विजय नगर साम्राज्य की सामाजिक व्यवस्था -Takeknowledge


विजयनगर साम्राज्य के दक्षिण भारतीय वृहत्तर भाग में सामाजिक संरचना भारतीय समाज की आम संरचना से भिन्न है। सामाजिक संरचना की यह विलक्षणता तीन तरह से थी

•दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों की धर्म-निरपेक्ष भूमिका, 
•निचले सामाजिक समूहों में दोहरा विभाजन, 
•और . समाज का क्षेत्रीय खंडीकरण।

बाहमण जिन स्थानों पर रहते थे, वहाँ भभि पर उनका नियंत्रण था, एवं उनकी प्रतिष्ठा और प्राक्ति भी भमि पर आश्रित लोगों के नियंत्रण से थी। पजारी वर्ग की हैसियत से पवित्र कार्या के कारण भी उन्हें प्रतिष्ठा प्राप्त थी। असंख्य वैदिक मंदिरों के आविर्भाव से, जिन्हें गांवों देिवदान) का धर्मदान प्राप्त था, ब्राहमणों को मंदिर-अधिकारियों के रूप में इतनी शक्ति प्राप्त हुई कि उनका अन्य जातियों और धार्मिक संस्थाओं पर धर्म-विध्यात्मक नियंत्रण हो गया। इन धार्मिक केन्द्रों के व्यवस्थापकों की हैसियत से ब्राहमणों को बहत अधिक। धर्म-निरपेक्ष अधिकार प्राप्त थे।

क्षेत्रीय खंडीकरण का तात्पर्य यह है कि तमिल प्रदेश में सामाजिक समुदायों का, प्राकृतिक उप-क्षेत्र और उससे संबंधित व्यावसायिक ढाँचे के आधार पर, विभाजन था। दक्षिण भारत के सामाजिक समदायों का अपने स्थान से दूर स्थित समुदायों से कम संबंध था। वे भाई-बहिन और मामा-भांजी विवाह को वरीयता देते थे।

सामाजिक संरचना की एक और विशिष्टता निचली जातियों का दोहरा विभाजन था, जो बाएं और दाएं हाथ परिकल्पना से संबंध रखता था (दाएं हाथ विभाजन के अनुरूप वैष्णव और। बाएं हाथ की जातियां शैव होती थीं)। अधिकतर दाएं हाथ की जातियां कृषि उत्पादन तथा कषिय उत्पादों में स्थानीय व्यापार में संलग्न थीं। बाएं हाथ की जातियां गैर-कषि उत्पादों में व्यापार तथा चल-शिल्प उत्पादन में संलग्न थीं।

विजयनगर यग में किसान सामाजिक व्यवस्था का आधार था, जिसपर समाज के सभी अन्य वर्ग निर्भर थे। तमिल काव्य शैली, सत्काम मुख्य कृषक वर्ग को विशुद्ध सत-शद्र मानती थी। उन्होंने अपने लिए आनष्ठानिक पवित्रता और आदरणीय धर्म-निरपेक्ष दर्जा प्राप्त । किया।

मंदिर किसी विशेष देवता की पूजा करने वाले वगों के सामाजिक अतरण की रूपरेखा या निधारण में महत्वपर्ण भमिका निभाते थे। दक्षिण भारताय राजशाही में वंश-परंपरा की प्रमुख विशेषता वंश-देवता की सामूहिक भक्ति था। किसाना के देवताओं के तीर्थों (जैसे। अम्मान) के गैर-ब्राहमण पजारी ब्राहमण प्रभुत्व के विशाल शिव और विषार व्यवस्था में भी भाग लेते थे। विशाल तीर्थ-स्थलों पर स्थित संप्रदायी संगठन (मठों) में ब्राहमण, गैर-ब्राह्मण परंपरा दोनों के व्यक्ति होते थे। इस प्रकार, इस यग के। 'सामाजिक संगठन में ब्राह्मण, बाएँ हाथ और दाएं हाथ की जातियां (जिनमें आदर योग्य कृषि-जातियां वेल्लाल और बुनकरो जैसी कमज़ोर जातियां आती थीं) सम्मिलित थीं।

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