अहमदाबाद सत्याग्रह-Takeknowledge
अहमदाबाद सत्याग्रह
गांधी जी ने अपना तीसरा अभियान अहमदाबाद में छेड़ा, जब उन्होंने मिल मालिकों और श्रमिकों के मध्य संघर्ष में हस्तक्षेप किया। अहमदाबाद, गजरात के एक महत्वपर्ण औद्योगिक नगर के रूप में विकसित हो रहा था परंतु मिल मालिकों को अक्सर श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ा था और उन्हें आकर्षित करने के लिए वे मजदूरी की ऊँची दर देते थे। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग की महामारी फैली। अधिकांश श्रमिक शहर छोड़कर गाँव जाने लगे। श्रमिकों को शह छोड़कर जाने से रोकने के लिए मिल मालिकों ने उन्हें "प्लेग बोनस' देने का निर्णय किया जो कि कभी-कभी साधारण मजरी का लगभग 75% होता था। जब यह महामारी समाप्त हो गयी तो मिल मालिकों ने इस भत्ते को समाप्त करने का निर्णय लिया। श्रमिकों ने इसका विरोध किया। श्रमिकों कि धारणा थी कि युद्ध के दौरान जो महँगाई हुई थी, यह भत्ता उसकी भी पूर्ति करता था। मिल मालिक 20% की वृद्धि देने को तैयार थे, परंतु मूल्य वृद्धि को देखते हुए श्रमिक 50% की वृद्धि माँग रहे थे।
गुजरात सभा के एक सचिव गांधी जी को अहमदाबाद की मिलों में कार्य करने की दशाओं के बारे में सचित करते रहते थे। एक मिल मालिक अम्बालाल साराभाई से उनका व्यक्तिगत परिचय था, क्योंकि उसने गांधी के आश्रम के लिए धनराशि दी थी। इसके अतिरिक्त अम्बालाल की बहन अनसइया साराभाई गांधी जी के प्रति आदर भाव रखती थी। गांधी जी ने अम्बालाल साराभाई से विचार-विमर्श करने के उपरांत इस समस्या में हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया। श्रमिक और मिल मालिक इस बात पर सहमत हो गए कि पूरी समस्या को एक मध्यस्थता कराने वाले बोर्ड के ऊपर छोड़ दिया जाए जिसमें कि तीन प्रतिनिधि मजदूरों के हों और तीन मिल मालिकों के। अंग्रेज़ कलेक्टर इस बोर्ड के अध्यक्ष होने थे। गांधी जी इस बोर्ड में श्रमिकों के प्रतिनिधि के रूप में मौजद थे, परंतु अचानक मिल मालिक बोर्ड से पीछे हट गये। इसका कारण उन्होंने यह बताया कि गांधी जी को श्रमिकों की तरफ से कोई अधिकार नहीं दिया गया था और इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि श्रमिक इस बोर्ड के निर्णय को स्वीकार करेंगे। 22 फरवरी से मिल मालिकों ने ताला बंदी की घोषणा की।
ऐसी परिस्थिति में गांधी जी ने परी स्थिति का विस्तत रूप से अध्ययन करने का निर्णय लिया। उन्होंने मिलों की आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी हासिल की और उनके द्वारा दी। जा रही मजरी की दरों की तलना बंबई में दी जा रही मजरी की दरों से की। इस अध्ययन के। उपरांत गांधी जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि मजदरों को 50% के स्थान पर 35% बढोत्तरी की माँग करनी चाहिए। गांधी जी ने मिल मालिकों के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारंभ किया। श्रमिकों से यह शपथ लेने को कहा गया कि जब तक मजूरी में 35% वृद्धि नहीं होती। वे काम पर नहीं जाएँगे और शांतिपर्वक सत्याग्रह करते रहेंगे। अनेक स्थानों पर सभाएँ हुईं और गांधी जी ने इनमें भाषण दिये। इस स्थिति के ऊपर उन्होंने कुछ लेख भी लिखे।
12 मार्च के दिन मिल मालिकों ने यह घोषणा की कि वे ताला बंदी हटा रहे है आर श्रमिकों को कार्य पर वापस लेंगे जो कि 20% वद्धि स्वीकार करते हैं। इसके विपरीत 15 मार्च को गांधी जी ने यह घोषणा की कि जब तक कोई समझौता नहीं होता वे भूख हड़ताल रहेंगे। इस समय गांधी जी का उद्देश्य यह था कि जो मजदर अपनी शपथ के बावजूद पर वापस जाने की सोच रहे थे उन्हें उससे रोका जा सके। अंतत: 18 मार्च के दिन एक समझौता हआ, इसके अनुसार, श्रमिकों को उनकी शपथ को देखते हए पहले दिन का वृद्धि के साथ हासिल होनी थी और दूसरे दिन उन्हें 20% की वृद्धि, जो कि मिल द्वारा प्रस्तावित की जा रही थी, मिलनी थी। तीसरे दिन ही तब तक जब तक कि एक मध्यस्थता के द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता उन्हें 27.5% की वद्धि मिलनी थी। अततः मध्यस्थ ने गांधी जी के प्रस्ताव को मानते हुए मजदरों के पक्ष में 35% की वृद्धि का निण दिया।
भारतीय स्वतंत्रता
