बहमनी शक्ति का उदय - Takeknowledge





दक्खन के अधिकांश भागों की विजय और उनका दिल्ली सल्तनतम आधग्रहण मोहम्मद तगलक के काल में संपन्न हुआ। उसने दक्खनी प्रदश माप प्रशासनिक व्यवस्था कायम की। कतलग खान को प्रदेश का प्रमख राज्यपाल अथवा वायसराय" नियक्त किया गया। सम्पर्ण प्रदेशको प्रान्तों अथवा इक्लीमों में विभाजित किया गया। इनमें से अधिक महत्वपर्ण जाजनगर (उडीसा), मरहट (महाराष्ट्र), बीदर काम्पिली और दारसमट थे। बाद में मालवा भी दक्खन के राज्यपाल के अधानाचा गया। प्रत्येक डक्लीम को कई ग्रामीण जिलों (शिक) में विभाजित किया गया। राजस्व वसूली लिए प्रत्येकशिक को हजारी एकहजार) और सटी (एक सौ में विभाजित किया गया। अस्य अधिकारी शिकदार, दली, अमीर हजाराह और अमीर-ए सादाह थे। राजस्व शिकारी मुतसर्रिफ, कारकुन, चौधरी इत्यादि कहलाते थे।

इस व्यवस्था में सवाधिक शक्तिशाली व्यक्ति दक्खन का "वायसराय" होता था जो वास्तव 23 प्रांतों वाले विशाल प्रदेश का स्वामी होता था। अन्य महत्वपर्ण व्यक्ति जिसके पास विस्तृत अधिकार थे, अमीर-ए सादाह होता था जिसके अधीन सौ गांव होते थे।

 इस विस्तृत प्रशासनिक व्यवस्था के बावजूद सुल्तान का वास्तविक नियंत्रण निम्नलिखित कारणो से कमजोर था -

दिल्ली से दूरी. 
• विषम भौगोलिक परिस्थितियां - 
• "वायसराय" व अन्य अधिकारियों को प्राप्त विस्तृत अधिकार।। 

इन परिस्थितियों में दक्खन में नियुक्त अधिकारियों के केन्द्र के साथ असंतोष से दिल्ली के साथ संबंधों के बिगड़ने का खतरा रहता था।

संकट का सूत्रपात दक्खन को तुगलक शासन से मुक्त कराने में अमीर-ए सादाह की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उच्च-वंश के इन अधिकारियों के सैन्य अधिकारियों व राजस्व संग्रहकर्ताओं के रूप में दोहरे कर्तव्य थे। उनका अपने प्रदेश के लोगों के साथ सीधा संबंध था। दक्षिण में विद्रोहों का झड़ी लगने पर मौहम्मद तुलगक ने इसके लिए अमीरों द्वारा हासिल विस्तृत अधिकारों को जिम्मेदार पाया। इसके फलस्वरूप उसने उन्हें दबाने की नीति का अनुसरण किया जिसने बदले दक्खन में तुगलक वंश के पतन की शुरुआत की। हम संक्षेप में इस काल मे हुए विभिन्न विद्रोहों और उनके एक नये राज्य व नए वंश के उदय में योगदान की चर्चा करेंगे ।

केन्द्र के विरुद्ध सबसे पहला विद्रोह 1327 में गुलबर्गा में सागर में हुआ। इसका नेतृत्व स्थानीय सरदारों व अमीरों के सहयोग से बहाउद्दीन गुरशस्प ने किया। विद्रोह को दबा दिया गया परन्तु इसने राजधानी को दिल्ली की अपेक्षा अधिक केन्द्रीय स्थान में स्थापित करने की जरूरत की और मार्ग प्रशस्त किया, जहाँ से दक्षिणी प्रान्तों को नियंत्रित किया जा सके। इस प्रकार, मौहम्मद तुगलक ने 1328 में देवगिरि को साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया। परन्तु यह योजना असफल हुई क्योंकि उन्हीं सरदारों ने, जिन्हें दक्खन में केन्द्रीय शक्ति मजबूत करने हेतु भेजा गया था, दिल्ली के नियंत्रण को कमजोर किया। 

प्रथम बड़ा सफल विद्रोह माबार में हुआ। माबार के राज्यपाल ने दौलताबाद के कछ सरदारों के साथ सहयोग कर बगावत का झण्डा उठाया। 1336-37 में बीदर के राज्यपाल ने भी विद्रोह किया परन्त इसे असफल किया गया।

मौहम्मद तुगलक ने अनुभव किया कि दक्खन में तुगलक शासन के लिए खतरा उन पुराने कुलीन वंश के लोगों से है जिन्हें उसने दिल्ली से दक्षिण में भेजा था। इसके फलस्वरूप उसने इनको नये अमीरों द्वारा बदलने की नीति अपनाई जिससे ये उसके प्रति वफादार रहे। परन्तु अमीर-ए सादाह के विद्रोही रवैये की वजह से यह सफल नहीं हुई, जिन्होंने अंततः दक्खन में एक स्वतंत्र राज्य कायम करने में सफलता पाई।

1344 के लगभग दक्खन से मिलने वाली कुल राजस्व राशि में शीघ्र गिरावट आई। मौहम्मद तुगलक ने दक्खन को 4 शिकों में विभाजित कर उन्हें नव-मुस्लिमों के नेतृत्व में रखा जिन्हें बर्नी "नये अमीर" कहता है। इसे अमीर-ए सादाह वर्ग द्वारा पसंद नहीं किया गया। 1345 में, गुजरात में नियुक्त सरदारों ने षड्यंत्र में शामिल होकर दिल्ली के विरुद्ध विद्रोह किया। मोहम्मद तुगलक को गुजरात की इस बगावत में अमीर-ए सादाह के हाथ को लेकर शक हुआ। मौहम्मद तुगलक ने दक्खन के वायसराय को रायचूर, गुलबर्गा, बीजापर इत्यादि के अमीरों को भडौच आने का निर्देश जारी करने को कहा। अमीर-ए सादाह ने मौहम्मद तुगलक के हाथों कठोर सजा के डर से दक्खन में तुगलक-शासन पर चोट करते हए स्वयं को दौलताबाद में स्वतंत्र घोषित किया और देवगिरि के वरिष्ठ अमीर नासिरउद्दीन इस्माईल शाह को अपना सुल्तान चुना। दौलताबाद में अपने शासन की स्थापना के बाद, सर्वप्रथम गुलबर्गा को राज्य में मिलाया गया। दिल्ली सल्तनत का विरोध करने वालों में राजपूत, दक्खनी, मंगोल गुजराती अमीर और तंजौर के राजा द्वारा भेजे गए सैनिक दल थे। अंत में उनकी जीत हई। परन्त, इस्माइल शाह ने हसन कंगु (अलाउद्दीन हसन बहमन शाह) के पक्ष में गद्दी छोड़ दी और इस प्रकार 1347 में दक्खन में बहमनी राज्य की नीव पड़ी नये राज्य के अधीन दक्खन का सम्पर्ण क्षेत्र था। अगले 150 वर्षों तक इस राजशाही ने दक्षिण की राजनीतिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


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