विजय नगर साम्राज्य की स्थापना और दृढीकरण -Takeknowledge

               स्थापना और दृढीकरण

दक्षिण भारत के राजनीतिक जनाक्रम के निर्धारण में भौगोलिक समाकृतियों की महत्वपर्ण भमिका रही है। स्थानीय शक्तियों के मध्य संघर्ष के मुख्य केन्द्र थे कृष्णा-गोदावरी डेल्टा, कावेरी घाटी, तुंगभद्रा दोआब और कोंकण भू-भाग जो अपनी उर्वरता एवं दर फैले गहरे सागरों तक पहंच के लिए जाना जाता था। 8वीं-13वीं शताब्दी के मध्य संघर्ष राष्ट्रकूटों और पल्लवों के मध्य था, जबकि बाद में टकराव विजयनगर और बहमनी राज्यों के बीच था। बहमनी शासकों ने विजयनगर शासकों को अपनी शक्ति के प्रमुख केन्द्र तुंगभद्रा से प्रायद्वीप के पार पूर्व और पश्चिम की ओर विस्तार करने के लिए विवश किया। शुरू में विजयनगर शासकों को । रायचर और तंगभद्रा दोआब में बहमनी शक्ति को दबाने में मश्किल उठानी पड़ी क्योंकि बहमनी शासकों की वारंगल स्थित राजाकोन्डा के वेलामाओं के साथ संधि थी। इन परिस्थितियों ने विजयनगर को उत्तर की ओर बढ़ने से रोका एवं उसे दक्षिण में तमिल-क्षेत्र तथा प्रायद्वीप के पार पूर्व और पश्चिम में विस्तार के लिए विवश किया। किन्तु बाद में यह गठबंधन टट गया जिसका लाभ विजयनगर साम्राज्य को मिला।

  प्रारंभिक  काल 1336-1509 
इस काल में विजयनगर, बहमनी, कोण्डाविडु (ऊपरी कृष्णा-गोदावरी डेल्टा विस्तार) के रेड्डियों, राजाकोण्डा, (कृष्णा-गोदावरी डेल्टा के निचले विस्तारों) के वेलामाओं, तेलग-चोडाओं (कृष्णा-गोदावरी क्षेत्र के मध्य) और उड़ीसा के गजपतियों के मध्य कृष्णा-गोदावरी डेल्टा, तुंगभद्रा दोआब और मराठवाड़ा (विशेषतः कोंकण) के नियंत्रण को लेकर संघर्ष होते रहे।
  इन निरंतर संघर्षों के कारण विजयनगर की सीमाएं परिवर्तित होती रहीं। 1336-1422 के मध्य मख्य संघर्ष विजयनगर एवं बहमनी शासकों के मध्य हए जिसमें तेलग-चोडा सरदारों ने बहमनी शासकों का और राजाकोण्डा के वेलामाओं एवं राजामन्द्री के रेड्डियों ने विजयनगर का साथ दिया। इसके फलस्वरूप विजयनगर का पलड़ा भारी रहा। 1422-46 के दौरान रायचूर दोआब के अधिग्रहण को लेकर विजयनगर और बहमनी शासकों के मध्य संघर्ष छिड़ा जिसमें विजयनगर की हार हुई। इसने विजयनगर सेना की कमियों को पूरी तरह से उजागर किया। इसने शासकों को मुस्लिम तीरंदाज़ों तथा अच्छी नस्ल वाले घोड़ों को अपनी सेना में शामिल करने तथा उसके पुनर्गठन के लिए विवश किया। मुस्लिम तीरंदाजों को राजस्व अनुदान भी दिए गए। इस काल में संपूर्ण कोण्डाविडु क्षेत्र का समामेलन विजयनगर साम्राज्य में हुआ। 1465-1509 के मध्य एक बार फिर रायचूर दोआब संघर्षों का केन्द्र बना। प्रारंभ में विजयनगर को अपने पश्चिमी बंदरगाहों, यथा : गोवा, चौल और दभोल बहमनी शासकों को समर्पित करने पड़े। परन्त, 1490 के आसपास यूसुफ आदिल खां के नेतृत्व में बीजापुर की। स्थापना के बाद बहमनी राज्य में आंतरिक विघटन की प्रक्रिया प्रारंभ हई। इस स्थिति का । लाभ उठाते हए विजयनगर ने तंगभद्रा क्षेत्र (अदोनी एवं करनल) पर कब्जा करने में सफलता । पाई। इससे पहले पश्चिमी बंदरगाहों के हाथ से निकल जाने से अरबों के साथ अश्व-व्यापार अव्यवस्थित हो चुका था, जो विजयनगर की घड़सवार सेना के लिए महत्वपूर्ण था। तथापि, होनावर, भतकल, बकानूर एवं मंगलौर बंदरगाहों को हासिल करने के बाद अश्व-व्यापार पुनः प्रारंभ हुआ। इसके फलस्वरूप घोड़ों की निरंतर आपूर्ति से विजयनगर सेना की कार्यक्षमता को बल मिला। पूर्व में उड़ीसा के गजपति एक प्रमुख शक्ति थे। उनके अधिकार-क्षेत्र में कोण्डाविड, उदयगीर और मसूलीपट्टम आते थे। विजयनगर शासकों ने गजपतियों को गोदावरी तक खदेड़ कर कोण्डाविडु, उदयगीर एवं मसूलीपट्टम पर अधिकार जमाया। परंतु शीघ्र ही, 1481 में, बहमनियों द्वारा मसूलीपट्टम हथिया लिया गया। विजयनगर को उदयगीर, उम्मातर (मैसूर के समीप) एवं सेरिंगपट्टम के सरदारों के निरंतर विद्रोहों का भी सामना करना पड़ता था।

