बहमनी साम्राज्य की सैन्य संगठन -Takeknowledge

सेना का सेनापति अमीर-उल उमरा होता था। सेना में मुख्यतः सिपाही और घुड़सवार होते थे। हाथियों का प्रयोग भी प्रचलित था। शासक-गण बड़ी संख्या में अंगरक्षकों को रखते थे. जो खासाखेल कहलाते थे। ऐसा बताया जाता है कि मौहम्मद1  के पास 4000 अंगरक्षक थे। इसके अतिरिक्त, सिलहदार होते थे जो राजा के व्यक्तिगत शस्त्रागार के प्रभारी का कार्य करत थे। आवश्यकता पड़ने पर बरबरदानों को सेना की लामबंदी के लिए कहा जाता था। बहमनी सेना की प्रमुख विशेषता बारूद का प्रयोग था जो सेना के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ। इटली के यात्री, निकोलो कोंती जिसने 15वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी, लिखा है कि उनकी सेना भालों, तलवारों, विभिन्न हथियारों, ढालों, धनषों और बाणों का प्रयोग करती थी। वह आगे कहता है कि वे "प्राक्षेपिक और गोलाबारी की मशीनों और साथ ही घेराबंदी के हथियारों का प्रयोग करते थे।" 1500-17 के दौरान भारत-यात्रा करने आये दुआर्ते । बारबोसा ने भी ऐसे ही विचार प्रकट किए हैं कि वे गदाओं, फरसों, धनषों और बाणों का प्रयोग करते थे। वह आगे लिखता है : "वे (मुस्लिम) ऊंची काठी पर बने आसनों पर सवार.... काठी से बंधे हुए लड़ते हैं.... हिन्दू.... अधिकतर पैदल लड़ते थे, जबकि कुछ घोड़ों की पीठ पर..."। महमूद गावां ने सैन्य प्रशासन को कारगर बनाया। पूर्व में तरफदारों को किलों के किलेदार नियुक्त करने का पूर्ण अधिकार था। गावां ने एक किले को एक तरफदार के न्यायाधिकार के अंतर्गत रखकर, बाकी अन्य सभी एक ही प्रांत के किलों को केन्द्रीय नियंत्रण में ले लिया। भ्रष्टाचार पर अंकुश हेतु, उसने एक नियम बनाया कि प्रत्येक अधिकारी को उसके द्वारा संचालित प्रत्येक 500 सिपाहियों के हिसाब से एक निश्चित रकम दी जाए। जब इस अधिकारी को नकद वेतन की जगह एक क्षेत्र से राजस्व वसूलने का अधिकार दिया जाता था तो उसे राजस्व वसूलने में होने वाला खर्चा नकद धन के रूप में अलग से दिया जाता था। यदि वह नियत संख्या में सिपाहियों को रखने में असफल होता था तो उसे उसी अनुपात में रकम राजकोष में वापस करनी होती थी।

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