बहमनी राज्य की विजय तथा सुदृढ़ीकरण -Takeknowledge

बहमनी राज्य के राजनीतिक विकास को दो चरणों में विभाजित किया जा सकता है : 

प्रथम चरण (1347-1422) में गतिविधियों का केन्द्र गुलबर्गा था!
जबकि द्वितीय चरण (142-1538) में राजधानी बीदर स्थानांतरित हो गई जो अपेक्षाकृत और उपजाऊ थी। इस चरण में अफाकियों और दक्खनियो के मध्य पर पहुंचा!

प्रथम चरण : 1347-1422 
1347-1422 के मध्य के यग में कई प्रमख लड़ाइयां जीती गई। आन्ध महाराष्ट्र में कन्दहार, कर्नाटक में कल्याणी. तेलंगाना में भोंगीर, गुलबर्गा  सागर, खेमभवी, मालखेर और सेरम, महाराष्ट्र में मनरम अक्कालकोट और महेन्द्री तथा मालवा (मध्य प्रदेश) में मांडु को इस काल में बहमनियों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी! बहमनी राज्य का फैलाव उत्तर में मांडु से दक्षिण में रायचूर तक तथा पश्चिम में दभोल और गोवा तक था।

इस युग में तेलंगाना और विजयनगर के रायों से बरमनियों की मख्य प्रतिद्वन्द्विता था। तलगाना के राय के साथ एक मठभेड के बाद गोलकोण्डा बहमनियों को सुपुर्द कर दिया। गया। लेकिन, विजयनगर के साथ यद्ध निर्णायक सिद्ध नहीं हआ और तुंगभद्रा दोआब पर दोनों शक्तियों का साझा प्रभुत्व जारी रहा।।

शीघ्र ही चौहदवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बहमनी शासक को विजयनगर के पक्ष में गोवा से हाथ धोना पड़ा। खेरला (मध्य प्रदेश) के राजा, जिसे बहमनी राज्य के खिलाफ विद्रोह करने के लिए विजयनगर, मालवा और खानदेश के शासकों से प्रोत्साहन मिलता था. के विरुद्ध बहमनी शासक के अभियान में राजा को समर्पण करने को विवश होना पड़ा। तेलंगाना में दो प्रतिद्वन्द्वियों वेमा (राजमन्द्री के) वेलामा (आन्ध्र-गट) को क्रमशः विजयनगर और बहमनियों द्वारा सहयोग मिलता था। बहमनी शासकों ने तेलंगाना में घसपैठ करने की कोशिश की परन्तु वेमाओं द्वारा उन्हें खदेड़ दिया गया। क्षेत्रीय हितों के लिए बहमनी शासकों ने एक आन्ध्र गट के विरुद्ध दसरे को समर्थन देना जारी रखा। पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विजयनगर के खिलाफ संघर्ष में बहमनी शासकों की असफलताओं का एक मुख्य कारण वेलामाओं द्वारा पूर्व में दिए गए समर्थन को त्याग कर विजयनगर के साथ सहयोग करना था।

द्वितीय चरण : 1422-1538 
1422-1538 के मध्य की अवधि की विशेषता राजधानी का गलबर्गा से बीदर स्थानांतरित होना था। यह केन्द्र में और सामरिक महत्व की स्थिति में थी। तीन भाषाई क्षेत्रों (मराठी, कन्नड और तेलग) का यहाँ संगम होता था। इस पर आधिपत्य के लिए विजयनगर और बहमनी शासकों में संघर्ष इस दौर में भी जारी रहा। इस अवधि में वारंगल को बहमनी राज्य में मिलाया गया। मालवा और गजरात के स्वतंत्र राज्यों (देखें, इकाई 23, 24) को भी बहमनी, शक्ति का आवेग सहना पड़ा। जहाँ एक ओर मालवा कमजोर साबित हआ. दसरी तरफ गजरात की सल्तनत के साथ प्रमुख लड़ाइयों के बावजूद बहमनी शासकों को सफलता प्राप्त नहीं हई। इस संघर्ष का एक महत्वपूर्ण परिणाम खानदेश की सल्तनत और बहमनी शासकों के बीच एक मोर्चे का, गुजरात से आने वाले खतरे का मुकाबला करने हेतु, निर्माण होना था।


1436-1444 के मध्य विजयनगर और बहमनी शासकों में दो मुठभेड़ हईं। पहली में बहमनी. शासकों को हार माननी पड़ी। तथापि, दूसरी, फरिश्ता के अनुसार अंततः बहमनी के लिए लाभदायक रही। संगमेश्वर और खानदेश के राजाओं ने भी अधीनता स्वीकार की। गुजरात के विरुद्ध युद्ध में बहमनी शासकों की हार का मुख्य कारण अमीरों के दो गुटों, दक्खनियों और अफाकियों  के मध्य आंतरिक संघर्ष था। दक्खनियों ने बहमनी शासकों के साथ विश्वासघात किया। इसके फलस्वरूप, खानदेश के विरुद्ध युद्ध में दक्खनियों को शामिल नहीं किया गया जिसके गंभीर परिणाम निकले। - 1446 में खेरला और संगमेश्वर (कोंकण) के राजाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए दक्खनियों और अफाकियों को भेजा गया। इस अभियान के बडे जटिल परिणाम निकले। दक्खनियों ने अफाकियों पर दोषारोपण किए जिसके फलस्वरूप उन्हें सजा दी गयी। अफाकियों ने दरबार म अपने पक्ष की वकालत कर पनः प्रभत्व प्राप्त किया। इस प्रकार के संघर्ष साम्राज्य के लिए हानिकारक थे। इसी यग में महमद गावां ने बहमनी मंत्री के रूप में प्रसिद्धी प्राप्त की। उड़ासा के शासक ने तेलंगाना के राजा को साथ मिलाकर बहमनी शासक पर आक्रमण किया किन्त महमद गावां द्वारा खदेड़ दिये गये। मालवा के शासक ने भी बहमनी प्रदेशों जैसे बीदर को हासिल करने के प्रयास किये। परन्तु, गुजरात द्वारा बहमनी शासक को समर्थन देने के कारण उसे लौटना पड़ा। मालवा का एक अन्य और प्रयास भी विफल रहा। महमुद गवां ने हबली बेलगाम और बागलकोट पर विजय प्राप्त की। बम्बई-कर्नाटक क्षेत्र बहमनी प्रभाव के अंतर्गत आ गया। गावां के समर्थ नेतृत्व में उड़ीसा से गोवा (कोंकण) तक सामान का विस्तार हआ। अंत में, महमूद गावा गुटों के संघर्ष का शिकार हआ और दक्खनी गुट द्वारा उसकी हत्या हुई। इसके बाद राज्य विघटन के मार्ग पर चल पड़ा। विजयनगर के विरुद्ध किए गए यद्धों की समाप्ति विपत्तियों में हुई व अंततः 1538 तक बहमनी वंश की समाप्ति हई और यह राज्य 5 प्रदेशों में विभाजित हुआ-बरार, बीदर, अहमदनगर. बीजापर और गोलकुण्डा।


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