 कृष्णदेव राय 1509-29
यह काल विजयनगर के महानतम शासक कृष्णदेव राय (1509-29) की उपलब्धियों का है। इस अवधि में बहमनी शक्ति का पतन हुआ, जिसके फलस्वरूप 5 राज्यों का उद्भव हुआ : अहमदनगर में निजामशाही; बीजापुर में आदिल शाही; बरार में इमद शाही, गोलकोण्डा में कतब शाही; और बीदर में बरीद शाही। बहमनी सल्तनत के विघटन की ओर अग्रसर होने के कारण कृष्णदेव राय को बीजापुर के आदिल शाहियों से कोविलकोण्डा और रायचूर तथा बहमानी शासको से गुलबर्गा एवं बीदर प्राप्त करने में सफलता मिली। कृष्णदेव राय ने गजपतियों से उदयगीर, कोण्डाविडु (कृष्णा नदी के दक्षिण में), नालगोण्डा (आन्ध्रप्रदेश), तेलंगाना, राजामुन्द्री एवं वारंगल पुनः प्राप्त किए।

1510 से पुर्तगाली भारत में एक प्रमुख नौसैनिक शक्ति के रूप में सामने आए। गोवा और साथ ही डाण्डा राजोरी एवं दभोल पर अधिकार कर उन्होंने अश्व-व्यापार पर एकाधिकार जमाया, क्योंकि गोआ दक्खनी राज्यों में अश्व-व्यापार का प्रमख व्यापारिक केन्द्र था। कष्णदेव राय ने पुर्तगालियों के साथ मित्रता के संबंध बनाए रखे। अलबकर्क की प्रार्थना पर कणदेव राय ने उन्हें भतकल में दुर्ग-निर्माण की स्वीकृति दी। इसी तरह, पर्तगाली सैनिकों ने कष्णदेव राय की बीजापुर के इस्माइल आदिल खान के विरुद्ध जीत में पर्याप्त योगदान दिया। 

