उत्तर भारत में वैष्णव भक्ति आंदोलन -Takeknowledge

    विवेच्य काल के दौरान उत्तर भारत में रामानन्द वैष्णव भक्ति के सर्वप्रमुख विद्वान संत थे। उनका काल 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 15वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के बीच का है। अपना आरंभिक जीवन उन्होंने दक्षिण में बिताया पर बाद में बनारस में बस गये। उन्हें दक्षिण भारतीय भक्ति परंपरा और उत्तर भारतीय वैष्णव भक्ति के बीच की माना जाता है। पर उनकी विचारधारा आरंभिक दक्षिण भारतीय आचार्यों से तीन अर्थों में भिन्न थी i

1)वे विष्णू को नहीं राम को भक्ति का आराध्य मानते थे। उनके अनुसार राम सर्वोच्च ईश्वर थे. जिनकी अराधना सीता के साथ करनी चाहिए। इस दृष्टि से उत्तर भारत की वैष्णव भक्ति परंपरा में उन्हें राम संप्रदाय के संस्थापक के रूप में देखा जाता है। 

२) राम संप्रदाय के प्रचार के लिए उन्होंने संस्कृत का नहीं, बल्कि आम लोगों की भाषा का उपयोग किया।

३) वैष्णव भक्ति परंपरा में रामानंद का सर्वप्रमुख योगदान यह है कि उन्होंने सभी लोगों के लिए (जाति के बंधन को तोड़कर) भक्ति को सुलभ कराया। धार्मिक और सामाजिक मामलों में उन्होंने जातिगत बंधनों को काफी उदार बना दिया। ब्राह्मण होने के बावजूद उन्होंने “छोटी" जातियों के वैष्णव अनुयायियों के साथ भोजन किया।

अंतिम मुद्दे के कारण ही बाद की वैष्णव परंपरा में कबीर और कुछ अन्य एकेश्वरवादियों को रामानंद का शिष्य बताया गया है। यह भी कहा जाता है कि इस्लाम धर्म के बढ़ते प्रभाव के कारण रामानंद ने यह परिवर्तन जरूरी समझा होगा। ऐसा भी माना जाता है कि “छोटी" जातियों के बीच नाथ पंथियों के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए रामानंद के लिए ऐसा करना जरूरी हो गया होगा। उनके अनुयायियों को रामानंदी कहा जाता है। रामानंद द्वारा लिखित एक पद आदि ग्रंथ में भी संकलित है।

सल्तनत काल में वैष्णव भक्ति के एक प्रमुख उपदेशक वल्लभाचार्य भी थे। वे तेलूगू ब्राह्मण थे और उनका काल 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 16वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पड़ता है। उनका जन्म भी बनारस में, हुआ था। वे पुष्टिमार्ग के संस्थापक थे। इसे वल्लभ संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कृष्ण भक्ति का प्रचार किया। प्रमुख कृष्ण भक्त कवि सूरदास (1483-1563) और अन्य सात कवियों को अष्टछाप के नाम से जाना जाता है। इन्हें वल्लभ का शिष्य माना जाता है। बाद में यह संप्रदाय गुजरात में लोकप्रिय हुआ।

वस्तुतः उत्तर भारत में वैष्णव भक्ति ने मुगल काल के दौरान अपार लोकप्रियता पाई और उसका जन: आधार विकसित हुआ। तुलसीदास (1532-1623) राम भक्ति में लीन हुए जबकि सूरदास (1483-1563), मीराबाई (1503-1573) और अन्य संतों ने कृष्ण भक्ति को लोकप्रिय बनाया !

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