गांधी जी ने अपना तीसरा अभियान अहमदाबाद में छेड़ा, जब उन्होंने मिल मालिकों और श्रमिकों के मध्य संघर्ष में हस्तक्षेप किया। अहमदाबाद, गजरात के एक महत्वपर्ण औद्योगिक नगर के रूप में विकसित हो रहा था परंतु मिल मालिकों को अक्सर श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ा था और उन्हें आकर्षित करने के लिए वे मजदूरी की ऊँची दर देते थे। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग की महामारी फैली। अधिकांश श्रमिक शहर छोड़कर गाँव जाने लगे। श्रमिकों को शह छोड़कर जाने से रोकने के लिए मिल मालिकों ने उन्हें "प्लेग बोनस' देने का निर्णय किया जो कि कभी-कभी साधारण मजरी का लगभग 75% होता था। जब यह महामारी समाप्त हो गयी तो मिल मालिकों ने इस भत्ते को समाप्त करने का निर्णय लिया। श्रमिकों ने इसका विरोध किया। श्रमिकों कि धारणा थी कि युद्ध के दौरान जो महँगाई हुई थी, यह भत्ता उसकी भी पूर्ति करता था। मिल मालिक 20% की वृद्धि देने को तैयार थे, परंतु मूल्य वृद्धि को देखते हुए श्रमिक 50% की वृद्धि माँग रहे थे।
गुजरात सभा के एक सचिव गांधी जी को अहमदाबाद की मिलों में कार्य करने की दशाओं के बारे में सचित करते रहते थे। एक मिल मालिक अम्बालाल साराभाई से उनका व्यक्तिगत परिचय था, क्योंकि उसने गांधी के आश्रम के लिए धनराशि दी थी। इसके अतिरिक्त अम्बालाल की बहन अनसइया साराभाई गांधी जी के प्रति आदर भाव रखती थी। गांधी जी ने अम्बालाल साराभाई से विचार-विमर्श करने के उपरांत इस समस्या में हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया। श्रमिक और मिल मालिक इस बात पर सहमत हो गए कि पूरी समस्या को एक मध्यस्थता कराने वाले बोर्ड के ऊपर छोड़ दिया जाए जिसमें कि तीन प्रतिनिधि मजदूरों के हों और तीन मिल मालिकों के। अंग्रेज़ कलेक्टर इस बोर्ड के अध्यक्ष होने थे। गांधी जी इस बोर्ड में श्रमिकों के प्रतिनिधि के रूप में मौजद थे, परंतु अचानक मिल मालिक बोर्ड से पीछे हट गये। इसका कारण उन्होंने यह बताया कि गांधी जी को श्रमिकों की तरफ से कोई अधिकार नहीं दिया गया था और इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि श्रमिक इस बोर्ड के निर्णय को स्वीकार करेंगे। 22 फरवरी से मिल मालिकों ने ताला बंदी की घोषणा की।
ऐसी परिस्थिति में गांधी जी ने परी स्थिति का विस्तत रूप से अध्ययन करने का निर्णय लिया। उन्होंने मिलों की आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी हासिल की और उनके द्वारा दी। जा रही मजरी की दरों की तलना बंबई में दी जा रही मजरी की दरों से की। इस अध्ययन के। उपरांत गांधी जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि मजदरों को 50% के स्थान पर 35% बढोत्तरी की माँग करनी चाहिए। गांधी जी ने मिल मालिकों के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारंभ किया। श्रमिकों से यह शपथ लेने को कहा गया कि जब तक मजूरी में 35% वृद्धि नहीं होती। वे काम पर नहीं जाएँगे और शांतिपर्वक सत्याग्रह करते रहेंगे। अनेक स्थानों पर सभाएँ हुईं और गांधी जी ने इनमें भाषण दिये। इस स्थिति के ऊपर उन्होंने कुछ लेख भी लिखे।
12 मार्च के दिन मिल मालिकों ने यह घोषणा की कि वे ताला बंदी हटा रहे है आर श्रमिकों को कार्य पर वापस लेंगे जो कि 20% वद्धि स्वीकार करते हैं। इसके विपरीत 15 मार्च को गांधी जी ने यह घोषणा की कि जब तक कोई समझौता नहीं होता वे भूख हड़ताल रहेंगे। इस समय गांधी जी का उद्देश्य यह था कि जो मजदर अपनी शपथ के बावजूद पर वापस जाने की सोच रहे थे उन्हें उससे रोका जा सके। अंतत: 18 मार्च के दिन एक समझौता हआ, इसके अनुसार, श्रमिकों को उनकी शपथ को देखते हए पहले दिन का वृद्धि के साथ हासिल होनी थी और दूसरे दिन उन्हें 20% की वृद्धि, जो कि मिल द्वारा प्रस्तावित की जा रही थी, मिलनी थी। तीसरे दिन ही तब तक जब तक कि एक मध्यस्थता के द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता उन्हें 27.5% की वद्धि मिलनी थी। अततः मध्यस्थ ने गांधी जी के प्रस्ताव को मानते हुए मजदरों के पक्ष में 35% की वृद्धि का निण दिया।
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