 अस्थिरता का युग 1529-42
कष्णदेव राय की मृत्यु के साथ ही आंतरिक संघर्ष एवं बाहरी आक्रमण प्रारंभ हए। आंतरिक स्थिति का लाभ उठाते हुए बीजापुर के इस्माइल आदिल खां ने रायचूर और मुद्गल पर . कब्जा कर लिया। गजपतियों और गोलकोण्डा राजाओं ने भी कोण्डाविड को प्राप्त करने के लिए असफल प्रयास किए। इस गड़बड़ी का फायदा उठाते हए कष्णदेव राय के भाई अच्युत राय (1529-42) ने विजयनगर सिंहासन हथियाने में सफलता पाई। परन्त उसकी मृत्यु के बाद पनः उत्तराधिकार को लेकर अच्यत राय के पत्र और उसके भतीजे सदाशिव के बीच संघर्ष छिड़ा। सदाशिव ने 1542 में सिंहासन प्राप्त किया। लेकिन वास्तविक शक्ति कृष्णदेव राय के दामाद राम राय के हाथों में ही रही। सदाशिव ने मुसलमानों को सेना में प्रवेश देने की नीति अपनाई और उन्हें महत्वपूर्ण ओहदे दिए, जिससे सेना की कार्य-कुशलता में वृद्धि हुई।

  पुर्तगाली
राम राय के पुर्तगालियों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध नहीं थे। 1542 में मार्टिन अल्फांसो डिसूज़ा गोवा का राज्यपाल बना तथा उसने भतकल में लटपाट की। बाद में राम राय को अल्फांसो डिसूजा के उत्तराधिकारी जोआओ दे केस्ट्रो के साथ 1547 में एक संधि करने में सफलता मिली, जिससे राम राय ने अश्व-व्यापार के एकाधिकार प्राप्त किए। राम राय ने पुर्तगालियों के प्रभाव क्षेत्र, कोरोमण्डल स्थित सेन थोम में उनके प्रभाव को नियंत्रित करने की कोशिश की।

 सुदूर दक्षिण के साथ विजयनगर के संबंध
1512 तक, विजयनगर शासकों ने लगभग संपर्ण दक्षिणी प्रायद्वीप को अपने अधिकार में ले लिया। राजागंबीर-राज्यन् (तोंडईमंडलम्) नामक छोटे-से हिन्दू राज्य, कालीकट के जमोरिन और क्विलोन (केरल) के शासकों ने विजयनगर का आधिपत्य स्वीकार किया। 1496 तक । लगभग संपूर्ण सदूर दक्षिण केप कोमोरिन तक के क्षेत्र जिसमें स्थानीय चोल, चेरा शासक के क्षेत्र आते थे, तंजौर, पडकोटाई तथा मदरा के मानाभषा भी आते थे, विजयनगर के अधीनस्थ हो गए। किन्तु पाण्ड्य शासक (टयूटीकोरिन तथा कयत्तर का सरदार) को गौण राजा के रूप में शासन करने दिया गया। तमिल प्रदेश के आधिपत्य का एक रोचक पहलू यह था कि जीत के बाद तेलुगु सैनिक उस दूरस्थ तथा विरल जनसंख्या वाले प्रदेश में स्थायी तौर पर बस गए। इन प्रवासियों ने वहाँ की काली मिट्टी का भरपूर फायदा उठाया एवं कालांतर में रेडिडयों के एक महत्वपर्ण खेतिहर वर्ग का आविर्भाव हआ। साथ ही, तमिल प्रदेश में नायकों का बिचौलियों के रूप में उद्भव भी तमिल क्षेत्र में प्रसार का ही परिणाम था। 

विजयनगर राज्य एक वहत राजनीतिक व्यवस्था थी, जिसके अंतर्गत विभिन्न लोग आते थे जैसे तमिल, कन्नड और तेलुगु भाषी समुदाय!

