भक्ति आंदोलन का उदय -Takeknowledge

   उत्तर भारत में 14वीं-17वीं शताब्दी के बीच अनेक राजनीतिक, सामाजिक-आर्थिक और धार्मिक कारणों से भक्ति आंदोलन का जन्म हुआ। इस आंदोलन से काफी संख्या में लोग प्रभावित हुए।

    भक्ति आंदोलन के उदय के राजनीतिक कारण
यह माना जाता है कि तुर्कों के आक्रमण के पहले उत्तर भारत के सामाजिक-धार्मिक क्षेत्र पर राजपूत-ब्राह्मण गठबंधन का वर्चस्व था, जो किसी भी प्रकार के गैर ब्राह्मण आंदोलन के सख्त खिलाफ थे। तुर्कों के आक्रमण के बाद इस गठबंधन का वर्चस्व समाप्त हो गया। तुर्कों के आक्रमण के साथ इस्लाम का भी आगमन हुआ और इससे ब्राह्मणों की शक्ति और प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा। इस प्रकार निरीश्वरवादी आंदोलनों के उदय का रास्ता साफ हो गया, इन आंदोलनों ने जाति-विरोधी और ब्राह्मण विरोधी सिद्धांत अपनाएं। ब्राह्मण हमेशा जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहते थे कि मंदिर में रखी प्रतिमाएं और मूर्तियां मात्र ईश्वर की प्रतीक नहीं हैं, बल्कि साक्षात् ईश्वर है और इन्हें केवल वे (ब्राह्मण) ही प्रसन्न कर सकते हैं। तुर्कों ने ब्राह्मणों से उनके मंदिर का धन छीन लिया और उन्हें प्राप्त होने वाला राज्य . संरक्षण समाप्त हो गया। इस प्रकार ब्राह्मणों को आर्थिक और वैचारिक दोनों स्तरों पर हानि उठानी पड़ी। राजपूत-ब्राह्मण गठबन्धन की क्षीण होती शक्ति के कारण पहला निरीश्वरवादी पंथ पंथनाथ के रूप में उभरा । ऐसा प्रतीत होता है कि यह पंथ सल्तनत काल के आरंभ में अपने उत्कर्ष पर था। ब्राह्मणों की। शक्ति और प्रभाव के क्षीण होने और नयी राजनीतिक परिस्थिति के कारण लोकप्रिय एकेश्वरवादी आंदोलनों और उत्तर भारत के अन्य भक्ति आंदोलनों के उदय के लिए एक माहौल तैयार हो गया।

     सामाजिक-आर्थिक कारण 
यह भी माना जाता है कि मध्यकालीन भारत का भक्ति आंदोलन सामंती शोषण के खिलाफ आम जनता के मनोभावों का प्रतिनिधित्व करता है। इस बात की पुष्टि के क्रम में कबीर, नानकं, चैतन्य, तुलसी आदि की उन कक्तिाओं को उद्धृत किया जाता है जिसमें सामंत-विरोधी स्वर काफी तीव्र है। इसी परिप्रेक्ष्य में भारतीय मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की तुलना यूरोप के प्रोटेस्टेंट सुधार आंदोलन से की जाती है। पर. भक्ति संतों की कविताओं में कहीं भी इस बात का संकेत नहीं मिलता है कि उन्होंने सामंती व्यवस्था के खिलाफ किसानों के वर्ग हित का समर्थन किया था। वैष्णव भक्ति संत कट्टर ब्राह्मणवादी परम्परा से इसी मायने में अलग थे कि वे भक्ति और धार्मिक समता की बात करते थे। सामान्य तौर पर वे कट्टर ब्राह्मण धर्म के अनेक आधारभूत सिद्धांतों को स्वीकार करते थे। अपेक्षाकृत अधिक प्रगतिशील एकेश्वरवादी संतों ने ब्राह्मण धर्म की कटु आलोचना की, पर उन्होंने कभी भी राज्य और शासक वर्ग को उखाड़ फेंकने की बात नहीं की। इसलिए भारतीय भक्ति आंदोलन की तुलना यूरोपीय प्रोटेस्टेंट सुधार आन्दोलन से नहीं की जा सकती है जिसने समाज को इस कदर बदल डाला कि सामन्तवाद के पतन और पूंजीवाद के उदय के लिए एक माहौल तैयार हो गया। इसका यह मतलब नहीं है कि भक्ति संत जनता के दुःख दर्द से बिल्कुल अछूते थे। उन्होंने हमेशा अपने को जनता के दैनिक जीवन से जोड़ कर रखा और इस बात की पूरी कोशिश की कि आम जनता की तकलीफों को उजागर किया जाए और उनसे जुड़ कर रहा जाए।

    आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन 
कबीर, नानक, धन्ना, पीपा आदि संतों के एकेश्वरवादी आंदोलन की व्यापक लोकप्रियता को व्याख्यायित करने के लिए उत्तर भारत में तुर्कों के आगमन के बाद आये सामाजिक-आर्थिक बदलावों को परखना होगा। तुर्कों का शासक वर्ग राजपूतों की तरह गांवों में नहीं शहरों में रहता था। कृषीय अधिशेष का अधिकांश हिस्सा शासक वर्ग के खजाने में पहुंच जाता था। इस वर्ग ने उपभोक्ता वस्तुओं, विलासिता के सामान और अन्य जरूरत के सामानों की मांग बहुत बढ़ा दी। इस कारण से शिल्प की नयी तकनीकों का बड़े पैमाने पर विकास हुआ । फलस्वरूप 13वीं-14वीं शताब्दियों में शहरी कारीगरों की संख्या में तेजी से वदि हुई।

समृद्ध होता हुआ शहरी वर्ग एकेश्वरवादी आंदोलन की ओर आकर्षित हुआ, क्योंकि यह धार्मिक समता की बात करता था, जबकि ब्राह्मणवादी व्यवस्था में उनका स्थान काफी नीचे था। इसी कारण से पंजाब के खत्री जैसे व्यापारिक समुदाय इस आंदोलन की ओर तेजी से खिंचे। शहरों के विकास, शहरी शिल्प के उत्पादन । और बाजार के विकास से इस वर्ग को काफी फायदा हुआ था। समाज के अनेक वर्गों के समर्थन के कारण ही एकेश्वरवादी आंदोलन इतना लोकप्रिय हो सका। समाज के इन्हीं विभिन्न वर्गों ने उत्तर भारत में हो रहे। इस आंदोलन को सामाजिक आधार प्रदान किया। पंजाब में यह आंदोलन शहरी वर्गों. तक ही सीमित नहीं। रहा, बल्कि इसने जाट किसानों को भी प्रभावित किया और इसका आधार विस्तृत हुआ। गुरू नानक के आंदोलन को जाट किसानों का समर्थन मिलने के बाद सिक्ख धर्म एक जन-धर्म के रूप में विकसित हुआ।


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