्त करने और विदेशों में भेजे गये हिन्दस्तानी सिपाहियों में विद्रोह कराने के प्रयत्न भी असफल हए। राजा महेन्द्र प्रताप और बर्कातल्लाह द्वारा अफगानिस्तान के अमीर की मदद प्राप्त करने के प्रयत्नों में भी असफलता हाथ आई। इस प्रकार हिंसक विद्रोह द्वारा अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने में सफलता शायद इन क्रांतिकारियों के भाग्य में लिखी ही नहीं थी।

उपलब्धियाँ एवं असफलताएँ
क्या इस कारण हम गदर आंदोलन को असफल मान सकते हैं? क्या हम कह सकते हैं कि हथियारबंद क्रांति संगठित करने और अंग्रेजों को बाहर निकाल फेंकने के अपने उद्देश्य में तरंत सफल न होने के कारण उनके प्रयत्न परी तरह विफल हए? इस मापदण्ड से तो  1920-22, 1930-34 तथा 1942 के सभी बड़े आंदोलन असफल माने जायेंगे क्योंकि इनमें से कोई भी त्रत स्वतंत्रता प्राप्त करने में सफल नहीं हआ। लेकिन अगर सफलता का मापदण्ड राष्ट्रीय भावनाओं को आगे बढ़ाना, मुकाबला करने की नई परंपरायें बनाना, आंदोलन के नये तरीके ढूँढना तथा धर्म-निरपेक्षता, जनतंत्र तथा सत्रता की विचारधारा का प्रसार करना था तो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गदर आंदोलन की भमिका अत्यन्त महत्वपर्ण मानी जायेगी।

उपलब्धियाँ-
 गदर पार्टी के लोग राष्ट्रीय विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में सफल हुए। विशेषकर उपनिवेशवाद के मूल्यांकन करने तथा इस समझ का प्रसार करने में कि हिन्दुस्तान की गरीबी और पिछड़ेपन का मुख्य कारण अंग्रेज़ी शासन था। यह प्रसार उन्होंने देश तथा विदेश में रहने वाले भारतीयों में किया। उन्होंने अत्यधिक उत्साही राष्ट्रवादियों का एक दल तैयार किया जो बाद में कई दशकों तक राष्ट्रीय आंदोलन तथा बाद में पंजाब और देश के अन्य भागों में वामपन्थी तथा किसान आंदोलन तैयार करने में प्रमख भमिका अदा की। यद्यपि दमन के फलस्वरूप उनमें से कई लोग स्थायी तौर पर और अन्य लोग कई वर्षों तक आंदोलन से अलग रहे।
गदर विचारधारा मूलतअत्यंत समतावादी तथा जनतंत्रवादी थी। उनका उद्देश्य था हिन्दस्तान में एक स्वतंत्र गणतंत्र की स्थापना करना। हरदयाल ने जो प्रारंभिक अवस्था में अराजकतावादी तथा श्रमिकसंघवादी आंदोलनों से प्रभावित हए थे, इस आंदोलन को एक समतावादी स्वरूप प्रदान किया। वे अक्सर आयरिश, मैक्सिकन तथा रूसी क्रांतिकारियों का जिक्र किया करते थे जिसके कारण इस आंदोलन को अंधे राष्ट्रवाद से भी बचा सकें और उसे एक अन्तर्राष्ट्रीय रूप भी दे सकें।

लेकिन गदर आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि उसके अधिकतर अनुयायी पंजाबी सिक्ख प्रवासियों में से होने के बावजूद उन्होंने कभी भी फिरकापरस्ती का इज़हार नहीं किया बल्कि वे अपने दष्टिकोण में पूरी तरह धर्म-निरपेक्ष बने रहे। धर्म को महत्व देने को तुच्छ और संकीर्णता समझा जाता था जिसे क्रांतिकारी निन्दनीय समझते थे। वे खुले दिल से सिक्खों और पंजाबियों के सिवा दूसरों को भी नेता स्वीकार करते थे : हरदयाल हिन्दू थे, बर्कातुल्लाह मुसलमान थे, रास बिहारी बोस बंगाली हिन्दू थे। वे समस्त भारत के नेताओं का सम्मान करते थे-तिलक, सावरकर, खुदीराम बोस, तथा अरविन्द घोष उनके हीरो थे। वे यह भी समझते थे कि सिक्खों को "लड़ाक कौम' घोषित करने में उपनिवेशवादी शासन का हाथ था ताकि वे वफादार सिपाही बने रहें। गदर दल ने इस मिथ्या छवि को भंग करने का भरसक प्रयत्न किया। उन्होंने बन्दे मातरम् को आंदोलन के नारे के रूप में लोकप्रिय बनाया और सत श्री अकाल जैसे धार्मिक नारे को नहीं अपनाया। सोहन सिंह माखना, जो बाद में गदरी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हए और सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय एवं वामपंथी नेता बने, के अनसार हम सिक्ख या पंजाबी नहीं थे देशप्रेम ही हमारा धर्म था।"

कमजोरियाँ-
गदर आंदोलन की अपनी कमजोरियाँ भी थीं जिनमें मख्य थी आंदोलन के लिए तैयारी के स्तर को अधिक महत्व देना। कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी सेना की । परिस्थितियों को पूरी तरह समझे बिना ही लड़ाई का बिगुल बजा दिया। प्रतिदिन नस्लवादी अपमान, अपरिचित परिस्थितियों में रहने के कारण आई विमखता की भावना आदि के शिकार भारतीय प्रवासियों में राष्ट्रीय चेतना जगाने के उनके अभियान का जबर्दस्त प्रभाव पड़ा क्योंकि उनकी संख्या कम होने के कारण उन्हें संगठित करना बहुत आसान था और इसी से वे भ्रमित हो गये कि सारे भारत की जनता भी इस प्रकार तैयार थी। उन्होने ब्रिटिश शासकों की ताकत, उनकी विचारधारा के प्रभाव का भी गलत अन्दाज़ लगाया और समझा के हिन्दुस्तान की जनता को सिर्फ विद्रोह का नारा देने की जरूरत थी। इस महत्वपूर्ण कमजोरी की जो कीमत गदर आंदोलन और समूचे राष्ट्रीय आंदोलन को चुकानी पड़ी वह काफी अधिक थी क्योंकि अगर गदर आंदोलन के नेतृत्व के एक बड़े भाग को शासन द्वारा कार्यक्षेत्र से अलग न किया जाता तो राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरूप, विशेषकर पंजाब में, कछ

और ही होता क्योंकि अपनी राष्ट्रवादी एवं धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के कारण गदर दल ने उन फिरकापरस्त भावनाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होती जिन्होंने आने वाले वर्षों में अपना सिर उठाया।

भारतीय स्वतंत्रता

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