विजयनगर शासकों की तंगभद्रा प्रदेश पर प्रत्यक्ष प्रादेशिक सम्प्रभुता थी। दसरे स्थानों पर, विजयनगर शासकों ने तेलगु योद्धाओं (नायकों) और उन स्थानीय सरदारों जो नायकों के रूप में कार्यांतरित हो चुके थे और उन सम्प्रदायी वर्गों जैसे वैष्णवों (उनकी राजनीति भमिका के 'बारे में आप अगले भाग में पढ़ेंगे) द्वारा आनुष्ठानिक सम्प्रभुता स्थापित की।

  दक्खन के मुस्लिम राज्य
1538 तक बहमनी राज्य 5 प्रदेशों में विभाजित हुआ-बीजापर, गोलकोण्डा, अहमदनगर, बीदर और बरार। 1542-43 में बीजापर और। गोलकोण्डा के मध्य आपसी समझ से बीजापुर को विजयनगर के विरुद्ध खुली छूट मिल गई, जबकि अहमदनगर ने बीदर की कीमत पर विस्तार की योजना बनाई। इस समझौते के साथ इब्राहीम आदिल शाह ने विजयनगर पर आक्रमण किया कित उसका दो टक जवाब मिला। लेकिन यह समझ भी लंबे समय तक जारी न रह सकी। अहमदनगर ने बीदर के कल्याणी के दुर्ग को हासिल करने में राम राय की सहायता प्राप्त की। राम राय के दक्खन राज्यों के साथ संबंध बहत जटिल थे, बीदर के विरुद्ध उसने अहमदनगर की सहायता की परंतु जब अहमदनगर ने गलबर्गा (जो कि बीजापरी क्षेत्र था) पर आक्रमण किया, राम राय ने बीजापर शासक का पक्ष लिया। राम राय ने विजयनगर और दक्खनी राज्यों के मध्य एक सामहिक सरक्षा योजना बनाने में सफलता प्राप्त की। यह स्वीकार किया गया कि किसी एक के विरुद्ध आक्रमण की स्थिति में आक्रमणकारी के विरुद्ध अन्य सभी सशस्त्र संघर्ष करने को बाध्य होंगे।

इस समझौते का खला उल्लंघन करते हुए 1560 में अहमदनगर ने बीजापुर पर आक्रमण किया। राम राय को अहमदनगर के विरुद्ध गोलकोण्डा की सहायता मिली. परंत यह समझौता भी शीघ्र समाप्त हो गया। अहमदनगर पराजित हुआ और कल्याणी बीजाप को समर्पित किया गया। इसी समय, राम राय ने भी बीदर पर आक्रमण कर सरक्षा संमझौते का उल्लंघन किया। गोलकोण्डा के शासक ने अहमदनगर के साथ मिलकर कल्याणी पर आक्रमण किया। राम राय ने अपनी सेना कल्याणी के दर्ग को हथियाने के लिए गोलकोण्डा के विरुद्ध भेजी। दसरी तरफ, विजयनगर और बीजापुर ने मिलकर (जो पनः एक अस्थायी मिलन था) अहमदनगर और गोलकोण्डा, के आक्रमण का सामना किया। अंत में.. अहमदनगर को अपने कोविलकोण्डा, गनपरा और पंगल के किले देने पड़े। इस दौरान राम राय की नीति एक मुस्लिम राज्य को दूसरे से लड़ाकर विजयनगर के पक्ष में शक्ति-संतलन को बनाए रखना था। बाद में गोलकोण्डा, अहमदनगर, बीदर और बीजापर ने सम्मिलित होकर विजयनगर के विरुद्ध मोर्चा बनाया। यह युद्ध कृष्णा नदी के निकट स्थित तालिकोटा नामक कस्बे में (1565) हआ। विजयनगर पर इसका विनाशकारी प्रभाव पडा। राम राय मारा गया। यद्यपि, विजयनगर राज्य लगभग सौ और वर्षों तक अस्तित्व में रहा, इसका क्षेत्रफल घट चका था और रायों की दक्षिण भारत की राजनीति में कोई महत्ता नहीं रही।

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